सोमवार, 16 जून 2014

भाग्योदय लक्ष्मी साधना ॰

अभी तक आपने बहोत सी लक्ष्मी साधना ये की हुयी है परंतु परिणाम तो कही ना कही उतनी ही मिली है जितनी आपकी आमदनी है या फिर बढ़ोतरी मिली है या थोड़ी बहुत कही से अप्रत्यक्ष लाभ हुयी हो। अगर यही स्थिति रही लक्ष्मी जी की कृपा की तो आनेवाली समय मे ये महेंगाइ नाम की ड़ायन हम साभिकों खा जायेगी॰ सभी सिद्धों ने एक बात कही है की लक्ष्मी जी चंचला है और येसे लक्ष्मी की कृपा से जीवन जीने की कोई कला प्राप्ति नहीं हो सकती है,जब स्थिर लक्ष्मी जी की कृपा हो जायेगी तो सम्पूर्ण जीवन मे अंधकार दूर होकर जीवन मे गतिमान प्रकाश होगी मतलब सारी सुख और समृद्धि की प्राप्ति होगी॰ येसे  जीवन की प्राप्ति सारे दुखो को समाप्त कर देती है।
भाग्योदय लक्ष्मी साधना अपने आप मे तीव्र गति से भाग्योदय प्राप्ति की अनुभूतित साधना है,यह प्रयोग कार्तिक माह की पंचमी तिथि से करनी है,इस दिवस को पांडव पंचमी,सौभाग्य पंचमी और भाग्योदय पंचमी भी कहेते है और यह प्रयोग अचूक है,इस प्रयोग को करनेसे घर की सारी धन की प्रति आनेवाली चिंताये समाप्त हो जाती है॰आश्चर्यजनक रूप से व्यापार वृद्धि ,आर्थिक उन्नति ,प्रमोशन ,भाग्योदय और लाभ प्राप्त होने लगती है॰ वास्तव मे ही यह प्रयोग आज की महेंगाइ मे कल्पवृक्ष की समान है ।

साधना विधि:-
           यह साधना  तीन दीनों मे सम्पन्न करनी है,साधक रविवार की सुबह ब्रम्ह मुहूर्त मे स्नान करके पीले वस्त्र धारण करके साधना मे बैठ जाये,सामने किसी बाजोठ पे पीले रंग की वस्त्र बिछाये और महालक्ष्मी जी की कोई दिव्य-भव्य चित्र स्थापित करे,अब सामने भोजपत्र पे ऊपर दिये हुये भाग्योदय लक्ष्मी यन्त्र की निर्माण अष्ठगंध से अनार की कलाम से कीजिये, यह यन्त्र अपनी दोनों हाथो मे पकड़कर लक्ष्मी-चैतन्य मंत्र 108 बार बोलिये और यन्त्र किसी स्टील की बड़ी सी प्लेट मे स्थापित कीजिये,अब अनार की कलम से यंत्र की आजू-बाजू मे 108 बार ‘श्रीं’ अक्षर लिखनी है,अब इसी ‘श्रीं’ अक्षर की ऊपर हल्दी+केसर से रंगी हुयी चावल स्थापित करनी है ताकि कोई भी अक्षर हम देख ना सके सिर्फ यन्त्र ही दिखनी चाहिये,अब यंत्र की मानसिक पद्धति से पूजन कीजिये,और सदगुरुजी से प्रार्थना कीजिये की इस साधना मे आपको पूर्ण सफलता ही प्राप्त हो,अब यन्त्र पे एक गोमती चक्र स्थापित कीजिये।
यह पूर्ण विधि-विधान सिर्फ एक ही दिन करनी है,और तीसरे दिन इस गोमती चक्र को चाँदी की लॉकेट मे बनवाकर लाल धागे मे एक वर्ष तक गले मे धारण करनी है ॰ और जो चावल आपने अक्षर पर चढ़ाये हुये है इन्हे किसी भी रंग की पोटली मे बांधकर नदी या सरोवर पर ले जायिये ॰ नदी की पानी मे उतरकर यह चावल आपको अपने सिर पे थोड़े-थोड़े करते हुये छिड़कने है परंतु चावल पनि मे ही गिरने चाहिये इस बात की विशेष ध्यान रखनी है  ॰






लक्ष्मी चैतन्य मंत्र

!! ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं चैतन्यम कुरु जाग्रय जाग्रय श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ फट !!


भाग्योदय लक्ष्मी साबर मंत्र:-


ॐ लिछमी कील महालछमी किलूं किलूं जगत संसार न किले तो वीर विक्रमादित्य की आण ! ठं ठं ठं



इस मंत्र की 3 माला जाप 3 दिन तक करनी है,जब साधना पूर्ण हो जाए तब भोज़पत्र पे अंकित यंत्र को साधना कक्ष मे या पूजा स्थान मे स्थापित कर दीजिये और यन्त्र के नीत्य दर्शन कीजिये.......

दुर्गा उपासना

जीवन की व्याख्या ही अपने आप मे एक कठिन बात है,साथ मे जीवन की सारी इच्छाये ही हमे पाप-पुण्य की और अग्रेसर करती है॰ कही येसी भी बाते है जिन्हे सिर्फ एक नाम दी जाती है जैसे ‘तंत्र या तन्त्रोक्त साधना’ पर क्या किसिने ये जान्ने की कोशिश की है की इस साधना की वास्तविकता क्या है ? शायद समय ही नहीं है किसिके पास,इसिलिये सारी साधनात्मक गलतिया हमारे ही नसीब मे लिखी गयी है,क्या मै ये पूछ सकती हु की साधक अपने पतन और प्रगति मे किस गति से चल रहे है। चलो जानेदो गलतिया भूलानेसे ही आगे प्रगति होगी। हमारे सदगुरुजी ने एक बात हमेशा कही है ‘‘माँ जगदंबा की इच्छा रही,तो हम इस साधना विषय पर आगे भी बात करेगे” और सदगुरुजी की इस बात से तो एक बात हमारे समज मे तो आहि जाती है की “ दुर्गा जी की उपासना ” कितनी महत्वपूर्ण है,मै तो सिर्फ इतना ही कहेना चाहती हु की चाहे दुनिया की लाखो साधनाये आप कर लीजिये परंतु अंतता आना है आपको माँ भगवती जी की शरण मे और सदगुरुजी की शरण मे। अगर आप ये बात जानते है तो फिर येसी भटकन क्यू चल रही है मस्तिष्य मे की नवरात्रि आयेगी तभी हम दुर्गाजी की साधना सम्पन्न करेगे , कोई contract sign की है क्या हमने माँ के साथ ? जब येसी कोई बात ना हो तो आज से ही दुर्गा उपासना आवश्यक है , हमने जन्म लेते समय पंचांग नहीं देखि थी और नहीं मृत्यु की समय देखने वाले है क्यूकी जीवन-मृत्यु कोई कहानी नहीं एक पूर्ण सत्य है तो ये बात भी समजनी आवश्यक है की दुर्गा उपासना भी एक पूर्ण सत्य है कोई भी कहानी नहीं। दुर्गा साधना मे मेरी अनुभूतिया आज तक तो 100% ही है आगे माँ जगदंबा की इच्छा । कोई भी भगवती साधक/साधिका विश्व-कल्याण की ही बात करेगे,स्वयं के कल्याण की नहीं , अगर उन्हे साधनात्मक अनुभूतिया हो तो । इस साधना मे कई प्रकार की अनुभूतिया मिलती ही है,संसार मे येसी कोई इच्छा ही बाकी नहीं रहेती है ज्यो हमे नवार्ण मंत्र जाप से ना मिले,नवार्ण साधना साभिकी प्रिय साधना है चाहे फिर वह शिव,विष्णु,ब्रम्ह,इन्द्र,सन्यासी,गृहस्थ या अन्य कोई देवी देवताये ही क्यू न हो। जब यह इतनी प्रिय साधना है तो बाकी साधनात्मक चिंतन तो नहीं होनी चाहिये, आपकी ध्येय आपको ही सोचनी है ताकि लक्ष्य प्राप्ति मे पूर्णता मिले ,मै तो ग्यारंन्टी और चुनौती के साथ बोल सकती हु की मनोकामना पूर्ति हेतु इस्से बड़ी कोई साधना इस पूरे संसार मे ही नहीं है , यह साधना हर मनोकामना पूर्ति की लिये सभी लोको मे प्रचलित साधना है , आज मै जहा तक भी पहोचि हु इस बात की सारी श्रेय मै गुरूसाधना और नवार्ण को ही देती हु अन्य साधना ओ को नहीं,मेरी सारी इच्छाये इन दो ही साधना ओ से मैंने पूर्ण होते हुये देखि है और हुयी ही है,जब येसी साधनाये आपके पास हो और फिर भी आप समस्याओसे ग्रसित है तो इस बात से मै बहोत ज्यादा दुखी हु ……………
इसी विषय पर अब तो आगे भी बात चलेगी,अब हम साधनात्मक बात करते है।
साधना सामग्री:- नवार्ण यंत्र , कार्य सिद्धि यंत्र , स्फटिक माला ,जगदंबा जी का भव्य चित्र , लाल वस्त्र , लाल आसन ।
नोट:ये मत सोचिये की आपके पास की सामग्री चैतन्य है या नहीं है,आपको तो सिर्फ यही बात सोचनी है की कही से भी यह सामग्री शीघ्र ही आपको प्राप्त हो जाये,सामग्री को चैतन्य करने की क्रिया की ज़िम्मेदारी मै लेती हु।
साधना विधि :-

ॐ नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नम :।
नम: प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणता: स्म ताम ॥
यह मंत्र 11 बार बोलनी है ताकि साधनात्मक वातावरण चैतन्य बने,
शुद्धिकरण:-(एक-एक मंत्र उच्चारण की साथ जल पीनी है)
हाथ मे जल लेकर मंत्र बोलिए,
ॐ ऐं आत्मतत्वं शोधयामी नम: स्वाहा ॥
ॐ ह्रीं विद्यातत्वं शोधयामी नम: स्वाहा ॥
ॐ क्लीं शिवतत्वं शोधयामी नम: स्वाहा ॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सर्वतत्वं शोधयामी नम: स्वाहा ॥ (बोलते हुये हाथ धो लीजिये)

विनियोग:-

ॐ अस्य श्रीनवार्णमंत्रस्य ब्रम्हाविष्णुरुद्रा ऋषय:गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छंन्दांसी , श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवता: , ऐं बीजम , ह्रीं शक्ति: , क्लीं कीलकम श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो प्रीत्यर्थे जपे विनियोग: ॥


विलोम बीज न्यास:-

ॐ च्चै नम: गूदे ।
ॐ विं नम: मुखे ।
ॐ यै नम: वाम नासा पूटे ।
ॐ डां नम: दक्ष नासा पुटे ।
ॐ मुं नम: वाम कर्णे ।
ॐ चां नम: दक्ष कर्णे ।
ॐ क्लीं नम: वाम नेत्रे ।
ॐ ह्रीं नम: दक्ष नेत्रे ।
ॐ ऐं ह्रीं नम: शिखायाम ॥
(विलोम न्यास से सर्व दुखोकी नाश होती है,संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दहीने हाथ की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये)

ब्रम्हारूपन्यास:-

ॐ ब्रम्हा सनातन: पादादी नाभि पर्यन्तं मां पातु ॥
ॐ जनार्दन: नाभेर्विशुद्धी पर्यन्तं नित्यं मां पातु ॥
ॐ रुद्र स्त्रीलोचन: विशुद्धेर्वम्हरंध्रातं मां पातु ॥
ॐ हं स: पादद्वयं मे पातु ॥
ॐ वैनतेय: कर इयं मे पातु ॥
ॐ वृषभश्चक्षुषी मे पातु ॥
ॐ गजानन: सर्वाड्गानी मे पातु ॥
ॐ सर्वानंन्द मयोहरी: परपरौ देहभागौ मे पातु ॥
( ब्रम्हारूपन्यास से सभी मनोकामनाये पूर्ण होती है, संबन्धित मंत्र उच्चारण की साथ दोनों हाथो की उँगलियो से संबन्धित स्थान पे स्पर्श कीजिये )




ध्यान:-

खड्गमं चक्रगदेशुषुचापपरिघात्र्छुलं भूशुण्डीम शिर:
शड्ख संदधतीं करैस्त्रीनयना सर्वाड्ग भूषावृताम ।
नीलाश्मद्दुतीमास्यपाददशकां सेवे महाकालीकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्तुं मधु कैटभम ॥
अब हमे जितनी भी जानकारी माँ की प्रति है उसी हिसाब से उनकी नित्य ध्यान और स्तुति करनी है,


निम्न मंत्र 21 बार बोलनी है,

ॐ ह्रीं सर्वबाधा प्रशमनं ,त्रैलोकस्याखिलेश्वरी ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरि , विनाशनम ॥ ह्रीं ॐ ॥ फट स्वाहा: ॥


माला पूजन:-जाप आरंभ करनेसे पूर्व ही इस मंत्र से मालाकी पुजा कीजिये,इस विधि से आपकी माला भी चैतन्य हो जाती है ॰

“ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नंम:’’

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिनी ।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव ॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृहनामी दक्षिणे करे ।
जपकाले च सिद्ध्यर्थ प्रसीद मम सिद्धये ॥

ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिं देही देही सर्वमन्त्रार्थसाधिनी साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पय परिकल्पय मे स्वाहा ।
नवार्ण मंत्र :-

                         !! ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे !!
               

जप पूरा करके उसे भगवतीजी की चरणोमे समर्पित करते हुए कहे


गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम ।
सिद्धिर्भवतू मे देवी त्वत्प्रसादान्महेश्वरी ॥


नवार्ण मंत्र की सिद्धि 9 दिनो मे 1,25,000 मंत्र जाप से होती है,परंतु आप येसे नहीं कर सकते है तो रोज 3,5,7,11,21………….इत्यादि माला मंत्र जाप भी हम कर सकते है,इस विधि से सारी इच्छाये पूर्ण होती है,सारी दुख समाप्त होती है और धन की वसूली भी सहज ही हो जाती है। हमे शास्त्र की हिसाब से यह सोलह प्रकार की न्यास देखने मिलती है जैसे ऋष्यादी ,कर ,हृदयादी ,अक्षर ,दिड्ग ,सारस्वत ,प्रथम मातृका ,द्वितीय मातृका ,तृतीय मातृका ,षडदेवी ,ब्रम्हरूप ,बीज मंत्र ,विलोम बीज ,षड ,सप्तशती ,शक्ति जाग्रण न्यास और बाकीकी 8 न्यास गुप्त न्यास नाम से जानी जाती है,इन सारी न्यासो की अपनी एक अलग ही अनुभूतिया होती है,उदाहरण की लिये शक्ति जाग्रण न्यास से माँ सुष्म रूप से साधकोके सामने शीघ्र ही आ जाती है और मंत्र जाप की प्रभाव से प्रत्यक्ष होती है और जब माँ चाहे किसिभी रूप मे क्यू न आये हमारी कल्याण तो निच्छित है।
यहा से आगे भी एक और साधना हमे सदगुरुजी की असीम कृपा से सदगुरुजी की श्रीमुख से प्राप्त हुयी है,यह साधना बहुत ही अद्वितीय है। जिसे हमे आगे की साधनाओमे करनी है........
( नोट:-कृपया अनुष्ठान की रूप मे साधना करते समय कलश स्थापना आवश्यक मानी जाती है , इस बात की ध्यान रखिये )

द्वादश काली साधन

यह सारी की सारी ब्रम्हान्ड मात्र एक अपार सक्रिय चेतना की प्रवाह है अर्थात इस अपार शक्ति की द्वादश काली की प्रतिक रूप मे तीस अंशो मे तथा इन्ही तीस अंशो को माह की रूप मे दर्शायी गयी है. इन्ही तीस अंशो की प्रथम प्रतिप्रदा से लेकर पूर्णमासी एवं फिर पूर्णमासी के बाद प्रतिप्रदा से अमावस्या तक तिथियो की फलस्वरूप तीस अंश की प्रत्येक अंश मे विभक्त की कियी गयी है। इस प्रकार हमारी पृथ्वी की यही तीस अंश मास की फलस्वरूप अंश रेखा कहलाती है। यही द्वादश काली प्रथम सृष्टि + स्थिति एवं संहार करती रहेती है।
अर्थात
प्रथम स्थिति मे  (स्थिति+सृष्टि) ,(सृष्टि+स्थिति) एवं (सृष्टि+संहार)…………….
द्वितीय स्थिति मे (सृष्टि+सृष्टि) ,(स्थिति+स्थिति) एवं (स्थिति+संहार)…………
तृतीय स्थिति मे  (संहार+संहार) ,(संहार+सृष्टि) एवं (संहार+स्थिती) की रूप मे कालचक्र का बनाना एवं बिगड़ना यह क्रिया निरंतर चलती रहेती ही है। इस प्रकार से ब्रम्हान्ड व्यापक शक्ति की स्वयंभू स्वरूप है और इसी स्वरूप की चारों ओर आठ भैरव रूपी शक्तीयो की निवास है।
भैरव अर्थात (भ) से भरण(सृष्टि) ,(र) से रमण(स्थिति) तथा (व) से वरण(संहार)। यही अष्ट भैरव अष्ट दिशाओ को भी दर्शाते है। इन्हि की बीच मे पूर्ण राज भैरव है,क्योकि इसी पूर्ण राज भैरव अर्थात सूर्य की पृथ्वी (माता) भी अपनी धुरी पर पश्चिम से पूर्व की परिक्रमा करती रहेती है। यहा पूर्ण राज भैरवजी पर मै ज्यादा नहीं लिखना चाहती हु ,परंतु समय आने पर इनकी साधना अवश्य दुगी।
साधना:- यह बात तो आपको समज़ मे आ ही गयी होगी की द्वादश काली साधना कितनी महत्वपूर्ण साधना है । इस साधना से बहोत सारी लाभों की मान्यताये कई तंत्र शास्त्र मे बताई गयी है।
ज्यो साधक/साधिका अपनी पूर्ण जीवन काल मे द्वादश काली साधना सम्पन्न करते है वह साधक ब्रम्हान्ड भेदन क्रिया के अधिकारी होते है और सारे दृष्ट ग्रह उनके सामने हाथ बांधे हुये खड़े होते ही है..................
सामग्री:- महाकाली चित्र,काली हकीक माला,एक सुपारी,काली धोती,काला आसन,एक हरे रंग की नींबू ।


विनियोग :-

    ॐ अस्य श्री द्वादश काली मंत्रस्य भैरव ऋषी:,उष्णीक छंन्द:,कालिका देवता , क्रीं बीजम ,हुं शक्ती: ,क्रीं किलकं मम अभीष्ट सिध्द्यर्थे जपे विनियोग:।

देवी की स्तुति कीजिये परंतु अपनी भावना की आधार पर,ज्यो भी आपकी दिल से निकले वह स्तुति एवं ध्यान कीजिये ।

अब भगवान महाकालभैरव जी को कोई एक पुष्प मंत्र बोलते हुये समर्पित कीजिये।

ॐ हूं स्फ़्रौं यं रं लं वं क्रौं महकालभैरव सर्व विघ्नन्नाशय नाशाय ह्रीं श्रीं फट् स्वाहा


अब निम्न मंत्र की 18 मालाये नवरात्रि की प्रतिप्रदा से अष्टमी तक करनी है और नवमी को किसी अग्नि पात्र मे अग्नि प्रज्वलित कीजिये साथ मे काले तिल और काली मिर्च की 151 आहुती दीजिये।यह विधान सम्पन्न करते ही आपकी साधना पूर्ण मनी जायेगी।
                       मंत्र :
      । । ॐ क्रीं हुं क्रीं द्वादश कालीके क्रीं हुं क्रीं फट् । ।


निम्न मंत्र बोलते हुये देवी को प्रणाम कीजिये और कोई भी लाल रंग की पुष्प समर्पित कीजिये।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं क्रीं हुं ह्रीं श्री सर्वार्थदायक ब्रम्हान्ड स्वामिनी नमस्ते नमस्ते स्वाहा
अब देवी को नींबू की बली चढानी है,इसीलिए निम्न मंत्र बोलते हुये ज़ोर से नींबू पे प्रहार कीजिये और देवी की सामने उसे फोड़ दीजिये।

ॐ क्रीं ह्रीं क्रीं फट बलीं दद्यात स्वाहा

साधना काल मे शुद्धता की पालन कीजिये,और नवरात्रि की पावन पर्व इस साधना की लिये यह तीव्रतम समय है क्यूकी यह नवरात्रि मंगलवार से प्रारम्भ हो रही है। और यह साधना समाप्त होते ही रात्री मे माँ स्वप्न मे दर्शन देती है और हमसे कोई भी इच्छा प्रगट करने की आज्ञा देती है,हम माँ से ज्यो भी वरदान मांगेंगे वह माँ तथास्तु कहेते हुये प्रदान कर देती ही है।अब जब माँ ही सब कुछ देने की लिये तयार है तो मै साधना की बारे मे और क्या लाभ लिख सकता हु ।

कामकाली साधना

सारी ब्रम्हान्ड मे ज्यो कुछ देखे वह माँ आपकी ही माया है ।
आपही हो माँ ज्यो मेरी हो और सिर्फ मेरी ही माँ हो । ।

कामकाली जी की स्तुति नहीं कर सकती हु क्यूकी माँ की गुणगान की लिए शब्द ही छोटे पड रहे है,फिर भी एक बार कोशिश करके देखती हु...................
जिस समय दिन-रात,पृथ्वी-आकाश,हवा-पानी,विवेक-बुद्धि,हृदय की स्पंदने कुछ भी न था उस समय आदिशक्ति पराम्बा जी की रूप मे सिर्फ आप और सिर्फ आप ही थी। आप ने मेरी प्यारी माँ ब्रम्हा,विष्णु,महेश,और इस त्रिभुवन को भी जन्म दिया है। हे माँ आप चौदह भुवनो की अधिष्ट्राती देवी हो,सभी देवी देवताये आपकी साधना करके ही सिद्ध और चैतन्य बने हुये है और आपकी ही कृपा से सभी देवी-देवताओको सिद्धीया प्राप्त हुयी है।
‘’कामकला मे काम बीज ‘क्लीं’ है,क्लींकार सदाशिव काम है, ’क’ आकाश तत्व है, ‘ल’ पृथ्वी तत्व है, पाताल से लेकर आकाश तक सारी आपकी ही कला है। जब तक माँ आपकी शक्ति सभी देवी देवताओ के साथ कार्य कर रही है तब तक ही इन सबकी वास्तविकता है, इसी कारण रात्री की मध्यकाल मे।महानिशा की शुभ समय मे आपकी उपासना सर्वश्रेष्ठ है,
नवरात्रि नजदीक आ रही है इसीलिये मै ज्यादा कुछ नहीं लिख पाउगी परंतु नवरात्रि की बाद और कुछ लिखना चाहुगी।

साधना विधि :-

सर्वप्रथम गुरुपूजन कीजिये और गुरुमंत्र की 5 माला जाप कीजिये। फिर भैरव मंत्र की 1 माला जाप करनी है ।

यह मंत्र माँ की सेवा मे ज्यो भैरव जी है,उनकी है।

                      ॥ फ्रें भैरवाय फ्रें फट ॥

विनियोग:-

        ॐ अस्य श्री वितहव्य ऋषी जगती छन्द कामकालीदेवता नाराच द्रां बीजं कुन्त क्रीं शक्ति सृष्टि किलकं श्रीकामकालीका सिद्धि प्रीत्यर्थे जपे विनियोग:।

ध्यान:-

ध्यानमस्या: प्रवक्ष्यामी कुरू चीत्तयेकतानाम ।
उद्ददघनाघना श्लीष्यज्जवाकुसुमसन्नीभाम । ।

करन्यास:-

क्लीं का अंगुष्टाभ्यां नम:।
क्रीं म तर्जनिभ्यां नम:।
हुं क मध्यमाभ्यां नम:।
क्रों ला अनामिकाभ्यां नम:।
स्फ्रें का कनीष्ठीकाभ्यां नम:।
काम कलाकाली ली करतल करपृष्ठाभ्यां नम:।

मंत्र :-

             । ।  क्लीं स्फ्रें स्फ्रें क्लीं फट । ।


साधना मे आप काले वस्त्र ,काला आसन ,काली हकीक या रुद्राक्ष की माला,महाकाली जी का चित्र एवं कोई भी शिवलिंग । दिशा पूर्व या दक्षिण । समय 11:36 से 01:36 तक।संकल्प लेना आवश्यक है। इस साधना मे 11 मालाये नीत्य 9 दिन तक करनी है .

साधना समाप्ती की बाद रोज शिव जी का अभिषेक 108 मंत्र बोलते हुये कीजिये

                    ॥ क्लीं शिवाय क्लीं फट ॥

अब प्रसाद की स्वरूप मे भोग लगा दीजिये। और कोई एक सफ़ेद पुष्प चढाते हुये फिर से एक बार अपनी मनोकामना बोल दीजिये।
                 ॐ शांति शांति बोलते हुये अब अपनी ऊपर जल छिडके।

यह पूर्ण क्रिया 9 दिन तक करनी है तभी जाकर साधना पूर्ण मनी जायेगी,और आपकी इच्छाये भी पूर्ण हो जायेगी.........

तान्त्रोक्त गोरखक्षनाथ प्रत्यक्षीकरण साधना॰

श्रीमदभागवत महापुराण मे नवनाथ जी की वर्णन मिलती है,ऋषभदेवजी के १०० पुत्र थे और १०० मे से ९ पुत्र ज्ञानमार्गी सन्यासी बन गये॰ इसी पुराण मे एकादश स्कन्ध मे इस बात की वर्णन बताई हुयी है॰
निमिराजा जी को ऋषियोने धर्म तत्व समजाई थी,वही ऋषि फिर से कलयुग मे जन्मे और उन्होने नाथसप्रदाय की स्थापना की और दुनिया की कल्याण की लिये ‘’योगसिद्धि’’ और भक्ति मार्ग समजाइ॰
कली ने ‘मच्छीन्द्र’, हरी ने ‘गोरक्ष’, अंतरिश ने ‘जालिन्दर’, प्रबुद्ध ने ‘कानिफ’, पिप्पलायन ने ‘चर्पटी’, अर्वीहोत्रा ने ‘वटसिद्ध नागनाथ’, द्रुमील ने ‘भर्तरी’,चमस ने ‘रेवण’ और करभजन ने ‘गहिनी’ इस प्रकार से इन्होंने जन्म ली है॰
आदिनाथ शिवजी और दत्तात्रेय जी की आज्ञा से,दीक्षा से नाथसप्रदाय की जन्म हुयी है॰
                                       
                                                           नाथपंथिय दीक्षा विधि

         नाथसप्रदाय मे दीक्षा ग्रहण करने की लिये पौष,माघ,फाल्गुन व चैत्र माह और पूर्णिमा शुभ मानी जाती है॰दीक्षा से पूर्व गुरु अपने शिष्य की अनेक प्रकार से परीक्षा तो लेते ही है॰ दीक्षा की समय सिहनाद सुनाई जाती है और ‘अलख निरंजन’ शब्द की महत्व समजाइ जाती है॰ दीक्षा की पद्धतीनुसार ‘दर्शनीनाथ व अवघडनाथ’ येसी दो प्रकार की सप्रदाय है॰ जीनके कान मे कुंडल होती है वह दर्शनीनाथ के नाम से जाने जाती है। साधना की माध्यम से भी आप नवनाथ सप्रदाय की अवघड दीक्षा की प्राप्ति कर सकते है॰
अब येसी विधि हमारे पास हो और हम दीक्षा प्राप्ति ना कर सके यह बात तो उचित ही नहीं है,इसीलिये आप भी अवघड दीक्षा की प्राप्ति कर सकते है ॰ अब यह दीक्षा आप प्राप्त करके साबर मंत्रो मे सफलता और पूर्ण गोरक्ष कृपा भी प्राप्त कीजिये॰

साधना सामग्री-
           
           काले कंबल की आसन,रुद्राक्ष माला,चैतन्य नवनाथ चित्र,

विधि-

            उत्तर या पूर्व दिशा की और मुख करके बैठीये,सामने किसी बाजोट पर पीली वस्त्र बिछानी है और इसपे चैतन्य सदगुरुजी एवं नवनाथ जी की चित्र की स्थापना कीजिये॰साथ मे कलश स्थापना भी करनी है,कलश स्थापना की विधि जैसी भी आपके पास हो उसी प्रकार से कीजिये॰ दीपक पूजन करके दीप प्रज्वलित करनी है और सुगंधित धूप बत्ती जलानी है॰ गुरुपूजन कीजिये और साथ मे गुरुमंत्र की ९ माला और ॐ नम: शिवाय मंत्र की १ माला करनी है ॰ सदगुरुजी से साधना सफलता की और दीक्षा प्राप्ति की लिये प्रार्थना कीजिये॰ ‘’श्रीनाथ जी की जय’’ बोलते हुये ताली बजानी है॰अब नवानाथ जी को प्रणाम करते हुये ९ बार नाथ मंत्र बोलनी है साथ मे ही अपनी मनोकामना बोलनी है की ‘’मै अमुक गुरुजी का शिष्य/शिष्या अवघडनाथ दीक्षा प्राप्ति एवं दर्शन की अभिलाषा हेतु आपसे प्रार्थना करता/करती हु,कृपया आप इस मनोकामना को पूर्ण कर दीजिये’’,और पुष्प माला चढ़ा दीजिये यह क्रिया ७ दिन नित्य करनी है॰





 गोरक्ष जालंदर चर्पटाच्श्र अड़बंग कानिफ मच्छीद्राद्या:। चौरंगीरेवणकभात्रीसंज्ञा भूम्यां बभूवर्ननाथसिद्धा:। ।




तान्त्रोक्त गोरखक्षनाथ प्रत्यक्षीकरण मंत्र-
                                 

                                   । । ॐ ह्रीं श्रीं गों हुं फट स्वाहा । ।                                    
                   



 साधना समाप्ती मे आखरी दिवस पर गोरखनाथ जी की दर्शन होती है और साथ मे ही उनसे सूष्म-पात,शक्तिपात या मंत्र दीक्षा की माध्यम से दीक्षा की प्राप्ति होती है॰ येसा अगर साधक के साथ संभव नहीं हुआ तो चिंता की कोई बात नहीं यह क्रिया उसके साथ स्वप्न की माध्यम से हो ही जाती है॰ माला को आप सदैव संभाल कर रखिये यह माला आपको साबर साधना ओ मे शीघ्र सफलता प्रदान करती है यह इस साधना की विशेषता है॰

अत्यंत तीव्र वशीकरण प्रयोग .

तंत्र की क्रिया में तो सैकड़ो सम्मोहन प्रयोग है पर यह प्रयोग अपने आप में अचूक और अत्यंत तीष्ण,तुरंत असर दिखने वाली प्रयोग है.बाकि प्रयोग असफल हो सकती है परन्तु इस प्रयोग की सफलता किसी चमत्कार से कम नहीं.
यह प्रयोग अघोरि और कपाली ओकी है.जिसे संपन्न करने से पाहिले १०० बार सोच समज़कर ही करनी चाहिए.
अमावस्या की रात्रि में बगीचा या फिर घरमे किसी कोने में बैट जाईये और अपने आसन की निचे श्मशान से लाकर थोड़ी सी राख राख दे आसन लाल रंग की होनी चाहिये फिर दक्षिण दिशा की और मुहकर सामने उस व्यक्ति की चित्र रख दे जिसे पूर्ण वशीकरण या सम्मोहित करनी/करना है.माला लाल हकिक की होनी चाहिये.
इसके बाद उस चित्र के सामने मात्र ५१ माला मन्त्र जाप करनी है और येसा करने से आश्चर्यजनक रूप से चमत्कार देखने को मिलती है और जो आपकी सर्वथा विरोधी व्यक्ति है वह भी आपके अनुकूल हो कर आपके कहे अनुसार कार्य संपन्न करती है.

                                                                       मंत्र

                      ||ॐ ऐम ऐम अमुक वाश्यमानय मम आज्ञा परिपालय ऐम ऐम फट ||

यह प्रयोग दिखने में अत्यंत सरल है परन्तु प्रभाव अचूक देखने मिलती है और तुरंत ही जिसे सम्मोहित करना चाहते है उसे अपने वश में करने में समर्थ हो जाते है.

अघोर भैरवी साधना

अगर दुर्भाग्य साथ न छोडे और हर कदम पर बाधा बनकर उपस्थित हो,हर तरफ से जिवन मे खूशीया कौन नहि चाहते है परंतु पूर्वजन्म के येसे भि दोष है हमारे ज्यो हमे रुलाते है,ज्यो हमे शिष्य नहि बल्कि अनुयायि बनाते है.अब तो इन सारि दोषो से लढना है,नहि तो ये दोष हमे ज्योतीष्यीयो के गुलाम बना देगे.गुरु और इष्ट मे अविश्वास का जन्म कर देगे.
भगवान से भिक मांगना ये शिष्यो के कार्य नहि है.येसि अनुमति हमारे सदगुरुजी हमे नहि देते है..................................
’’ ब्रम्हांड से कह दो हमे भक्ति नहि साधना चाहिये ‘’ ये बात सद्गुरुजि ने कहि थि.....................
जिवन मे खूशिया सदगुरुजी कि क्रुपा आर्शिवाद से हि मिल सकति है. और उन्हिकि क्रुपा से मिलि है  अघोर भैरवी साधना ज्यो अत्यंत प्रभावि है और जिवन कि सारि बाधाओको दुर कर देति है दोषो सहित.
साधना सामग्री :- कालि हकीक माला, मट्टि का दीपक , काले वस्त्र और आसन ,कपूर .

विधि :- सर्वप्रथम स्नान करके साधना मे प्रवेश किजिये ,दक्षिण दिशा कि और मुख करते हुये साधना करनी है. अघोर भैरवी साधना से पूर्व हि गुरुपूजन एवँ गुरुमंत्र जाप और निखिल रक्षा कवच कि पाठ आवश्यक है. मट्टि कि दीपक मे कपूर जलाये और अग्नि कि लौ को देखते हुये कालि हकिक माला से 9 मालाये जाप 8 दिन करनी आवश्यक है और 9 वे दिन हवन किजिये ( हवन मे आहुति के लिये काले तिल, लौंग, कालि मिर्च का हि उपयोग करे ) तभी साधना पूर्ण मानी जाति है ,यह साधना गुप्त नवरात्रि मे करनी है , किसि विशेष मनोकामना हेतु हम संकल्प ले सकते है.

मंत्र : -

॥ ॐ अघोरे ऎँ घोरे ह्रीँ सर्वत: सर्वसर्वेभ्यो घोरघोरतरे श्री नमस्तेस्तु रुद्ररुपेभ्य: क्लीँ सौ: नम: ॥

साधना समाप्ति के बाद माला को जल मे किसी भि काले वस्त्र मे एक नारियल और सुपारि कि साथ बान्धकर विसर्जित किजिये.और जिवन मे कोइ भि समस्या आये तो इसि दीपक मे थोडि कपूर जलाते हुये अपनि समस्या बोलकर थोडि मंत्रा जाप कर लिजिये किसी भि समय मे अनुकुलता प्राप्त होगि.

कामख्या साधना

यह मंत्र वेदोक्त है और पुर्णता प्रभवि भि है, सिर्फ 3 हि दिन मे इस मंत्रा कि अनुभुतिया हमारे सामने आती है,इस साधनासे कइ अपुर्ण इच्याये त्वरित पूर्ण हो जाति है,परंतु मन मे अविश्वास जाग्रत हो तो साधना कि अनुभुतिया नहीं मिल पाति है, और ये साधना कम से कम 11 दिन तो करनि हि चहिये.
साधना किसी भि नवरात्रि मे कर सक्ते है, रोज मंत्र कि 108 बार पाठ मतलब 1 माला करनि है, आप चाहे तो अपनी अनुकुलता के नुसार 3, 5, या 11 मालाये भि कर सक्ते है,आसन लाल रंग कि हो वस्त्र कोइ भि हो सक्ति है,माला लाल हकिक या रुद्राक्ष कि.
मा भगवति या कामाख्या जि का चित्र स्थापित किजिये और चमेलि कि तेल का दिपक आवश्यक है,साथ मे साधना से पुर्व हि गुरुपूजन और गुरुमंत्रा कि जाप भि आवश्यक है,फिर कालभैरव मंत्रा कि 21 ,51 या 108 बार जाप भि आवश्यक है,और सद्गुरुजि से अपनि कामनापुर्ति हेतु प्रार्थना किजिये और कालभैरव जि से आज्ञा मांगिये.
॥ ॐ ह्रीम कालभैरवाय ह्रीम ॐ ॥
 अपनी मनोकामना का उच्यारन करते हुये एक लाल कनेर का फूल भगवति जि कि चरणोमे समर्पित किजिये और मंत्र जाप प्रारम्भ किजिये.

मंत्र : -
 ॐ कामाख्याम कामसम्पन्नाम कामेश्वरिम हरप्रियाम ।
       कामनाम देहि मे नित्यम कामेश्वरि नमोस्तुते ॥

रोग बाधा निवारण साधना.(पाताल क्रिया)

यह साधना पाताल क्रिया से सम्बंधित है,इस साधना कि कई अनुभूतिया है,और साधना भि एक दिन कि है.कई येसे रोग या बीमारिया है जिनका निवारण नहीं हो पाता ,और दवाईया भि काम नहीं करती ,येसे समय मे यह प्रयोग अति आवश्यक है.यह प्रयोग आज तक अपनी कसौटी पर हमेशा से ही खरा उतरा है .
प्रयोग सामग्री :-
                        एक मट्टी कि कुल्हड़ (मटका) छोटासा,सरसों का तेल ,काले तिल,सिंदूर,काला कपडा .
प्रयोग विधि :-
                       शनिवार के दिन श्याम को ४ या ४:३० बजे स्नान करके साधना मे प्रयुक्त हो जाये,सामने गुरुचित्र हो ,गुरुपूजन संपन्न कीजिये और गुरुमंत्र कि कम से कम ५ माला अनिवार्य है.गुरूजी के समक्ष अपनी रोग बाधा कि मुक्ति कि लिए प्रार्थना कीजिये.मट्टी कि कुल्हड़ मे सरसों कि तेल को भर दीजिये,उसी तेल मे ८ काले तिल डाल दीजिये.और काले कपडे से कुल्हड़ कि मुह को बंद कर दीजिये.अब ३६ अक्षर वाली बगलामुखी मंत्र कि १ माला जाप कीजिये.और कुल्हड़ के उप्पर थोडा सा सिंदूर डाल दीजिये.और माँ बगलामुखी से भि रोग बाधा मुक्ति कि प्रार्थना कीजिये.और एक माला बगलामुखी रोग बाधा मुक्ति मंत्र कीजिये.
मंत्र :-
|| ओम ह्लीम् श्रीं ह्लीम् रोग बाधा नाशय नाशय फट ||
मंत्र जाप समाप्ति के बाद कुल्हड़ को जमींन गाड दीजिये,गड्डा प्रयोग से पहिले ही खोद के रख दीजिये.और ये प्रयोग किसी और के लिए कर रहे है तो उस बीमार व्यक्ति से कुल्हड़ को स्पर्श करवाते हुये कुल्हड़ को जमींन मे गाड दीजिये.और प्रार्थना भि बीमार व्यक्ति के लिए ही करनी है.चाहे व्यक्ति कोमा मे भि क्यों न हो ७ घंटे के अंदर ही उसे राहत मिलनी शुरू हो जाती है.कुछ परिस्थितियों मे एक शनिवार मे अनुभूतिया कम हो तो यह प्रयोग आगे भि किसी शनिवार कर सकते है.

कुलदेवी कृपा प्राप्ति साधना

कुलदेवी सदैव हमारी कुल कि रक्षा करती है,हम पर चाहे किसी भी प्रकार कि कोई भी बाधाये आने वाली हो तो सर्वप्रथम हमारी सबसे ज्यादा चिंता उन्हेही ही होती है.कुलदेवी कि कृपा से कई जीवन के येसे कार्य है जिनमे पूर्ण सफलता मिलती है.
कई लोग येसे है जिन्हें अपनी कुलदेवी पता ही नहीं और कुछ येसे भी है जिन्हें कुलदेवी पता है परन्तु उनकी पूजा या फिर साधना पता नहीं है.तो येसे समय यह साधना बड़ी ही उपयुक्त है.यह साधना पूर्णतः फलदायी है और गोपनीय है.यह दुर्लभ विधान मेरी प्यारी गुरुभाई/बहन कि लिए आज सदगुरुजी कि कृपा से हम सभी के लिये.
इस साधना के माध्यम से घर मे क्लेश चल रही हो,कोई चिंता हो,या बीमारी हो,धन कि कमी,धन का सही तरह से इस्तेमाल न हो,या देवी/देवतओं कि कोई नाराजी हो तो इन सभी समस्या ओ के लिये कुलदेवी साधना सर्वश्रेष्ट साधना है.
सामग्री :-३ पानी वाले नारियल,लाल वस्त्र ,९ सुपारिया ,८ या १६ शृंगार कि वस्तुये ,खाने कि ९ पत्ते ,३ घी कि दीपक,कुंकुम ,हल्दी ,सिंदूर ,मौली ,तिन प्रकार कि मिठाई .

साधना विधि :-

सर्वप्रथम नारियल कि कुछ जटाये निकाले और कुछ बाकि रखे फिर एक नारियल को पूर्ण सिंदूर से रंग दे दूसरे को हल्दी और तीसरे नारियल को कुंकुम से,फिर ३ नारियल को मौली बांधे .
किसी बाजोट पर लाल वस्त्र बिछाये ,उस पर ३ नारियल को स्थापित कीजिये,हर नारियल के सामने ३ पत्ते रखे,पत्तों पर १-१ coin रखे और coin कि ऊपर सुपारिया स्थापित कीजिये.फिर गुरुपूजन और गणपति पूजन संपन्न कीजिये.
अब ज्यो पूजा स्थापित कि है उन सबकी चावल,कुंकुम,हल्दी,सिंदूर,जल ,पुष्प,धुप और दीप से पूजा कीजिये.जहा सिन्दूर वाला नारियल है वह सिर्फ सिंदूर ही चढ़े बाकि हल्दी कुंकुम नहीं इस प्रकार से पूजा करनी है,और चावल भी ३ रंगों मे ही रंगाने है,अब ३ दीपक स्थापित कर दीजिये.और कोई भी मिठाई किसी भी नारियल के पास चढादे .साधना समाप्ति के बाद प्रसाद परिवार मे ही बाटना है.शृंगार पूजा मे कुलदेवी कि उपस्थिति कि भावना करते हुये चढादे और माँ को स्वीकार करनेकी विनती कीजिये.
और लाल मूंगे कि माला से ३ दिन तक ११ मालाये मंत्र जाप रोज करनी है.यह साधना शुक्ल पक्ष कि १२,१३,१४ तिथि को करनी है.३ दिन बाद सारी सामग्री जल मे परिवार के कल्याण कि प्रार्थना करते हुये प्रवाहित कर दे.
मंत्र :-

|| ओम ह्रीं श्रीं कुलेश्वरी प्रसीद -  प्रसीद ऐम् नम : ||


साधना समाप्ति के बाद सहपरिवार आरती करे तो कुलेश्वरी कि कृपा और बढती है.

श्री बगलामुखी अस्त्र

इस साधना के २ नाम है,कुछ लोग बगलामुखी अस्त्र साधना कहते है तो कुछ लोग बृहदभानुमुखी पञ्चमास्त्र भी कहते है,यह साधना हमारे पास हो और हमे शत्रु कभी परेशान करे येसा कभी हो नहीं सकता,जब बगलामुखी साधना मे सफलता ना मिले तो यह साधना बगलामुखी सिद्धि के लिए बड़ी सहाय्यक साधना है.इस मंत्र का एक-एक बीज तीव्र है,और मंत्र जाप कि अनुभूतिया कुछ ही समय मे मिलने लगती है.माँ बगलामुखी जी को नक्षत्र स्तंभीनी भी कहा जाता है इसीलिये इनकी साधना ग्रह दोष भी कम करती है ,शत्रु बाधा हो या फिर मुकदमा चल रहा हो या फिर किसी प्रकार कि तंत्र बाधा हो इस साधना से तो राहत मिलती ही है,इस साधना को संपन्न करने के बाद हर क्षेत्र मे जितने कि आदत लग जाती है,जीवन कि कई बड़ी समस्याये कुछ ही समय मे समाप्त हो जाती है.स्मरणशक्ति मे भी वृद्धि होती है.

साधना विधान :-
माँ बगलामुखी जयंती पर ब्रम्हमुहूर्त मे ही साधना संपन्न कीजिये और स्नान करने से पहिले जल मे थोड़ी हल्दी डाल दीजिये ,पीले रंग कि आसन,वस्त्र आवश्यक है,मुख पश्चिम दिशा कि और होना चाहिये.सामने किसी बाजोट पर पीले रंग कि वस्त्र बिछाये और गुरुचित्र के साथ माँ बग्लाजिका चित्र स्थापित कीजिये,हल्दी से रंगे हुये चावल कि ५ ढेरिया बनाये,हर ढेरी पे साबुत हल्दी कि गाठे स्थापित कीजिये और उनकी पूजन कीजिये ,और घी का दीपक जलाये.
गुरुमंत्र कि ५ मालाये करनी आवश्यक है,फिर निखिल कवच का १ पाठ कीजिये.और बिना किसी माला के ९० मिनिट निचे दिए हुये मंत्र का जाप कीजिये,मंत्र जाप से पूर्व ही संकल्प लेना है.


मंत्र:-
|| ओम ह्लाम् ह्लीम् ह्लुम् ह्लैम् हलौम् ह्ल: ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः बगलामुखी ह्लाम् ह्लीम् ह्लुम् ह्लैम् हलौम् ह्ल: ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः जिव्हां कीलय कीलय ह्लाम् ह्लीम् ह्लुम् ह्लैम् हलौम् ह्ल: ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः बुद्धि नाशय नाशय ह्लाम् ह्लीम् ह्लुम् ह्लैम् हलौम् ह्ल: ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः हूं फट स्वाहा ||
इस मंत्र विधान को फिर से एक बार रात्रि काल मे ९ बजे के बाद दौराना है,ताकि साधना मे पूर्ण सिद्धि प्राप्त हो .यह साधना संपन्न होने के बाद आप जब भी चाहो तब इस मंत्र का २१,५१,१०८...... बार उच्च्यारण करके कार्य मे सिद्धि प्राप्त कर सकते है.दूसरे दिन साधना सामग्री को जल मे प्रवाहित कर दे.
लक्ष्मी साधना से पहिले इस मंत्र का २१ बार जाप करनेसे पैसे व्यर्थ मे खर्च भी नहीं होते है और टिक कर भी रहते है......

ऋण मुक्ति प्रयोग.

गुरुदेव प्रदत ऋण मुक्ति
मैं जहां एक बहुत ही सरल
अनुभूत साधना प्रयोग दे
रहा हु आप निहचिंत हो कर
करे बहुत जल्द आप इस अभिशाप
... से मुक्ति पा लेंगे !
विधि –
शुभ दिन जिस दिन
रविपुष्य योग
हो जा रवि वार हस्त नक्षत्र
हो शूकल पक्ष हो तो इस
साधना को शुरू करे
वस्त्र --- लाल रंग की धोतीपहन सकते है !
माला – काले हकीक की ले !
दिशा –दक्षिण !
सामग्री – भैरव यन्त्र
जा चित्र और हकीक
माला काले रंग की ! मंत्र संख्या – 12 माला 21
दिन करना है !
पहले गुरु पूजन कर आज्ञा लेऔर
फिर श्री गणेश
जी का पंचौपचार पूजन करे तद
पहश्चांत संकल्प ले ! के मैं गुरु स्वामी निखिलेश्वरा नन्द
जी का शिष्य अपने जीवन में
स्मस्थ ऋण मुक्ति के लिए
यहसाधना कर रहा हु हे भैरव
देव मुझे ऋण मुक्ति दे!जमीन पे
थोरा रेत विशा के उस उपर कुक्म से तिकोण बनाएउस में एक
पलेट में स्वास्तिक लिख कर उस
पे लालरंग का फूल रखे उस पे
भैरव यन्त्र की स्थापना करे
उस यन्त्र का जा चित्र
का पंचौपचार से पूजन करे तेल का दिया लगाए और भोग के
लिए गुड रखे जा लड्डू भी रख
सकते है ! मन को स्थिर रखते
हुये मन ही मन ऋण मुक्ति के
लिए पार्थना करे और जप
शुरूकरे 12 माला जप रोज करे इस प्रकार 21 दिन करे
साधना केबाद
स्मगरी माला यन्त्र और
जो पूजन किया है वोह समान
जल प्रवाह कर दे साधना के
दोरान रवि वार जा मंगल वार को छोटे
बच्चो को मीठा भोजनआदि जरूर
कराये ! शीघ्र ही कर्ज से
मुक्ति मिलेगी और कारोबार
में प्रगति भी होगी !
जय गुरुदेव !!

मंत्र—
ॐ ऐं क्लीम ह्रीं भमभैरवाये मम
ऋणविमोचनाये महां महा धन
प्रदाय क्लीम स्वाहा !!

मातंगी साधना.

प्रधान साधार विकल्प सत्ता स्वभाव भावद भुवन त्रयस्य |
सा विद्यया व्यक्तमपिहा माया ज्योतिः परा पातु जगंती नित्यं ||

दसमहाविद्या ओ मे भगवती मातंगी कि साधना अत्यंत सौभाग्यप्रद मानी जाती है,क्युकी यह केवल साधना ही नहीं अपितु सही अर्थो मे पुरे जीवन को आमूलचूल परिवर्तित कर देने कि ऐतिहासिक घटना है,इस साधना के बाद जीवन का कोई क्षेत्र अधूरा और शेष रहता ही नहीं है.ये बात किताबो मे आपको पढ़ने कि लिए मिल जायेगी परन्तु यह मेरी अनुभुतित साधना है,यह साधना संपन्न करने के बाद ही मुज़े हर क्षेत्र मे सफलता मिली है,
इस साधना के लाभ आज तक कभी पूर्ण स्पष्ट नहीं हो पाये ,क्युकी आप ज्यो भी इच्छा पूर्ती के लिए साधना करते है वह इच्छा पूर्ण हो जाती ही है,तो कैसे पता चलेगा कि इस साधना के कितने लाभ है.
मातंगी साधना कि सिद्धि पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास पर आधारित है,अन्यथा अभीष्ट सिद्धि कि संभावना नहीं बनेगी.
अक्षय तृतीया के दिन ''मातंगी जयंती'' होती है और आनेवाली वैशाख पूर्णिमा ''मातंगी सिद्धि दिवस'' होता है.इन १२ दिनों मे आप चाहे उतना मंत्र जाप कर सकते है,अगर येसी कोई साधना आप कर रहे है जिसमे सिद्धि नहीं मिल रही है या फिर सफलता नहीं मिल रही है,तो इन १२ दिनों मे आपकी मनचाही साधना मे सिद्धि प्राप्ति कि इच्छा कीजिये और मातंगी साधना संपन्न कीजिये.सफलता ही आपकी दासी बन जायेगी.

विनियोग :-
अस्य मंत्रस्य दक्षिणामूर्ति हृषीविराट छंद : मातंगी देवता ह्रीं बीजं हूं शक्तिः क्लीं कीलकं सर्वाभीष्ट सिद्धये जपे विनियोगः |
ध्यान:-
श्यामांगी शशिशेखरां त्रिनयनां वेदैः करैविर्भ्रतीं ,
पाषं खेटमथामकुशं दृध्मसिं नाशाय भक्त द्विशाम |
रत्नालंकरण ह्रीं प्रभोज्ज्वलतनुं भास्वत्किरीटाम् शुभां ;
मातंगी मनसा स्मरामि सदयां सर्वार्थसिद्धि प्रदाम ||

मंत्र :-

|| ओम ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट स्वाहा ||


इस साधना मे माँ मातंगी का चित्र,यंत्र ,और लाल मूंगा माला का महत्व बताया गया है परन्तु सदगुरुजी ने किसी शिविर मे यह कहा था सामग्री समय पे उपलब्ध ना हो तो किसी स्टील या ताम्बे कि प्लेट मे स्वास्तिक बनाये और उसपे एक सुपारी स्थापित कर दे और उसेही यंत्र माने,आपके पास मातंगी का चित्र ना हो तो आप '' माताजी ''को ही मातंगी स्वरुप मे पूजन करे,माताजी तो स्वयं ही '' जगदम्बा '' है,और माला कि विषय मे स्फटिक,लाल हकिक,रुद्राक्ष माला का उपयोग हो सकता है.साधना दिखने मे ही साधारण हो सकती है परन्तु बहुत तीव्र है,कम से कम ११ माला जाप आवश्यक है.और कोई १२५० मालाये कर ले तो सोने पे सुहागा,आज तक इस साधना मे किसी को असफलता नहीं मिली है,इतने अच्छे योग निर्मित हुये है इस साधना के लिए और क्या चाहिये.

स्फ़टिक शिवलिंग-भाग्योदय साधना.

मनुष्य मूलत: पृथ्वी का ही भाग है,और इसी तत्व से उसमे मानसिक तथा शारीरिक स्थायित्व आती है.इस प्रकार स्फ़टिक पृथ्वि तथा अन्य तत्वो से ग्रहो से उर्जा ग्रहण कर मनुष्य मे पुन: सन्चारीत करने कि शक्ति रखती है.एक प्रकार से यह ''शक्ति केंन्द्र'' है,जो उर्जा को ग्रहण कर नियन्त्रित करती है.उसे इस प्रकार से प्रवाहीत करती है कि व्यक्ती उस उर्जा को ग्रहण कर सके और देह कि उर्जा मे गुणात्मक परिवर्तन कर सके.यहा तक कि उच्च कोटि के शिवलिंग स्फ़टिक शिवलिंग होते है.जिसके सामने बैठने मात्र से उर्जा भाव संचारित होति है.
किसी महा-शिवरत्रि कि शिवीर मे सदगुरुजीने तीन श्लोक बताये थे,ज्यो इस प्रकार है......................

स्फ़टिक लिंगमाराघ्यं सर्वसौभाग्यदायकम |
धनं धान्यं प्रतिष्ठाम च आरोग्यं प्रददाती स: ||
स्फटिक लिंगं प्रतिष्ठांप्य याजती यो पुमान |
रोगं शोकं च दारिद्रयं सर्व नश्चती तद गृहात ||
पूजनादास्य लिंगस्य अभ्यर्चनात सश्रध्दया |
सर्वपाप विनिर्मुक्तः शिव सायुज्यमाप्नुयात ||

साधना विधि :-

किसी भी सोमवार को स्फटिक शिवजी को अक्षत के आसन पे स्थापित कीजिये,दक्षिणमुख होकर आसन पर बैठे.फिर दूध,दही घी,शहद, और शक्कर से निम्न मंत्रो के साथ स्नान कीजिये .

ॐ शं सद्दोजाताय नम:दुग्धं स्नानं समर्पयामि |
ॐ वं वामदेवाय नम:दधि स्नानं समर्पयामि |
ॐ यं अघोराय नम:घृत स्नानं समर्पयामि |
ॐ नं तत्पुरुषाय नम:मधु स्नानं समर्पयामि |
ॐ मं ईशानाय नम:शर्करा स्नानं समर्पयामि |
 फिर शुद्ध जल से स्नान कीजिये तथा दुसरे पात्र में कुंकुंम से स्वस्तिक बनाकर शिवलिंग को स्थापित कीजिये.धुप दीप पुष्प तथा अक्षत आदि से ''ॐ नम:शिवाय'' बोलते हुए संक्षिप्त पूजन कीजिये.इसके बाद दूध से बने नैवेद्य का भोग अर्पित कीजिये.फिर शिवलिंग पर दुग्ध मिश्रित जल से अभिषेक करते हुए निम्न मंत्र की १००८ बार जप करे.

मंत्र :-
|| ॐ शं शंकराय स्फटिक प्रभाय ॐ ह्रीं नम:||

अभिषेक वाले जल देवता को प्रणाम करते हुए प्रसाद रूप में ग्रहण कीजिये,यह प्रयोग २१ दिन का है ,इसके बाद शिवालिंग जी को पूजा स्थान में स्थापित कर दीजिये.

चमत्कारी मोहिनी प्रयोग

साधना विधि

बढ़िया सी इत्र की शीशी लीजिये ,और निम्न मंत्र को १०८ बार पढ़कर एक फूक शीशी के भीतर मारिये.इसी तरहा कुल एक हजार मंत्र पढ़ शीशी में दस फूक लग चुकी हो तो शीशी को किसी स्वच्छ स्थान पर रख दीजिये,उसी दिन शीशी की इत्र अन्दर ही अंदर चक्कर मारने लगेगी तब जान लीजिये की यह इत्र सिद्ध हो गयी है.फिर आप ईस इत्र की प्रयोग आपकी आवश्यकता की हिसाब से कर सकते है,और किसी भी स्त्री और पुरष को आप वश कर सकते है.
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use :-
यह सिद्ध इत्र की आपको जब भी प्रयोग करनी हो तो आप किसी भी स्त्री और पुरष की कपडे पर इत्र लगा दीजिये या सुंघा दीजिये तो वह व्यक्ति तुरंन्त ही वश में हो जाती है,यह बड़ी चमत्कारी प्रयोग है........................................
साधना शुक्रवार को करनी है.समय सुबह सूर्योदय से पाहिले.
आज तक तो कभी भी यह प्रयोग असफल नहीं हुयी है.
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मंत्र

|| अलहम्दोगवानी वो मेरेपर हो दीवानी जो न हो दीवानी सैयद कादर अब्दुल जलानी चुटटा पकड़कर दिवानी ||

नोट : प्रयोग की सफलता आपकी अच्छी कार्य की उपयोगिता पर निर्भर करती है,कृपया प्रयोग की इस्तेमाल कोई अच्छी कार्य की लिये कीजिये.और एक बारी में सफलता न मिली तो प्रयोग सिर्फ एक-दो बार फिर से कीजिये,क्युकी साधना करते समय कुछ कमी या त्रुटी रही तो असफलता मिल सकती है.

पूर्वजन्म पाप दोष निवारण साधना

इस मंत्र को '' श्री गोरक्षनाथ शाबरी गायत्री मंत्र '' कहा जाता है,मंत्र पूर्णतः शुद्ध है और तीव्र भी है.

मंत्र:-

सत नमो आदेश | गुरूजी |ओम गुरूजी ओम कारे शिव रुपी संध्या ने साध रुपी मध्याने हंस रुपी हंस - परमहंस द्वी  अक्षर गुरु तो गोरक्ष काया तो गायत्री ओम तो ब्रम्हा सोऽहं तो शक्ति,शून्य तो माता ,अवगति पिता ,अभय पंथ अचल पदवी निरन्जर गोत्र अलील वर्ण विहंगम जाती असंख्य प्रवर अनन्त शाखा सूक्ष्म वेद .आत्मा ज्ञानी ब्रह्मज्ञानी श्री ओम गो गोरक्षनाथ विद्महे शून्य पुत्राय धीमहि तन्नो गोरक्ष निरंजन प्रचोदयात ,इतना गोरक्ष गायत्री पठयन्ते हरते पाप श्रूयते सिद्धि निश्चया जपन्ते परम ज्ञान अमृतानंद मनुष्याते |नाथजी गुरूजी को आदेश |आदेश |श्री सदगुरु निखिलेश्वरानंन्द नाथ जी के चरण कमल को आदेश |आदेश |

इस मंत्र को किसी भि पूर्णिमा से प्रारंभ कर सकते है,मंत्र जाप से पहिले सदगुरुजी से मानसिक रूप मे आज्ञा प्राप्त करनी जरुरी है,मंत्र जाप माला या बिना किसी माला से भी कर सकते है.जिनकी गुरुदीक्षा हुई है उन्ही लोगो को मंत्र का लाभ हो सकता है.

इस साधना से नवनाथ कृपा होकर पाप नष्ट होते है और परम ज्ञान कि प्राप्ति होति है.साधना काल मे शुद्धता का पालन महत्वपूर्ण है अन्यथा हानि भी होती है.ज्यादा विवरण देना संभव नहीं.क्युकी यह साधना करनी ही अनुभूतियो कि बात है.

रुक्मिणी वल्लभ प्रयोग

 यह प्रयोग समस्त संसार को सम्मोहित करने वाली तथा विशेष रूप में पति या पत्नी को अपनी मनोकुल बनाने की लिए श्रेष्ट प्रयोग है.यदि घर में अशांति ,कलह ,लड़ाई -झगड़ें ,मतभेद हो,तो इस प्रयोग को अवश्य ही करनी चाहिये | इस प्रयोग से मनोवांछित पति या पत्नी प्राप्त हो जाती है .इच्छानुसार प्रेमी या प्रेमिका मिलती है या सम्बन्ध दृढ़ हो  जाती है .पूर्ण गृहस्थ सुख की प्राप्ति भी होती है.
    यह अद्वितीय प्रयोग है,जो कृष्णजन्माष्टमी की रात्री में या फिर ग्रहण की रात्रि में संपन्न करने से सिद्ध हो जाती है.


विधि :-

            कृष्णजन्माष्टमी की रात्री में या फिर ग्रहण की रात्रि में साधक स्नान कर पूर्वाभिमुख होकर बैठ जाये और हाथ में जल लेकर उस कार्य को स्पष्ट करे जिसके लिए यह प्रयोग संपन्न की जा रही है.इसके बाद मुंगे की माला से निम्न मन्त्र की ५१ माला मन्त्र जाप करने से यह प्रयोग पूर्ण हो जाती है और कुछ ही दिनों में उचित सफलता की प्राप्ति होती है.


मंत्र :-




              ||  ॐ नमो भगवते रूक्मिणी वल्लभाय नाम: ||




      प्रयोग समाप्त होने पर माला को नदी में प्रवाहित कर दे .इस प्रकार यह प्रयोग संपन्न करने पर साधक अपनी गृहस्थ जीवन में पूर्ण अनुकूलता एवं सफलता प्राप्ति कर सकता है.वास्तव में ही यह मन्त्र अपने आप में अद्वितीय है.

रविवार, 9 मार्च 2014

सिद्धि प्राप्ति हेतु काली के कुल्लुकादि मन्त्र

     इष्ट सिद्धि हेतु इष्टदेवता के ‘कुल्लुकादि मंत्रों’ का जप अत्यन्त आवश्यक हैं ।
                      अज्ञात्वा कुल्लुकामेतां जपते योऽधमः प्रिये ।
                      पञ्चत्वमाशु लभते सिद्धिहानिश्च जायते ।।
       दश महाविद्याओं के कुल्लिकादि अलग-अलग हैं । काली के कुल्लुकादि इस प्रकार हैं -
कुल्लुका मंत्र -
          क्रीं, हूं, स्त्रीं, ह्रीं, फट् यह पञ्चाक्षरी मंत्र हैं । मूलमंत्र से षडङ्ग-न्यास करके शिर में १२ बार कुल्लुका मंत्र का जप करें ।
                                                                   सेतुः-
“      ॐ” इस मंत्र को १२ बार हृदय में जपें । ब्राह्मण एवं क्षत्रियों का सेतु मंत्र “ॐ” हैं । वैश्यों के लिये “फट्” तथा शूद्रों के लिये “ह्रीं” सेतु मंत्र हैं । इसका १२ बार हृदय में जप करें ।
                                                             महासेतुः-
         “क्रीं” इस महासेतु मंत्र को कण्ठ-स्थान में १२ बार जप करें ।
निर्वाण जपः-
                            मणिपूर-चक्र (नाभि) में - ॐ अं पश्चात् मूलमंत्र के बाद ऐं अं आं इं ईं ऋं ॠं लृं ॡं एं ऐं ओं औं अं अः कं खं गं घं ङ चं छं जं झं ञं टं ठं डं ढं णं तं थं दं धं नं पं फं बं भं मं यं रं लं वं शं षं सं हं ळं क्षं ॐ का जप करें । पश्चात् “क्लीं” बीज को स्वाधिष्ठान चक्र में १२ बार जप करें । इसके बाद “ॐ ऐं ह्रीं शऽरीं क्रीं रां रीं रुं रैं रौं रं रः रमल वरयूं राकिनी मां रक्ष रक्ष मम सर्वधातून् रक्ष रक्ष सर्वसत्व वशंकरि देवि ! आगच्छागच्छ इमां पूजां गृह्ण गृह्ण ऐं घोरे देवि ! ह्रीं सः परम घोरे घोर स्वरुपे एहि एहि नमश्चामुण्डे डरलकसहै श्री दक्षिण-कालिके देवि वरदे विद्ये ! इस मन्त्र का शिर में द्वादश बार जप करें । इसके बाद ‘महाकुण्डलिनी’ का ध्यान कर इष्टमंत्र का जप करना चाहिए । मंत्र सिद्धि के लिये मंत्र के दश संस्कार भी आवश्यक हैं ।
                          जननं जीवनं पश्चात् ताडनं बोधनं तथा ।
                         अथाभिषेको विमलीकरणाप्यायनं पुनः ।
                         तर्पणं दीपनं गुप्तिर्दशैताः मंत्र संस्क्रियाः ।। 

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

पति वशीकरण मंत्र

ॐ काम मालिनी ठ : ठ : स्वाहा ..।।

इस मंत्र से बिगडैल पति या पर स्त्री गमन करने वाला पति अपने वश में आ जाता है ...।

दुर्भाग्य नाशक लक्ष्मी प्राप्ति का दिव्य मंत्र पाठ

  त्रैलोक्य पूजिते देवी कमले विष्णुवल्लभे                
यथा त्वमचलाकृष्णे तथा भव मयि स्थिरा
इश्वरी कमला लक्ष्मिश्चला   भर्तुहरिप्रिया
पद्मा पद्मालय संपदुचै श्री पद्मधारिणी
द्वादशैतानी नामानी लक्ष्मीं सपुज्य य: पठेत
स्थिरा लक्ष्मी :भवेतस्व पुत्र दरादिभि : सह

 
   ॐ र्र्हीं दूँ दुर्गे स्मृता हरसी

 भितिमशेष जन्तो :स्वस्थै स्मृता
मतिमतीव शुभां ददासि
यदंती यच्च दूरके भयं विदन्ति
 मामिह पवमानवितम् जही
दारिद्र्य दुख:भयहरिणी  का
त्वदन्या सर्वोपकारकरणाय

सद्रार्द चित्ता स्वाहा...
विधिक़र्ज़ मुक्ति आर्थिक स्थिति सुधरने के लिए चंचल
लक्ष्मी स्थिर करने के लिए इस पाठ को नित्य कीजिये
सुबह शाम कीजिये  घी का निरंजन जलाके देवी का पाठ करे
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अन्य मंत्र :  लक्ष्मी यक्शनी मंत्र
ॐ ऐं लक्ष्मीं श्रीं कमलधारिणी  कलहंसी  स्वाहा :
मनोकामना   धर के छःमॉस तक नित्य जाप करते रहे
अप्रतिम  परिवर्तन नज़र आयेगा पैसे की बरकत  के योग बनना शुरू होजायेगा ..

श्रीऋद्धि-सिद्धि के लिए श्री गणपति -साधना एवं अस्थिर लक्ष्मी स्थिर करने का लक्ष्मी मंत्र


अगर घर में आर्थिक स्थिति ठीक न हो  तो मायूस होने की जरुरत नहीं स्वच्छ और निर्मल भाव से इस साधना को करे निश्चित ही आप को परिवर्तन नजर आयेगा इसमें विशेष विधि विधान की जरुरत नहीं



‘कलौ चण्डी-विनायकौ’- कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है। सच पूछा जाए, तो विघ्न-विनाशक गणेश और सर्व-शक्ति-रुपा माँ भगवती चण्डी के बिना कोई उपासना पूर्ण हो ही नहीं सकती। ‘भगवान् गणेश’ सभी साधनाओं के मूल हैं, तो ‘चण्डी’ साधना को प्रवहमान करने वाली मूल शक्ति है। यहाँ भगवान् गणेश की साधना की एक सरल विधि प्रस्तुत है।


वैदिक-साधनाः


यह साधना ‘श्रीगणेश चतुर्थी’ से प्रारम्भ कर ‘चतुर्दशी’ तक (१० दिन) की जाती है। ‘साधना’ हेतु “ऋद्धि-सिद्धि” को गोद में बैठाए हुए भगवान् गणेश की मूर्ति या चित्र आवश्यक है।


विधिः पहले ‘भगवान् गणेश’ की मूर्ति या चित्र की पूजा करें। फिर अपने हाथ में एक नारियल लें और उसकी भी पूजा करें। तब अपनी मनो-कामना या समस्या को स्मरण करते हुए नारियल को भगवान् गणेश के सामने रखें। इसके बाद, निम्न-लिखित स्तोत्र का १०० बार ‘पाठ‘ करें। १० दिनों में स्तोत्र का कुल १००० ‘पाठ‘ होना चाहिए। यथा-


स्वानन्देश गणेशान्, विघ्न-राज विनायक ! ऋद्धि-सिद्धि-पते नाथ, संकटान्मां विमोचय।।१


पूर्ण योग-मय स्वामिन्, संयोगातोग-शान्तिद। ज्येष्ठ-राज गणाधीश, संकटान्मां विमोचय।।२


वैनायकी महा-मायायते ढुंढि गजानन ! लम्बोदर भाल-चन्द्र, संकटान्मां विमोचय।।३


मयूरेश एक-दन्त, भूमि-सवानन्द-दायक। पञ्चमेश वरद-श्रेष्ठ, संकटान्मां विमोचय।।४


संकट-हर विघ्नेश, शमी-मन्दार-सेवित ! दूर्वापराध-शमन, संकटान्मां विमोचय।।५


उक्त स्तोत्र का पाठ करने से पूर्व अच्छा होगा, यदि निम्न-लिखित मन्त्र का १०८ बार ‘जप’ किया जाए। यथा- “
ॐ श्री वर-वरद-मूर्त्तये वीर-विघ्नेशाय नमः ॐ”


साधना-काल में (१० दिन) साधना करने के बाद दिन भर उक्त मन्त्र का मन-ही-मन स्मरण करते रहें। ११ वें दिन, पहले दिन जो नारियल रखा था, उसे पधारे (फोड़कर) ‘प्रसाद’ स्वरुप अपने परिवार में बाँटे। ‘प्रसाद’ किसी दूसरे को न दें।


इस साधना से सभी प्रकार की मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। सभी समस्याएँ, बाधाएँ दूर होती है।

विशेष मंत्र साधना ज्ञान

मेरे साधक मित्रो कई साधक मित्र है जो कई समय से मंत्रो को जागृत करने में लगे हुए है मगर आज तक सफलता प्राप्त नहीं हुई  इसका कारन क्या है , तो मित्रो इसका विशेष कारन है पहले आप को अपने इष्ट देवता की कृपा दृष्टी  पाना उसके बगेर कोई भी मन्त्र या तंत्र सिद्ध नहीं होता यह कटु सत्य है , अन्यथा साधना व्यर्थ् है या फिर किसी गुरु के सानिध्य में रह कर साधना करे .या फिर किसी पारंगत यानि तैयार गुरु का मार्गदर्शन ले  तब ही आप अपने प्रयास में सफल हो पाएंगे ..किसी को अपना गुरु बनाने की इच्छआ जाहिर करे , वोह आप को अवश्य मार्गदर्शन करेंगे .मगर एक बात , आप का उद्देश्य योग्य होना चाहिए ..
जब तक आप किसी गुरु से दीक्षा नहीं ले लेते  तब तक आप को एक साधक होने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होगा ..
यह सारे नियम साबर मंत्रो , या नाथ पन्थो के  ,या अघोर पन्थो के  संप्रदाय में लागु होता है ..
तो मित्रो उचित कार्य प्रणाली को अपनाये और अपना जीवन सार्थक बनाये ..यही हमारी समूचे साधक मित्रो के लिए है ..
जय बम्म भोले आदेश गुरुजी  को 

साबर सोमवती साधना

जब बात पूर्णता की हो रही हो तो उसका अर्थ जीवन के दोनों पक्षों से होता है. अध्यात्मिक क्षेत्र में जहा हम विविध साधनाओ का अभ्यास करते हुए गुरु चरणों में लिन हो जाए उस तरह जीवन में यह भी जरूरू है की भौतिक पक्ष भी मजबूत हो. हमें मान सन्मान यश कीर्ति ऐश्वर्य की प्राप्ति हो सके. भौतिक जीवन में सफलता के बिना आध्यात्मिक पक्ष में सम्पूर्णता को प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील होने पर अत्यधिक संघर्षो का सामना करना पड़ता है, वरन उत्तम तो ये है की हम गृहस्थ और आध्यात्म दोनों को साथ में लेके अपनी मंजिल की तरफ आगे बढे. साधनाओ के अंतर्गत सभी प्रकार की गृहस्थ समस्याओ के निराकरण के लिए उपाय है, इसका सीधा अर्थ यही बनता है की साधना मार्ग सिर्फ आध्यात्मिक उन्नति के लिए नहीं है लेकिन भौतिक पक्ष में भी पूर्ण सफलता प्राप्त करने के लिए साधनाओ का सहारा लिया जा सकता है. आज के इस युग में जहाँ एक तरफ द्रव्य का ही बोलबाला है, जीवन के लिए एक उत्तम आय का स्त्रोत होना अत्यधिक जरुरी हो चूका है. लेकिन कई बार यु होता है की व्यक्ति विशेष को अपनी काबिलियत होने पर भी अपने कार्य क्षेत्र में योग्य पद या काम नहीं मिल पता है. या फिर काम मिलने पर भी कई प्रकार की बाधाए अडचने आने लगती है. कई बार योग्य जगह काम मिलने पर भी वेतन की समस्या होती है. कई लोगो की, खास कर के वह विद्यार्थी जो की अपनी पहली नौकरी की तलाश में हो उन्हें भी यह चिंता बराबर बनी रहती है की उन्हें यथायोग्य काम मिले जो की भविष्य में उनकी प्रगति के लिए एक आधार स्तंभ बने.
साबर साधनाओ में एसी कई साधनाए प्राप्त होती है जो की इस प्रकार के उद्देश्य में पूर्णता प्राप्त करने के लिए साधको का मार्ग प्रसस्त करती है. आगे की पंक्ति में भी एक एसी ही अद्भुत साधना दी जा रही है. इस साधना को करने पर साधक को योग्य काम मिलने में जोभी अडचने हो दूर हो जाती है, योग्य मनोकुलित व् प्रगति वर्धक स्थान पर नौकरी मिलती है. अगर किसीको अपनी नौकरी में किसी प्रकार की समस्या भी हो तो भी यह साधना से वह दूर होती है. संस्क्षेप्त में कहा जाए तो यह साधना काम व् नौकरी की हर समस्याओ को दूर करने क लिए ही बनी है.

इस साधना को साधक सोमवार मंगलवार शुक्रवार या शनिवार से शुरू कर सकते है
समय रात्रि के १० बजे बाद का रहे, दिशा उत्तर रहे.
रात्रि में स्नान करने के बाद सफ़ेद वस्त्र को धारण करे. इसके बाद अपने पूजा स्थान में बैठ कर के गुरु पूजन सम्प्पन करे और सफलता प्राप्ति के लिए प्रार्थना करे.
उसके बाद निम्न मंत्र का १०८ बार उच्चारण करे
मंत्र : ओम सोमावती भगवती बरगत देहि उत्तीर्ण सर्व बाधा स्तम्भय रोशीणी इच्छा पूर्ति कुरु कुरु कुरु सर्व वश्यं कुरु कुरु कुरु हूं तोशिणी नमः
यह जाप सफ़ेद हकीक माला से हो और उस माला को मंत्र जाप के बाद धारण कर ले.
यह क्रम पुरे ११ दिन तक रहे. इस साधना में रात्रि में भोजन करने से पहले थोडा खाध्य पदार्थ गाय को खिलाना चाहिए. ऐसा करने के बाद ही भोजन करे. अगर यह संभव न हो तो रात्रि में भोजन न करे.
इस साधना पूरी होने पर माला को विसर्जित नहीं करना चाहिए तथा गले में धारण करे रखना चाहिए.
यह साधना का करिश्मा है की यह साधना करने पर कुछ ही दिनों में यथायोग्य परिणाम प्राप्त होने लगते है.

साबर- देवी शक्ति-पाठ श्रीमहा-लक्ष्मी कमला


साबर-शक्ति-पाठ


पूर्व-पीठिका..
।। विनियोग ।।
श्रीसाबर-शक्ति-पाठ का, भुजंग-प्रयात है छन्द ।
भारद्वाज शक्ति ऋषि, श्रीमहा-काली काल प्रचण्ड ।।
ॐ क्रीं काली शरण-बीज, है वायु-तत्त्व प्रधान ।
कालि प्रत्यक्ष भोग-मोक्षदा, निश-दिन धरे जो ध्यान ।।
।। ध्यान ।।
मेघ-वर्ण शशि मुकुट में, त्रिनयन पीताम्बर-धारी ।
मुक्त-केशी मद-उन्मत्त सितांगी, शत-दल-कमल-विहारी ।।
गंगाधर ले सर्प हाथ में, सिद्धि हेतु श्री-सन्मुख नाचै ।
निरख ताण्डव छवि हँसत, कालिका ‘वरं ब्रूहि’ उवाचै ।।
।। पाठ-प्रार्थना ।।
जय जय श्रीशिवानन्दनाथ ! भगवम्त भक्त-दुःख-हारी ।
करो स्वीकार साबर-शक्ति-पाठ, हे महा-काल-अवतारी ।




श्रीमहा-लक्ष्मी कमला

ॐ विष्णु-प्रिया दिग्दलस्था नमो, विश्वाधार-जननि कमलायै नमो ।
बीजाक्षरों की तुम्हीं सृष्टि करती, चरण-शरण भक्त के क्लेश हरती ।।
सिन्धु-कन्या माया-बीज-काया, मोह-पाश से जग को भ्रमाया ।
योगी भी हुए नहैं हैरान तुमसे, कराओ अन्तर्बहिर्याग नित्य मुझसे ।।
न करता हूँ जाप-पूजा मैं तेरी, इतना ही जानता हूँ माँ तू मेरी ।
पद्म-चक्र-शंख-मधु-पात्र धारे, विकट वीर योद्धा तूने सँहारे ।।
श्रीअपराजिता वैष्णवी नाम तेरा, माँ एकाक्षरी तू आधार मेरा ।
तू ही गुरु-गोविन्द करुणा-मयी, जै जै श्रीशिवानन्दनाथ-लीला-मयी ।।
ऐरावत है शुण्डाभिषेक करते, दे प्रत्यक्ष दरशन हे विश्व-भर्ते ।
योग-भोगदा रमा विष्णु-रुपा, मेरी कामधेनु काम-स्वरुपा ।।
सिद्धैशवर्य-दात्री हे शेष-शायी, करे दास बिनती करो माँ सहाई ।
पद्मा चञ्चला श्रीलक्ष्मी कहाई, पीताम्बरा तू गरुड़-वाहना सुहाई ।।
त्रिलोक-मोहन-करी कामिनी, जयति जय श्रीहरि-भामिनी ।
रुक्मिणी राज्ञी अर्थ-क्लेश-त्राता, जय श्रीधन-दात्री विश्व-माता ।।
महा-लक्ष्मी लक्ष्मणा श्यामलांगी, पद्म-गन्धा श्री श्रीकोमलांगी ।
कालिन्दी कमले कर्म-दोष-हन्त्री, सुदर्शनीया ग्रीवा में माला वैजन्ती ।।


श्रीमहा-लक्ष्मी कमला समर्पणम् ।।


विधि :- ।।श्रीसाबर-शक्ति-पाठं सम्पूर्णं, शुभं भुयात्।।
उक्त श्री ‘साबर-शक्ति-पाठ‘ के रचियता ‘ योगिराज’ श्री शक्तिदत्त शिवेन्द्राचार्य नामक कोई महात्मा रहे है। उनके उक्त पाठ की प्रत्येक पंक्ति रहस्य-मयी है। पूर्ण श्रद्धा-सहित पाठ करने वाले को सफलता निश्चित रुप से मिलती है, ऐसी मान्यता है।
किसी कामना से इस पाठ का प्रयोग करने से पहले तीन रात्रियों में लगातार इस पाठ की १११ आवृत्तियाँ ‘अखण्ड-दीप-ज्योति’ के समक्ष बैठकर कर लेनी चाहिए। तदनन्तर निम्न प्रयोग-विधि के अनुसार निर्दिष्ट संख्या में निर्दिष्ट काल में अभीष्ट कामना की सिद्धि मिल सकेगी।

सर्व बाधा मुक्ति शाबर मंत्र


सर्व बाधा मुक्ति शाबर मंत्र 

  ये मंत्र योगी  गुरु गोरखनाथ प्रणित हैं  का शाबर मंत्र 

मंत्र 

ॐ वज्र में कोठा, वज्र में ताला, वज्र में बंध्या दस्ते द्वारा, तहां वज्र का लग्या किवाड़ा, वज्र में चौखट, वज्र में कील, जहां से आय, तहां ही जावे, जाने भेजा, जांकू खाए, हमको फेर न सूरत दिखाए, हाथ कूँ, नाक कूँ, सिर कूँ, पीठ कूँ, कमर कूँ, छाती कूँ जो जोखो पहुंचाए, तो गुरु गोरखनाथ की आज्ञा फुरे, मेरी भक्ति गुरु की शक्ति, फुरो मंत्र इश्वरोवाचा. 




विधि - सात कुओ या किसी नदी से सात बार जल लाकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए रोगी को स्नान करवाए तो उसके ऊपर से सभी प्रकार का किया-कराया उतर जाता है.