शनिवार, 2 मई 2015

चौसठ कलाएँ


भारतीय साहित्य में 64 कलाओं का वर्णन है, जो इस प्रकार हैं -
1- गानविद्या
2- वाद्य : भांति-भांतिके बाजे बजाना
3- नृत्य
4- नाट्य
5- चित्रकारी
6- बेल-बूटे बनाना
7- चावल और पुष्पादिसे पूजा के उपहार की रचना करना
8- फूलों की सेज बनान
9- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना
10- मणियों की फर्श बनाना
11- शय्मा-रचना
12- जलको बांध देना
13- विचित्र सििद्धयां दिखलाना
14- हार-माला आदि बनाना
15- कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना
16- कपड़े और गहने बनाना
17- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना
18- कानों के पत्तों की रचना करना
19- सुगंध वस्तुएं-इत्र, तैल आदि बनाना
20- इंद्रजाल-जादूगरी
21- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना
22- हाथ की फुतीकें काम
23- तरह-तरह खाने की वस्तुएं बनाना
24- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना
25- सूई का काम
26- कठपुतली बनाना, नाचना
27- पहली
28- प्रतिमा आदि बनाना
29- कूटनीति
30- ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी
31- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना
32- समस्यापूर्ति करना
33- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना
34- गलीचे, दरी आदि बनाना
35- बढ़ई की कारीगरी
36- गृह आदि बनाने की कारीगरी
37- सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा
38- सोना-चांदी आदि बना लेना
39- मणियों के रंग को पहचानना
40- खानों की पहचान
41- वृक्षों की चिकित्सा
42- भेड़ा, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति
43- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना
44- उच्चाटनकी विधि
45- केशों की सफाई का कौशल
46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना
47- म्लेच्छ-काव्यों का समझ लेना
48- विभिन्न देशों की भाषा का ज्ञान
49- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना
50- नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना
51- रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना
52- सांकेतिक भाषा बनाना
53- मनमें कटकरचना करना
54- नयी-नयी बातें निकालना
55- छल से काम निकालना
56- समस्त कोशों का ज्ञान
57- समस्त छन्दों का ज्ञान
58- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या
59- द्यू्त क्रीड़ा
60- दूरके मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण
61- बालकों के खेल
62- मन्त्रविद्या
63- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या
64- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

श्वेतार्क गणेश साधना , पूजन एवं महत्व



शास्त्रों में श्वेतार्क के बारे में कहा गया है - ‘‘ जहां कहीं भी यह पौधा अपने आप उग आता है, उसके आस-पास पुराना धन गड़ा होता है । जिस घर में श्वेतार्क की जड़ रहेगी, वहां से दरिद्रता स्वयं पलायन कर जाएगी । इस प्रकार मदार का यह पौधा मनुष्य के लिए देव कृपा, रक्षक एवं समृद्धिदाता है । सफेद मदार की जड़ में गणेशजी का वास होता है, कभी-कभी इसकी जड़ गणेशजी की आकृति ले लेती है । इसलिए सफेद मदार की जड़ कहीं से भी प्राप्त करें और उसकी श्रीगणेश की प्रतिमा बनवा लें । उस पर लाल सिंदूर का लेप करके उसे लाल वस्त्र पर स्.थापित करें । यदि जड़ गणेशाकार नहीं है, तो किसी कारीगर से आकृति बनवाई जा सकती है । शास्त्रों में मदार की स्तुति इस मंत्र से करने का विघान है ।

चतुर्भुज रक्ततनुंत्रिनेत्रं पाशाकुशौ मोदरक पात्र दन्तो ।
करैर्दधयानं सरसीरूहस्थं गणाधिनाभंराशि चू यडमीडे ।।

गणेशोपासना में साधक लाल वस्त्र, लाल आसन, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करें । नेवैद्य में गुड़ व मूंग के लडडू अर्पित करें । ‘‘ ऊँ वक्रतुण्डाय हुम् ’’ मंत्र का जप करें । श्रद्धा और भावना से की गई श्वेतार्क की पूजा का प्रभाव थोड़े बहुत समय बाद आप स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने लगेंगे । तंत्र शास्त्र में श्वेतार्क गणपति की पूजा का विधान है । यह आम लक्ष्मी व गणपति की प्रतिमाओं से भिन्न होती है । यह प्रतिमा किसी धातु अथवा पत्थर की नहीं बल्कि जंगल में पाये जाने वाले एक पौधे  का श्वेत आक के नाम से जाना जाता है । इसकी जड़ कम से कम 27 वर्ष से ज्यादा पुरानी हो उसमें स्वतः ही गणेशजी की प्रतिमा बन जाती है । यह प्रकृति का एक आश्चर्य ही है । श्वेतक आक की जड़ (मूल) यदि खोदकर निकल दी जाये तो नीचे की जड़ में गणपति जी की प्रतिमा प्राप्त होगी । इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से साधक को धन-धान्य की प्राप्ति होती है । यह प्रतिमा स्वतः सिद्ध होती है । तन्त्र शास्त्रों के अनुसार ऐसे घर में जहां यह प्रतिमा स्ािापित हो, वहां रिद्धी-सिद्ध तथा अन्नपूर्णा देवी वास् करती है ।
            श्वेतार्क की प्रतिमा रिद्धी-सिद्ध की मालिक होती है । जिस व्यक्ति के घर में यह गणपति की प्रतिमा स्ािापित होगी उस घर में लक्ष्मी जी का निवास होता है तथा जहां यह प्रतिमा होगी उस स्थान में कोई भी शत्रु हानि नहीं पहुंचा सकता । इस प्रतिमा के सामने नित्य बैठकर गणपति जी का मूल मंत्र जपने से गणपति जी के दर्शन होते हैं तथा उनकी कृपा प्राप्त होती है । श्वेतक आक की गणपति की  प्रतिमा अपने पूजा स्थान में पूर्व दिशा की तरफ ही शता\शता स्थापित   करें । ‘‘ ओम गं गणपतये नमः ’’ मंत्र का प्रतिदिन जप करने । जप के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह जप करें तो जप कल में ही साधक की हर मनोकामना गणपति जी पूरी करते हैं ।
स्वास्थ्य और धन के लिए श्वेत आर्क गणपति: श्वेतार्क वृक्ष से सभी परिचित हैं । इसे सफेद आक, मदार, श्वेत आक, राजार्क आदि नामों से जाना जाता है । सफेद फूलों वाले इस वृक्ष को गणपति का स्वरूप माना जाता है । इसलिए प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जहां भी यह पौधा रहता है, वहां इसकी पूजा की जाती है । इससे वहां किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती । वैसे इसकी पूजा करने से साधक को काफी लाभ होता है । अगर रविवार या गुरूवार के दिन पुष्प नक्षत्र में विधिपूर्वक इसकी जड़ को खोदकर ले आएं और पूजा करें तो कोई भी विपत्ति जातकों को छू भी नहीं सकती । ऐसी मान्यता है कि इस जड़ के दर्शन मात्र से भूत-प्रेत जैसी बाधाएं पास नहीं फटकती । अगर इस पौधे की टहनी तोड़कर सुखा लें और उसकी कलम बनाकर उसे यंत्र का निर्माण करें , तो यह यंत्र तत्काल प्रभावशाली हो जाएगा । इसकी कलम में देवी सरस्वती का निवास माना जाता है । वैसे तो इसे जड़ के प्रभाव से सारी विपत्तियां समाप्त हो जाती हैं । इसकी जड़ में दस से बारह वर्ष की आयु में भगवान गणेश की आकृति का निर्माण होता है । यदि इतनी पुरानी जड़ न मिले तो वैदिक विधि पूर्वक इसकी जड़ निकाल कर इस जड़ की लकड़ी में गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर बनाएं । यह आपके अंगूठे से बड़ी नहीं होनी चाहिए । इसकी विधिवत पूजा करें । पूजन में लाल कनेर के पुष्प अवश्य इस्तेमाल में लांए । इस मंत्र ‘‘ ऊँ पंचाकतम् ऊँ अंतरिक्षाय स्वााहा ’’ से पूजन करें और इसके पश्चात इस मंतर
‘‘ ऊँ ह्रीं पूर्वदयां ऊँ ही्रं फट् स्वाहा ’’ से 108 आहुति दें । लाल कनेर के पुष्प शहद तथा शुद्ध गाय के घी से आहुति देने का विधान है । इसके बाद 11 माला जप नीचे लिखे मंत्र का करंे और प्रतिदिन कम से कम 1 माला करें । ‘‘ ऊँ गँ गणपतये नमः ’’ का जप करें । अब ’’ ऊँ ह्रीं श्रीं मानसे सिद्धि करि ह्रीं नमः ’’  मंत्र बोलते हुए लाल कनेर के पुष्पों को नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें । धार्मिक दृष्टि से श्वेत आक को कल्प वृक्ष की तरह वरदायक वृक्ष माना गया है । श्रद्धा पूर्वक नतमस् तक होकर इस पौधे से कुछ माँगन पर यह अपनी जान देकर भी माँगने वाले की इच्छा पूरी करता है । यह भी कहा गया है कि इस प्रकार की  इच्छा शुद्ध होनी चाहिए । ऐसी आस्था भी है कि इसकी जड़ को पुष्प नक्षत्र में विशेष विधिविधान के साथ जिस घर में स्ािापित किया जाता है वहाँ स्थायी रूप से लक्ष्मी का वास बना रहता है और धन धान्य की कमी नहीं रहती । श्वेतार्क के ताँत्रिक, लक्ष्मी प्राप्ति, ऋण नाशक, जादू टोना नाशक, नजर सुरक्षा के इतने प्रयोग हैं कि पूरी किताब लिखी जा सकती है । थोड़ी सी मेहनत कर आप भी अपने घर के आसपास या किसी पार्क आदि में श्वेतार्क का पौधा प्राप्त कर सकते हैं । श्वेतार्क गणपति घर में स्ािापित करने से सिर्फ गणेश जी ही नहीं बल्कि माता लक्ष्मी और भगवान शिव की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है । सिद्धी की  इच्छा रखने वालों को 3 मास तक इसकी साधन करने से सिद्धी प्राप्त होती है । जिनके पास धन न रूकता हो या कमाया हुआ पैसा उल्टे सीधे कामों में जाता हो उन्हें अपने घर में श्वेतार्क गणपति की स्.थापना करनी चाहिए । जो लोग कर्ज में डूबे हैं उनके लिए कर्ज मुक्ति का इससे सरल अन्य कोई उपाय नहीं है । जो लोग ऊपरी बाधाओं और रोग विशेष से ग्रसित हैं इसकी पूजा से वायव्य बाधाओं से तुरंत मुक्ति और स्वास्थ्य में अप्रत्याशित लाभ पा सकते हैं । जिनके बच्चों का पढ़ने में मन न लगता हो वे इसकी स्.थापना कर बच्चों की एकाग्रता और संयम बढ़ा सकते है । पुत्रकाँक्षी यानि पुत्र कामना करने वालों को गणपति पुत्रदा स्त्रोत का पाठ करना चाहिए ।
 श्वेतार्क गणेश साधना:  हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को अनेक रूप में पूजा जाता है इनमें से ही एक श्वेतार्क गणपति भी है । धार्मिक लोक मान्ताओं में धन, सुख-सौभाग्य समृद्धि ऐश्वर्य और प्रसन्नता के लिए श्वेतार्क के गणेश की मूर्ति शुभ फल देने वाली मानी जाती है । श्वेतार्क के गणेश आक के पौधे की जड़ में बनी प्राकृतिक बनावट रूप में प्राप्त होते हैं । इसे पौधे की एक दुर्लभ जाति सफेद श्वेतार्क होती है जिसमें सफेद पत्ते और फूल पाए जाते हैं इसी सफेद श्वेतार्क की जड़ की बाहरी परत को कुछ दिनों तक पानी में भिगोने के बाद निकाला जाता है तब इस जड़ में भगवान गणेश की मूरत दिखाई देती है । इसकी जड़ में सूंड जैसा आकार तो अक्सर देखा जा सकता है । भगवान श्री गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि के दाता माना जाता है । इसी प्रकार श्वेतार्क नामक जड़ श्री गणेश जी का रूप मानी जाती है श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है । श्वेतार्क की जड़ श्री गणेशजी का रूप मानी जाती है। श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है । श्वेतार्क की जड़ को तंत्र प्रयोग एवं सुख-समृद्धि हेतु बहुत उपयोगी मानी जाती है । गुरू पुष्प नक्षत्र में इस जड़ का उपयोग बहुत ही शुभ होता है । यह पौधा भगवान गणेश के स्वरूप होने के कारण धार्मिक आस्था को और गहरा करता है ।
श्वेतार्क गणेश पूजन: श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा को पूर्व दिशा की तरफ ही स्.थापित करना चाहिए तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह गणेश मंत्रों का जप करने से सर्वकामना सिद्ध होती है । श्वेतार्क गणेश पूजन में लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करनी चाहिए । नेवैद्य में लडडू अर्पित करने चाहिए ‘‘ ऊँ वक्रतुण्डाय हुम् ’’ मंत्र का जप करते हुए श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के प्रभावस्वरूप् प्रत्यक्ष रूप से इसके शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है । तन्त्र शास्त्र में भी श्वेतार्क गणपति की पूजा का विशेष बताया गया है । तंत्र शास्त्र अनुसार घर में इस प्रतिमा को स्ािापित करने से ऋद्धि-सिद्धि कि प्राप्ति होती है । इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से भक्त को धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा लक्ष्मी जी का निवास होता है । इसके पूजन द्वारा शत्रु भय समाप्त हो जाता है । श्वेतार्क प्रतिमा के सामने नित्य गणपति जी का मंत्र जाप करने से गणेशजी का आर्शिवाद प्राप्त होता है तथा उनकी कृपा बनी रहती है ।
श्वेतार्क गणेश महत्व: दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ ही श्वेतार्क गणेश जी का पूजन व अथर्वशिर्ष का पाठ करने से बंधन दूर होते हैं और कार्यों में आई रूकावटें स्वत: ही दूर हो जाती है । धन की प्राप्ति हेतु श्वेतार्क की प्रतिमा को दीपावली की रात्रि में षडोषोपचार पूजन करना चाहिए । श्वेतार्क गणेश साधना अनेकों प्रकार की जटिलतम साधनाओं में सर्वाधिक सरल एवं सुरक्षित साधना है । श्वेतार्क गणपति समस्त प्रकार के विघनों के नाश के लिए सर्वपूजनीय है । श्वेतार्क गणपति की विधिवत स्ािापन और पूजन से समस्त कार्य साधानाएं आदि शीघ्र निर्विघं संपन्न होते है। । श्वेतार्क गणेश के सम्मुख मंत्र का प्रतिदिन 10 माला जप करना चाहिए तथा ‘‘ ऊँ नमो हस्ति - मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट - महात्मने आं क्रों हीं क्लीं ह्रीं हूं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा ’’ साधना से सभी इष्ट कार्य सिद्ध होते हैं 

आंकड़े के चमत्कारी उपाय

यदि आप किसी रोग या अन्य शारीरिक समस्या पीडि़त हैं और दवाओं का असर भी ठीक से नहीं हो रहा है तो यह चिंता का विषय है। जब दवाओं का भी असर ना हो तो संभव है कि किसी नकारात्मक शक्ति का बुरा असर आप पर हो। ऐसे में उस नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए आंकड़े के चमत्कारी उपाय अपनाने चाहिए।
यहां दिए गए फोटो में जानिए एक प्राचीन चमत्कारी उपाय जिससे आपकी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां दूर हो जाएंगी साथ ही धन की कमी से भी राहत मिलेगी...
पेड़-पौधों का सबसे बड़ा फायदा है कि उनसे हमें प्राणवायु ऑक्सीजन गैस प्राप्त होती है। पेड़-पौधों से ही प्राकृतिक संतुलन बना रहता है और सभी मौसम नियमित रहते हैं। हर परिस्थिति में हरियाली हमारे लिए फायदेमंद ही है। इन फायदों के साथ ही शास्त्रों के अनुसार पौधों के कई धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व भी बताए गए हैं। एक चमत्कारी पौधा है आंकड़े का पौधा। इस पौधे के कई प्रकार उपाय बताए गए हैं।
आंकड़े का पौधा ऐसा है जिससे हम कई चमत्कारिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। हमारे घर या घर के आसपास यह पौधा हो तो यह काफी फायदेमंद रहता है। इस पौधे को आंक, अकौआ नामों से जाना जाता है।
यह सामान्यत: जंगलों में आसानी से पनप जाता है, लेकिन शहरों में भी यह आसानी से दिखाई दे जाता है। यह पौधा जहां कहीं खाली बंजर जमीन होती है वहां पनप जाता है। यह एक विषैला पौधा है। आंकड़े के पौधे से सफेद दूध भी निकलता है।
यदि किसी व्यक्ति को अपने शरीर की रक्षा नकारात्मक शक्तियों से, बीमारियों से, बुढ़ापे की परेशानियों से करनी हो तो उसे आंकड़े के पौधे का यह उपाय अपनाना चाहिए। उपाय के अनुसार आंकड़े के पौधे की जड़ का एक छोटा सा टुकड़ा गले में ताबीज के साथ धारण करना चाहिए।
ध्यान रखें ताबीज के लिए काले धागे का प्रयोग करें। मार्केट में कई प्रकार के ताबीज आसानी से मिल जाते हैं। अत: उस ताबीज में आंकड़े की जड़ को डालकर धारण करें। इस उपाय से आपके शरीर की रक्षा होगी, क्योंकि यह ताबीज किसी कवच के समान काम करेगा।
 यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से परेशान है तो वह रवि पुष्य के दिन आंकड़े एवं अरण्ड की जड़ निमंत्रण देकर तोड़कर ले आएं। जड़ तोडऩे से पहले जड़ को निमंत्रण दें कि आप हमारे साथ चलिए। इसके बाद घर पर इन जड़ों को गंगाजल से धोएं, सिंदूर आदि पूजन सामग्री अर्पित कर पूजन करें। पूजन के दौरान श्रीगणेशाय नम: मंत्र का जप 108 बार करें।
शास्त्रों अनुसार आंकड़े के फूल शिवलिंग पर चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। आंकड़े पौधा मुख्यद्वार पर या घर के सामने हो तो बहुत शुभ माना जाता है। इसके फूल सामान्यत: सफेद रंग के होते हैं। विद्वानों के अनुसार कुछ पुराने आंकड़ों की जड़ में श्रीगणेश की प्रतिकृति निर्मित हो जाती है जो कि साधक को चमत्कारी लाभ प्रदान करती है।
ज्योतिष के अनुसार जिस घर के सामने या मुख्यद्वार के समीप आंकड़े का पौधा होता है उस घर पर कभी भी किसी नकारात्मक शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके अलावा वहां रहने वाले लोगों को तांत्रिक बाधाएं कभी नहीं सताती। घर के आसपास सकारात्मक और पवित्र वातावरण बना रहता है जो कि हमें सुख-समृद्धि और धन प्रदान करता है। ऐसे लोगों पर महालक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है और जहां-जहां से लोग कार्य करते हैं वहीं से इन्हें धन लाभ प्राप्त होता है

जिंदगी का दूसरा नाम परेशानी है

 दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं जो पूरी तरह से सुखी हो। सभी के जीवन में कुछ न कुछ परेशानी अवश्य होती है। इन परेशानियों को कुछ साधारण उपाय कर काफी हद तक समाप्त किया जा सकता है। समस्याओं का निदान करने वाले कुछ साधारण उपाय इस प्रकार हैं-
उपाय
1- घर के मुख्य द्वार पर सफेद आंकड़े का पौधा लगाने से उस घर के सदस्यों पर कोई तांत्रिक अथवा ऊपरी बाधा असर नहीं करती। साथ ही उस घर में धन का अभाव नहीं रहता।
2- घर के ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व में तुलसी, केला एवं निर्गुण्डी के पौधे रोपने से उस घर के अधिकांश वास्तुदोष स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं।
3- सुबह, दोपहर व शाम के समय गणेशजी के बाहर नामों का स्मरण करने से साधक के बिगड़ते कार्य बनने लगते हैं।
4- किसी भी प्रकार के दोषों के परिणामस्वरूप उत्पन्न ऋणात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए घर के मंदिर में रोज लोबान, कपूर, गुग्गल, देशी घी एवं चंदन का चूरा मिलाकर गाय के कण्डे पर धूनी देना अत्यंत फायदेमंद होता है।
5- अपामार्ग (आकड़ा) की जड़ को पानी में घिसकर तथा उसमें थोड़ा सा गोरोचन मिलाकर तिलक करने से किसी भी व्यक्ति में विशिष्ट शक्ति आ जाती है, जिससे वह किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकता है।

गोरोचन


जांगम द्रव्यों में गोरोचन आज के जमाने में एक दुर्लभ वस्तु हो गया है।वैसे नकली गोरोचन पूजा-पाठ की दुकानों में भरे पड़े हैं।छोटी-छोटी प्लास्टिक की शीशियों में उपलब्ध होने वाले पीले से पदार्थ को गोरोचन से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है।
गोरोचन मरी हुयी गाय के शरीर से प्राप्त होता है।कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है,किन्तु वस्तुतः इसका नाम "गोपित्त" है,यानी कि गाय का पित्त। शरीर में सर्वव्यापी पित्त का मूल स्थान पित्ताशय(Gallbladar) होता है।पित्ताशय की पथरी आजकल की आम बीमारी जैसी है।मनुष्यों में इसे शल्यक्रिया द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।गाय की इसी बीमारी से गोरोचन प्राप्त होता है।वैसे स्वस्थ गाय में भी किंचित मात्रा में पित्त तो होगा ही- उसके पित्ताशय में,जिसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। मस्तक के एक खास भाग पर भी यह पदार्थ- गोल,चपटे,तिकोने,लम्बे,चौकोर- विभिन्न आकारों में एकत्र हो जाता है,जिसे चीर कर निकाला जा सकता है।हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह एक अति सुगन्धित पदार्थ है,जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है।ताजी अवस्था में लस्सेदार,और सूख जाने पर कड़ा- कंकड़ जैसा हो जाता है।
गोपित्त,शिवा,मंगला,मेध्या,भूत-निवारिणी,वन्द्य आदि इसके अनेक नाम हैं,किन्तु सर्वाधिक प्रचलित नाम गोरोचन ही है।शेष नाम साहित्यिक रुप से गुणों पर आधारित हैं।गाय का पित्त- गोपित्त।शिवा- कल्याणकारी।मंगला- मंगलकारी।मेध्या- मेधाशक्ति बढ़ाने वाला।भूत-निवारिणी- भूत से त्राण दिलाने वाला।वन्द्य- पूजादि अति वन्द्य- आदरणीय।
आयुर्वेद और तन्त्र शास्त्र में इसका विशद प्रयोग-वर्णन है।अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है। यन्त्र-लेखन,तन्त्र-साधना,तथा सामान्य पूजा में भी अष्टगन्ध-चन्दन-निर्माण में गोरोचन की अहम् भूमिका है। हालाकि विभिन्न देवताओं के लिए अलग-अलग प्रकार के अष्टगन्ध होते हैं,किन्तु गोरोचन का प्रयोग लगभग प्रत्येक अष्टगन्ध में विहित है।
गोरोचन को रविपुष्य योग में साधित करना चाहिए।सुविधानुसार कभी भी प्राप्त हो जाय,किन्तु साधना हेतु शुद्ध योग की अनिवार्यता है।साधना अति सरल है- विहित योग में सोने या चांदी,अभाव में तांबे के ताबीज में शुद्ध गोरोचन को भर कर यथोपलब्ध पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें।तदुपरान्त अपने इष्टदेव का सहस्र जप करें,साथ ही शिव / शिवा के मंत्रो का भी एक-एक हजार जप अवश्य कर लें।इस प्रकार साधित गोरोचन युक्त ताबीज को धारण करने मात्र से ही सभी मनोरथ पूरे होते है- षटकर्म-दशकर्म आदि सहज ही सम्पन्न होते हैं।गोरोचन में अद्भुत कार्य क्षमता है।सामान्य मसी-लिखित यन्त्र की तुलना में असली गोरोचन द्वारा तैयार की गयी मसी से कोई भी यन्त्र-लेखन का आनन्द ही कुछ और है।ध्यातव्य है कि कर्म शुद्धि,भाव शुद्धि को साथ द्रव्य शुद्धि भी अनिवार्य है।
गोरोचन के कतिपय तान्त्रिक प्रयोग-
साधित गोरोचन युक्त ताबीज को घर के किसी पवित्र स्थान में रख दें,और नियमित रुप से,देव-प्रतिमा की तरह उसकी पूजा-अर्चना करते रहें।इससे समस्त वास्तु दोषों का निवारण होकर घर में सुख-शान्ति-समृद्धि आती है।
नवग्रहों की कृपा और प्रकोप से सभी अवगत हैं।इनक प्रसन्नता हेतु जप-होमादि उपचार किये जाते हैं। किन्तु गोरोचन के प्रयोग से भी इन्हें प्रसन्न किया जा सकता है।साधित गोरोचन को ताबीज रुप में धारण करने, और गोरोचन का नियमित तिलक लगाने से समस्त ग्रहदोष नष्ट होते हैं।
प्रेतवाधा युक्त व्यक्ति को गुरुपुष्य योग में साधित गोरोचन से भोजपत्र पर सप्तशती का "द्वितीय बीज" लिख कर ताबीज की तरह धारण करा देने से विकट से विकट प्रेतवाधा का भी निवारण हो जाता है।
मृगी,हिस्टीरिया आदि मानस व्याधियों में गोरोचन(रविपुष्य योग साधित) मिश्रित अष्टगन्ध से नवार्ण मंत्र लिख कर धारण कर देने से काफी लाभ होता है।
उक्त बीमारियों में गोरोचन को गुलाबजल में थोड़ा घिसकर तीन दिनों तक लागातार तीन-तीन बार पिलाने से अद्भुत लाभ होता है।यह कार्य किसी रवि या मंगलवार से ही प्रारम्भ करना चाहिए।
षटकर्म के सभी कर्मों में तत् तत् यंत्रों का लेखन गोरोचन मिश्रित मसी से करने से चमत्कारी लाभ होता है।
धनागम की कामना से गुरुपुष्य योग में विधिवत साधित गोरोचन का चांदी या सोने के कवच में आवेष्ठित कर नित्य पूजा-अर्चना करने से अक्षय लक्ष्मी का वास होता है।
विभिन्न सौदर्य प्रसाधनों में भी गोरोचन का प्रयोग अति लाभकारी है।हल्दी,मलयागिरी चन्दन,केसर, कपूर,मंजीठ और थोड़ी मात्रा में गोरोचन मिलाकर गुलाबजल में पीसकर तैयार किया गया लेप सौन्दर्य कान्ति में अद्भुत विकास लाता है।इस लेप को चेहरे पर लगाने के बाद घंटे भर अवश्य छोड़ दिया जाय ताकि शरीर की उष्मा से स्वतः सूखे।

रावण सहिंता के किस्मत चमकाने वाले दुर्लभ अति दुर्लभ तांत्रिक उपाय .....................


नागेश्वर तंत्रः
नागेश्वर को प्रचलित भाषा में ‘नागकेसर’ कहते हैं। काली मिर्च के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है। पंसारियों की दूकान से आसानी से प्राप्त हो जाने वाली नागकेसर शीतलचीनी (कबाबचीनी) के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है। यही यहाँ पर प्रयोजनीय माना गया है।
१॰ किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर ले आइए। बुध की होरा काल में ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए। गोरोचन तथा नागकेसर को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ। आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान में छोड़ दें।
२॰ किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें ‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार २१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन, वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें।
इक्कीस सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र द्वारा की गई यह शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से मुक्त करके धन-सम्पन्न बना देती है।
३॰ पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी, भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।

४॰ कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें-
किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।

५॰ जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर, किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस पूजा में एक दिन का भी नागा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी। आपको फिर किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इस एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ। इन्हें घर, दुकान, फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।

मार्जारी तंत्र :
मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली सिंह परिवार का जीव है। केवल आकार का अंतर इसे सिंह से पृथक करता है, अन्यथा यह सर्वांग में, सिंह का लघु संस्करण ही है। मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली की दो श्रेणियाँ होती हैं- पालतू और जंगली। जंगली को वन बिलाव कहते हैं। यह आकार में बड़ा होता है, जबकि घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ छोटी होती हैं। वन बिलाव को पालतू नहीं बनाया जा सकता, किन्तु घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ पालतू हो जाती हैं। अधिकाशतः यह काले रंग की होती हैं, किन्तु सफेद, चितकबरी और लाल (नारंगी) रंग की बिल्लियाँ भी देखी जाती हैं।
घरों में घूमने वाली बिल्ली (मादा) भी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कराने में सहायक होती है, किन्तु यह तंत्र प्रयोग दुर्लभ और अज्ञात होने के कारण सर्वसाधारण के लिए लाभकारी नहीं हो पाता। वैसे यदि कोई व्यक्ति इस मार्जारी यंत्र का प्रयोग करे तो निश्चित रूप से वह लाभान्वित हो सकता है।
गाय, भैंस, बकरी की तरह लगभग सभी चौपाए मादा पशुओं के पेट से प्रसव के पश्चात्‌ एक झिल्ली जैसी वस्तु निकलती है। वस्तुतः इसी झिल्ली में गर्भस्थ बच्चा रहता है। बच्चे के जन्म के समय वह भी बच्चे के साथ बाहर आ जाती है। यह पॉलिथीन की थैली की तरह पारदर्शी लिजलिजी, रक्त और पानी के मिश्रण से तर होती है। सामान्यतः यह नाल या आँवल कहलाती हैं।
इस नाल को तांत्रिक साधना में बहुत महत्व प्राप्त है। स्त्री की नाल का उपयोग वन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्रियों के लिए परम हितकर माना गया है। वैसे अन्य पशुओं की नाल के भी विविध उपयोग होते हैं। यहाँ केवल मार्जारी (बिल्ली) की नाल का ही तांत्रिक प्रयोग लिखा जा रहा है, जिसे सुलभ हो, इसका प्रयोग करके लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकता है।
जब पालतू बिल्ली का प्रसव काल निकट हो, उसके लिए रहने और खाने की ऐसी व्यवस्था करें कि वह आपके कमरे में ही रहे। यह कुछ कठिन कार्य नहीं है, प्रेमपूर्वक पाली गई बिल्लियाँ तो कुर्सी, बिस्तर और गोद तक में बराबर मालिक के पास बैठी रहती हैं। उस पर बराबर निगाह रखें। जिस समय वह बच्चों को जन्म दे रही हो, सावधानी से उसकी रखवाली करें। बच्चों के जन्म के तुरंत बाद ही उसके पेट से नाल (झिल्ली) निकलती है और स्वभावतः तुरंत ही बिल्ली उसे खा जाती है। बहुत कम लोग ही उसे प्राप्त कर पाते हैं।
अतः उपाय यह है कि जैसे ही बिल्ली के पेट से नाल बाहर आए , उस पर कपड़ा ढँक दें। ढँक जाने पर बिल्ली उसे तुरंत खा नहीं सकेगी। चूँकि प्रसव पीड़ा के कारण वह कुछ शिथिल भी रहती है, इसलिए तेजी से झपट नहीं सकती। जैसे भी हो, प्रसव के बाद उसकी नाल उठा लेनी चाहिए। फिर उसे धूप में सुखाकर प्रयोजनीय रूप दिया जाता है।
धूप में सुखाते समय भी उसकी रखवाली में सतर्कता आवश्यक है। अन्यथा कौआ, चील, कुत्ता आदि कोई भी उसे उठाकर ले जा सकता है। तेज धूप में दो-तीन दिनों तक रखने से वह चमड़े की तरह सूख जाएगी। सूख जाने पर उसके चौकोर टुकड़े (दो या तीन वर्ग इंच के या जैसे भी सुविधा हो) कर लें और उन पर हल्दी लगाकर रख दें। हल्दी का चूर्ण अथवा लेप कुछ भी लगाया जा सकता है। इस प्रकार हल्दी लगाया हुआ बिल्ली की नाल का टुकड़ा लक्ष्मी यंत्र का अचूक घटक होता है।
तंत्र साधना के लिए किसी शुभ मुहूर्त में स्नान-पूजा करके शुद्ध स्थान पर बैठ जाएँ और हल्दी लगा हुआ नाल का सीधा टुकड़ा बाएँ हाथ में लेकर मुट्ठी बंद कर लें और लक्ष्मी, रुपया, सोना, चाँदी अथवा किसी आभूषण का ध्यान करते हुए 54 बार यह मंत्र पढ़ें- ‘मर्जबान उल किस्ता’।
इसके पश्चात्‌ उसे माथे से लगाकर अपने संदूक, पिटारी, बैग या जहाँ भी रुपए-पैसे या जेवर हों, रख दें। कुछ ही समय बाद आश्चर्यजनक रूप से श्री-सम्पत्ति की वृद्धि होने लगती है। इस नाल यंत्र का प्रभाव विशेष रूप से धातु लाभ (सोना-चाँदी की प्राप्ति) कराता है।
दूर्वा तंत्र :
दूर्वा अर्थात्‌ दूब एक विशेष प्रकार की घास है। आयुर्वेद , तंत्र और अध्यात्म में इसकी बड़ी महिमा बताई गई है। देव पूजा में भी इसका प्रयोग अनिवार्य रूप से होता है। गणेशजी को यह बहुत प्रिय है। साधक किसी दिन शुभ मुहूर्त में गणेशजी की पूजा प्रारंभ करे और प्रतिदिन चंदन, पुष्प आदि के साथ प्रतिमा पर 108 दूर्वादल (दूब के टुकड़े) अर्पित करे। धूप-दीप के बाद गुड़ और गिरि का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन दूर्वार्पण करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त हो सकती है। ऐसा साधक जब कभी द्रव्योपार्जन के कार्य से कहीं जा रहा हो तो उसे चाहिए कि गणेश प्रतिमा पर अर्पित दूर्वादलों में से 5-7 दल प्रसाद स्वरूप लेकर जेब में रख ले। यह दूर्वा तंत्र कार्यसिद्धि की अद्‍भुत कुंजी है।
अश्व (वाहन) नाल तंत्र :
नाखून और तलवे की रक्षा के लिए लोग प्रायः घोड़े के पैर में लोहे की नाल जड़वा देते हैं, क्योंकि उन्हें प्रतिदिन पक्की सड़कों पर दौड़ना पड़ता है। यह नाल भी बहुत प्रभावी होती है। दारिद्र्य निवारण के लिए इसका प्रयोग अनेक प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है।
घोड़े की नाल तभी प्रयोजनीय होती है, जब वह अपने आप घोड़े के पैर से उखड़कर गिरी हो और शनिवार के दिन किसी को प्राप्त हो। अन्य दिनों में मिली नाल प्रभावहीन मानी जाती है। शनिवार को अपने आप, राह चलते कहीं ऐसी नाल दिख जाए, भले ही वह घोड़े के पैर से कभी भी गिरी हो उसे प्रणाम करके ‘ॐ श्री शनिदेवाय नमः’ का उच्चारण करते हुए उठा लेना चाहिए।
शनिवार को इस प्रकार प्राप्त नाल लाकर घर में न रखें, उसे बाहर ही कहीं सुरक्षित छिपा दें। दूसरे दिन रविवार को उसे लाकर सुनार के पास जाएँ और उसमें से एक टुकड़ा कटवाकर उसमें थोड़ा सा तांबा मिलवा दें। ऐसी मिश्रित धातु (लौह-ताम्र) की अंगूठी बनवाएँ और उस पर नगीने के स्थान पर ‘शिवमस्तु’ अंकित करा लें। इसके पश्चात्‌ उसे घर लाकर देव प्रतिमा की भाँति पूजें और पूजा की अलमारी में आसन पर प्रतिष्ठित कर दें। आसन का वस्त्र नीला होना चाहिए।
एक सप्ताह बाद अगले शनिवार को शनिदेव का व्रत रखें। सन्ध्या समय पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करें और तेल का दीपक जलाकर, शनि मंत्र ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ का जाप करें। एक माला जाप पश्चात्‌ पुनः अंगूठी को उठाएँ और 7 बार यही मंत्र पढ़ते हुए पीपल की जड़ से स्पर्श कराकर उसे पहन लें। यह अंगूठी बीच की या बगल की (मध्यमा अथवा अनामिका) उँगली में पहननी चाहिए। उस दिन केवल एक बार संध्या को पूजनोपरांत भोजन करें और संभव हो तो प्रति शनिवार को व्रत रखकर पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करते रहें। कम से कम सात शनिवारों तक ऐसा कर लिया जाए तो विशेष लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति को यथासंभव नीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए और कुछ न हो सके तो नीला रूमाल य अंगोछा ही पास में रखा जा सकता है।
इस अश्व नाल से बनी मुद्रिका को साक्षात्‌ शनिदेव की कृपा के रूप में समझना चाहिए। इसके धारक को बहुत थोड़े समय में ही धन-धान्य की सम्पन्नता प्राप्त हो जाती है। दरिद्रता का निवारण करके घर में वैभव-सम्पत्ति का संग्रह करने में यह अंगूठी चमत्कारिक प्रभाव दिखलाती है।

नियमानुसार ही निकालें तांत्रोक्त जड़ी

मित्रों, वनस्पति तंत्र में ऐसी अनेक जडी़ और बांदे हैं जो यदि बताए गए शुभ मुहूर्त में पूर्ण विधि-विधान से निकाल कर प्रयोग में लाए जाएं तो वे आशातीत लाभ प्रदान करते हैं। इन जडी़यों को निकालने की एक शास्त्रोक्त प्रक्रिया होती है उसे किए बिना प्राप्त की गई जड़ या बांदा लाभदायक नहीं होता। हम यहां जड़ और बांदे को निकालने के शास्त्रोक्त नियम व विधि आपको बता रहे हैं।
१. सर्वप्रथम कोई भी जड़ या बांदा किसी स्वच्छ स्थान पर लगे पेड से ही प्राप्त करें।
२. जड़ या बांदा बताए गए निश्चित मुहूर्त या नक्षत्र में ही प्राप्त करें।
३. जड़ या बांदा निकाले से ठीक एक दिन पूर्व उस पेड़ की जड़ में एक लोटा जल डालें तत्पश्चात पंचोपचार पूजन कर नैवेद्य व दक्षिणा अर्पण कर आरती करें।
४.आरती के पश्चात पीले चावल रखकर उस जड़ को अपने साथ चलने हेतु निमंत्रित करें।
५.बताए गए मुहूर्त या नक्षत्र में जाकर जड़ को प्रणाम करें तत्पश्चात दिग्बंध हेतु पीली सरसों को निम्न मंत्र से अभिमंत्रित कर अपने एवं पेड़ चारों फ़ेंकें।
मंत्र-““ॐ बेतालाश्य पिशाचाश्य राक्षसाश्च सरीसृपां।
अपसर्पन्तु ते सर्वे वृक्षादिस्माच्छिवाज्ञार्या॥”
६. दिग्बंध के उपरांत लकड़ी के नुकीले पटिये से जड़ को सावधानी से खोदकर निकालें। ध्यान रखें जड़ निकालने में लोहे का का प्रयोग ना हो। निकालते वक्त पूर्ण श्रद्धाभाव रखें।
७. जड़ का एक छोटा सा भाग ही निकालें। आवश्यकता से अधिक निकालना निषेध है।
८. जड निकालते समय गोपनीयता का ध्यान रखें। सुनिश्चित करें कि किसी व्यक्ति की नज़र या टोक आप पर नहीं पड़े।
९. जड़ निकालते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करते रहें।
खनन मंत्र-
“येन त्वां खनते ब्रह्म, येन त्वां खनते भृगु।
येन हीन्दो· वरूणो, येन त्वापचक्रमे।
तेनाहं खनिष्यामि मंत्रपूतेन पाणिना
मा पातेमानि पतित जोन्यथा माते भवेत।
अत्रैव तिष्ठ कल्याणि मम कार्यकरी भव।
मम कार्ये सिद्धे ततः स्वर्ग गमिष्यमि।”
१०. जड़ निकल जाने के उपरांत मिट्टी से गड़्ढा भर दें। मौन धारण किये अपने घर लौट आएं।
घर आकर जड को नर्मदाजल व दूध से स्नान कराएं एवं पंचोपचार पूजन कर प्रयोग करें।
॥शुभमस्तु॥

रावण सहिंता कहती है कि बंधी दुकान को कैसे खोले


 दूकान बंधी होने पर  .................................
कभी-कभी देखने में आता है कि खूब चलती हुई दूकान भी एकदम से ठप्प हो जाती है । जहाँ पर ग्राहकों की भीड़ उमड़ती थी, वहाँ सन्नाटा पसरने लगता है । यदि किसी चलती हुई दुकान को कोई तांत्रिक बाँध दे, तो ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है, अतः इससे बचने के लिए निम्नलिखित प्रयोग करने चाहिए -
१॰ दुकान में लोबान की धूप लगानी चाहिए ।
२॰ शनिवार के दिन दुकान के मुख्य द्वार पर बेदाग नींबू एवं सात हरी मिर्चें लटकानी चाहिए ।
३॰ नागदमन के पौधे की जड़ लाकर इसे दुकान के बाहर लगा देना चाहिए । इससे बँधी हुई दुकान खुल जाती है ।
४॰ दुकान के गल्ले में शुभ-मुहूर्त में श्री-फल लाल वस्त्र में लपेटकर रख देना चाहिए ।
५॰ प्रतिदिन संध्या के समय दुकान में माता लक्ष्मी के सामने शुद्ध घी का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए ।
६॰ दुकान अथवा व्यावसायिक प्रतिष्ठान की दीवार पर शूकर-दंत इस प्रकार लगाना चाहिए कि वह दिखाई देता रहे ।
७॰ व्यापारिक प्रतिष्ठान तथा दुकान को नजर से बचाने के लिए काले-घोड़े की नाल को मुख्य द्वार की चौखट के ऊपर ठोकना चाहिए ।
८॰ दुकान में मोरपंख की झाडू लेकर निम्नलिखित मंत्र के द्वारा सभी दिशाओं में झाड़ू को घुमाकर वस्तुओं को साफ करना चाहिए । मंत्रः- “ॐ ह्रीं ह्रीं क्रीं”
९॰ शुक्रवार के दिन माता लक्ष्मी के सम्मुख मोगरे अथवा चमेली के पुष्प अर्पित करने चाहिए ।
१०॰ यदि आपके व्यावसायिक प्रतिष्ठान में चूहे आदि जानवरों के बिल हों, तो उन्हें बंद करवाकर बुधवार के दिन गणपति को प्रसाद चढ़ाना चाहिए ।
११॰ सोमवार के दिन अशोक वृक्ष के अखंडित पत्ते लाकर स्वच्छ जल से धोकर दुकान अथवा व्यापारिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार पर टांगना चाहिए । सूती धागे को पीसी हल्दी में रंगकर उसमें अशोक के पत्तों को बाँधकर लटकाना चाहिए ।

वाराह दन्त

मित्रों, वैसे तो शूकर (सुअर) जिसे वाराह भी कहते हैं, एक निंदित प्राणी है किंतु तंत्र और अध्यात्म में इसका खासा महत्व है। स्वयं भगवान विष्णु ने वाराह अवतार लेकर पृथ्वी को पाताल से निकाला था। यदि कहीं से शूकर का दांत प्राप्त हो जाए तो किसी शुभ मुहूर्त जैसे “गुरू-पुष्य” “रवि-पुष्य” होली, दीपावली, ग्रहण आदि में आप इसे सिद्ध कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। ये प्रबल वशीकरण कारक होता है। इसका ताबीज बनाकर पहनने से किसी भी प्रकार कि अभिचार कर्म का प्रभाव नहीं होता एवं सर्वत्र लाभ एवं विजय होती है।
मंत्र इस प्रकार है-
“ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं वाराह दन्ताय भैरवाय नमः”।
इस मंत्र की एक माला जाप से यह सिद्ध हो जाता है

रावण सहिंता के कुछ चमत्कारी एवं तुरंत प्रभावशाली उपाय


१. व्यवसाय ठीक तरह से न चलने पर .................................
यदि आपको यह शंका हो कि किसी व्यक्ति ने आपके व्यवसाय को बाँध दिया है या उसकी नजर आपकी दुकान को लग गई है, तो उस व्यक्ति का नाम काली स्याही से भोज-पत्र पर लिखकर पीपल वृक्ष के पास भूमि खोदकर दबा देना चाहिए तथा इस प्रयोग को करते समय १॰ कच्चा सूत लेकर उसे शुद्ध केसर में रंगकर अपनी दुकान पर बाँध देना चाहिए ।
२॰ हुदहुद पक्षी की कलंगी रविवार के दिन प्रातःकाल दुकान पर लाकर रखने से व्यवसाय को लगी नजर समाप्त होती है और व्यवसाय में उत्तरोत्तर वृद्धि होती है ।
३॰ कभी अचानक ही व्यवसाय में स्थिरता आ गई हो, तो निम्नलिखित मंत्र का प्रतिदिन ग्यारह माला जप करने से व्यवसाय में अपेक्षा के अनुरुप वृद्धि होती है । मंत्रः- “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं नमो भगवती माहेश्वरी अन्नपूर्णा स्वाहा ।”
४॰ यदि कोई शत्रु आपसी जलन या द्वेष, व्यापारिक प्रतिस्पर्धा के कारण आप पर तंत्र-मंत्र का कोई प्रयोग करके आपके व्यवसाय में बाधा डाल रहा हो, तो ईसे में नीचे लिखे सरल शाबर मंत्र का प्रयोग करके आप अपनी तथा अपने व्यवसाय की रक्षा कर सकते हैं । सर्वप्रथम इस मंत्र की दस माला जपकर हवन करें । मंत्र सिद्ध हो जाने पर रविवार या मंगलवार की रात इसका प्रयोग करें ।
मंत्रः- “उलटत वेद पलटत काया, जाओ बच्चा तुम्हें गुरु ने बुलाया, सत नाम आदेश गुरु का ।”
रविवार या मंगलवार की रात को 11 बजे के बाद घर से निकलकर चौराहे की ओर जाएँ, अपने साथ थोड़ी-सी शराब लेते जाएँ । मार्ग में सात कंकड़ उठाते जाएँ । चौराहे पर पहुँचकर एक कंकड़ पूर्व दिशा की ओर फेंकते हुए उपर्युक्त मंत्र पढ़ें, फिर एक दक्षिण, फिर क्रमशः पश्चिम, उत्तर, ऊपर, नीचे तथा सातवीं कंकड़ चौराहे के बीच रखकर उस शराब चढ़ा दें । यह सब करते समय निरन्तर उक्त मन्त्र का उच्चारण करते रहें । फिर पीछे पलट कर सीधे बिना किसी से बोले और बिना पीछे मुड़कर देखे अपने घर वापस आ जाएँ ।
घर पर पहले से द्वार के बाहर पानी रखे रहें । उसी पानी से हाथ-पैर धोकर कुछ जल अपने ऊपर छिड़क कर, तब अन्दर जाएँ । एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि आते-जाते समय आपके घर का कोई सदस्य आपके सामने न पड़े और चौराहे से लौटते समय यदि आपको कोई बुलाए या कोई आवाज सुनाई दे, तब भी मुड़कर न देखें ।
५॰ यदि आपके लाख प्रयत्नों के उपरान्त भी आपके सामान की बिक्री निरन्तर घटती जा रही हो, तो बिक्री में वृद्धि हेतु किसी भी मास के शुक्ल पक्ष के गुरुवार के दिन से निम्नलिखित क्रिया प्रारम्भ करनी चाहिए -
व्यापार स्थल अथवा दुकान के मुख्य द्वार के एक कोने को गंगाजल से धोकर स्वच्छ कर लें । इसके उपरान्त हल्दी से स्वस्तिक बनाकर उस पर चने की दाल और गुड़ थोड़ी मात्रा में रख दें । इसके बाद आप उस स्वस्तिक को बार-बार नहीं देखें । इस प्रकार प्रत्येक गुरुवार को यह क्रिया सम्पन्न करने से बिक्री में अवश्य ही वृद्धि होती है । इस प्रक्रिया को कम-से-कम 11 गुरुवार तक अवश्य करें ।


कुछ उपयोगी टोटके



छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं, पर उनकी विधिवत् जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं। यहाँ  उपयोगी टोटकों की विधिवत् जानकारी दी जा रही है। घर में सदा अन्न का भंडार बना रहे आश्लेषा नक्षत्र में बरगद वृक्ष का एक पत्ता तोड़ कर लायें। उस पत्ते को गंगाजल से छींटा मारकर धूप देकर प्रार्थना करें कि हे अन्नपूर्णा देवी मेरे घर में सदा अन्न का भंडार भरा रहे कभी इसकी कमी न हो। उस पत्ते को चावल या गेहूं के अंदर दबा कर रख देने से कभी कमी नहीं होगी। इसका प्रयोग बहुत आसान है और इसका प्रभाव रामबाण की तरह है। - शुक्ल पक्ष में जिस दिन पुष्य नक्षत्र हो तब श्वेत गुंजा की जड़ को लाकर उसे धूप दीप से पूजा कर घर में रखने से घर में चोरी होने का भय नहीं रहता है। - सुदर्शन की जड़ हो या अपामार्ग की जड़ हो अथवा घुंघची जड़ हो इनको किसी ताबीज में रख कर दाहिनी भुजा में बांध लेने से हथियार व शस्त्र से शरीर की रक्षा हो जाती है। उक्त मंत्र से 21 बार जाप करके बांधें (ऊँ दुर्गे दुर्गे रक्षिणी स्वाहा)। फसल की सुरक्षा के लिए सफेद सरसों तथा बालू को एक साथ मिलाकर खेत के चारों ओर जल देने से खेत में चूहों से, कीड़ों से एवं टिड्डी आदि से फसल की रक्षा होती है। टोने-टोटके को बेअसर करने के लिए - पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में बहेड़े का पत्ता लाकर घर में रख देने से शत्रु द्वारा घातक टोटके बेअसर हो जाते हैं। तंत्र मंत्र सभी से रक्षा होती रहती है। यह बहुत ही उपयोगी पत्ता है। नींद में भय दूर करने के उपाय - मघा नक्षत्र में पीपल की जड़ को लाकर उसे शुद्ध जल से धोकर धूप देकर अपने तकिया में रखने से कभी सोने में भय नहीं लगता न खराब स्वप्न आते हैं। संतान प्राप्ति हेतु - जो स्त्री निःसंतान है जिसको बांझ भी बोलते हैं उसे पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ को गाय के दूध में घिसकर पिलाने से उसे संतान हो जाती है। इस नक्षत्र में यह प्रयोग करती रहें। इसी प्रकार उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ को लाकर स्त्री अपने पास में किसी लाल कपड़े में बांध कर शरीर पर धारण करे तो जो दोष होता है वह शांत हो जाता है। तब संतान हो जाती है। भूत-प्रेत दोष को समाप्त करने के लिए - हस्त नक्षत्र में चंपा की जड़ को कच्चे दूध व गंगा जल से पवित्र करके गले में ताबीज में भरकर धारण करें तो यह दोष समाप्त हो जाता है। गोरापन व सुंदरता हेतु - स्वाति नक्षत्र मं मोगरा की जड़ लेकर भैंस के दूध में घिसकर पीने से रंग में परिवर्तन व मुख सुंदर होता है। शत्रुता समाप्त करने हेतु - अनुराधा नक्षत्र में चमेली की जड़ को लाकर गले में ताबीज में भरकर पहनने से शत्रु मित्र बन जाता है।

सिद्ध करें काली हल्दी, अपार दौलत मिलेगी


तंत्र शास्त्र में काली हल्दी का उपयोग अनेक क्रियाओं में किया जाता है लेकिन इसके पहले इसे सिद्ध करना पड़ता है। इसकी विधि इस प्रकार है-

- धन प्राप्ति के लिए काली हल्दी यानी हरिद्रा तंत्र की साधना शुक्ल या कृष्ण पक्ष की किसी भी अष्टमी से शुरु की जा सकती है। इसके लिए पूजा सूर्योदय के समय ही की जाती है।

- सुबह सूर्यादय से पहले उठकर स्नान कर पवित्र हो जाएं।

- स्वच्छ वस्त्र पहनकर सूर्योदय होते ही आसन पर बैठें। पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें। ऐसा स्थान चुनें, जहां से सूर्यदर्शन में बाधा न आती हो।

- इसके बाद काली हल्दी की गाँठ का पूजन धूप-दीप से पूजा करें। उदय काल के समय सूर्यदेव को प्रणाम करें। आपके समक्ष रखी काली हल्दी की गाँठ को नमन कर भगवान सूर्यदेव के मंत्र 'ओम ह्रीं सूर्याय नम:' का 108 बार माला से जप करें।

- यह प्रयोग नियमित करें ।



- पूजा के साथ-साथ अष्टमी तिथि को यथासंभव उपवास रखें व ब्राह्मणों को भोजन कराएं।

- हरिद्रा तंत्र की नियम-संयम से साधना व्रती को मनोवांछित और अनपेक्षित धन लाभ होता है। रुका धन प्राप्त हो जाता है। परिवार में सुख-समृद्धि आती है। इस तरह एक हरिद्रा यानि हल्दी घर की दरिद्रता को दूर कर देती है।

तंत्र से लक्ष्मी प्राप्ति के प्रयोग


नागेश्वर तंत्रः
नागेश्वर को प्रचलित भाषा में ‘नागकेसर’ कहते हैं। काली मिर्च के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है। पंसारियों की दूकान से आसानी से प्राप्त हो जाने वाली नागकेसर शीतलचीनी (कबाबचीनी) के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है। यही यहाँ पर प्रयोजनीय माना गया है।
१॰ किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर ले आइए। बुध की होरा काल में ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए। गोरोचन तथा नागकेसर को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ। आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान में छोड़ दें।
२॰ किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें ‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार २१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन, वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें।
इक्कीस सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र द्वारा की गई यह शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से मुक्त करके धन-सम्पन्न बना देती है।

३॰ पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी, भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।



४॰ कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें-
किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।



५॰ जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर, किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस पूजा में एक दिन का भी नागा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी। आपको फिर किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इस एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ। इन्हें घर, दुकान, फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।



मार्जारी तंत्र :

मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली सिंह परिवार का जीव है। केवल आकार का अंतर इसे सिंह से पृथक करता है, अन्यथा यह सर्वांग में, सिंह का लघु संस्करण ही है। मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली की दो श्रेणियाँ होती हैं- पालतू और जंगली। जंगली को वन बिलाव कहते हैं। यह आकार में बड़ा होता है, जबकि घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ छोटी होती हैं। वन बिलाव को पालतू नहीं बनाया जा सकता, किन्तु घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ पालतू हो जाती हैं। अधिकाशतः यह काले रंग की होती हैं, किन्तु सफेद, चितकबरी और लाल (नारंगी) रंग की बिल्लियाँ भी देखी जाती हैं।

घरों में घूमने वाली बिल्ली (मादा) भी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कराने में सहायक होती है, किन्तु यह तंत्र प्रयोग दुर्लभ और अज्ञात होने के कारण सर्वसाधारण के लिए लाभकारी नहीं हो पाता। वैसे यदि कोई व्यक्ति इस मार्जारी यंत्र का प्रयोग करे तो निश्चित रूप से वह लाभान्वित हो सकता है।

गाय, भैंस, बकरी की तरह लगभग सभी चौपाए मादा पशुओं के पेट से प्रसव के पश्चात्‌ एक झिल्ली जैसी वस्तु निकलती है। वस्तुतः इसी झिल्ली में गर्भस्थ बच्चा रहता है। बच्चे के जन्म के समय वह भी बच्चे के साथ बाहर आ जाती है। यह पॉलिथीन की थैली की तरह पारदर्शी लिजलिजी, रक्त और पानी के मिश्रण से तर होती है। सामान्यतः यह नाल या आँवल कहलाती हैं।

इस नाल को तांत्रिक साधना में बहुत महत्व प्राप्त है। स्त्री की नाल का उपयोग वन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्रियों के लिए परम हितकर माना गया है। वैसे अन्य पशुओं की नाल के भी विविध उपयोग होते हैं। यहाँ केवल मार्जारी (बिल्ली) की नाल का ही तांत्रिक प्रयोग लिखा जा रहा है, जिसे सुलभ हो, इसका प्रयोग करके लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकता है।

जब पालतू बिल्ली का प्रसव काल निकट हो, उसके लिए रहने और खाने की ऐसी व्यवस्था करें कि वह आपके कमरे में ही रहे। यह कुछ कठिन कार्य नहीं है, प्रेमपूर्वक पाली गई बिल्लियाँ तो कुर्सी, बिस्तर और गोद तक में बराबर मालिक के पास बैठी रहती हैं। उस पर बराबर निगाह रखें। जिस समय वह बच्चों को जन्म दे रही हो, सावधानी से उसकी रखवाली करें। बच्चों के जन्म के तुरंत बाद ही उसके पेट से नाल (झिल्ली) निकलती है और स्वभावतः तुरंत ही बिल्ली उसे खा जाती है। बहुत कम लोग ही उसे प्राप्त कर पाते हैं।
अतः उपाय यह है कि जैसे ही बिल्ली के पेट से नाल बाहर आए, उस पर कपड़ा ढँक दें। ढँक जाने पर बिल्ली उसे तुरंत खा नहीं सकेगी। चूँकि प्रसव पीड़ा के कारण वह कुछ शिथिल भी रहती है, इसलिए तेजी से झपट नहीं सकती। जैसे भी हो, प्रसव के बाद उसकी नाल उठा लेनी चाहिए। फिर उसे धूप में सुखाकर प्रयोजनीय रूप दिया जाता है।

धूप में सुखाते समय भी उसकी रखवाली में सतर्कता आवश्यक है। अन्यथा कौआ, चील, कुत्ता आदि कोई भी उसे उठाकर ले जा सकता है। तेज धूप में दो-तीन दिनों तक रखने से वह चमड़े की तरह सूख जाएगी। सूख जाने पर उसके चौकोर टुकड़े (दो या तीन वर्ग इंच के या जैसे भी सुविधा हो) कर लें और उन पर हल्दी लगाकर रख दें। हल्दी का चूर्ण अथवा लेप कुछ भी लगाया जा सकता है। इस प्रकार हल्दी लगाया हुआ बिल्ली की नाल का टुकड़ा लक्ष्मी यंत्र का अचूक घटक होता है।

तंत्र साधना के लिए किसी शुभ मुहूर्त में स्नान-पूजा करके शुद्ध स्थान पर बैठ जाएँ और हल्दी लगा हुआ नाल का सीधा टुकड़ा बाएँ हाथ में लेकर मुट्ठी बंद कर लें और लक्ष्मी, रुपया, सोना, चाँदी अथवा किसी आभूषण का ध्यान करते हुए 54 बार यह मंत्र पढ़ें- ‘मर्जबान उल किस्ता’।

इसके पश्चात्‌ उसे माथे से लगाकर अपने संदूक, पिटारी, बैग या जहाँ भी रुपए-पैसे या जेवर हों, रख दें। कुछ ही समय बाद आश्चर्यजनक रूप से श्री-सम्पत्ति की वृद्धि होने लगती है। इस नाल यंत्र का प्रभाव विशेष रूप से धातु लाभ (सोना-चाँदी की प्राप्ति) कराता है।

दूर्वा तंत्र :
दूर्वा अर्थात्‌ दूब एक विशेष प्रकार की घास है। आयुर्वेद, तंत्र और अध्यात्म में इसकी बड़ी महिमा बताई गई है। देव पूजा में भी इसका प्रयोग अनिवार्य रूप से होता है। गणेशजी को यह बहुत प्रिय है। साधक किसी दिन शुभ मुहूर्त में गणेशजी की पूजा प्रारंभ करे और प्रतिदिन चंदन, पुष्प आदि के साथ प्रतिमा पर 108 दूर्वादल (दूब के टुकड़े) अर्पित करे। धूप-दीप के बाद गुड़ और गिरि का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन दूर्वार्पण करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त हो सकती है। ऐसा साधक जब कभी द्रव्योपार्जन के कार्य से कहीं जा रहा हो तो उसे चाहिए कि गणेश प्रतिमा पर अर्पित दूर्वादलों में से 5-7 दल प्रसाद स्वरूप लेकर जेब में रख ले। यह दूर्वा तंत्र कार्यसिद्धि की अद्‍भुत कुंजी है।

अश्व (वाहन) नाल तंत्र :

नाखून और तलवे की रक्षा के लिए लोग प्रायः घोड़े के पैर में लोहे की नाल जड़वा देते हैं, क्योंकि उन्हें प्रतिदिन पक्की सड़कों पर दौड़ना पड़ता है। यह नाल भी बहुत प्रभावी होती है। दारिद्र्य निवारण के लिए इसका प्रयोग अनेक प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है।

घोड़े की नाल तभी प्रयोजनीय होती है, जब वह अपने आप घोड़े के पैर से उखड़कर गिरी हो और शनिवार के दिन किसी को प्राप्त हो। अन्य दिनों में मिली नाल प्रभावहीन मानी जाती है। शनिवार को अपने आप, राह चलते कहीं ऐसी नाल दिख जाए, भले ही वह घोड़े के पैर से कभी भी गिरी हो उसे प्रणाम करके ‘ॐ श्री शनिदेवाय नमः’ का उच्चारण करते हुए उठा लेना चाहिए।

शनिवार को इस प्रकार प्राप्त नाल लाकर घर में न रखें, उसे बाहर ही कहीं सुरक्षित छिपा दें। दूसरे दिन रविवार को उसे लाकर सुनार के पास जाएँ और उसमें से एक टुकड़ा कटवाकर उसमें थोड़ा सा तांबा मिलवा दें। ऐसी मिश्रित धातु (लौह-ताम्र) की अंगूठी बनवाएँ और उस पर नगीने के स्थान पर ‘शिवमस्तु’ अंकित करा लें। इसके पश्चात्‌ उसे घर लाकर देव प्रतिमा की भाँति पूजें और पूजा की अलमारी में आसन पर प्रतिष्ठित कर दें। आसन का वस्त्र नीला होना चाहिए।

एक सप्ताह बाद अगले शनिवार को शनिदेव का व्रत रखें। सन्ध्या समय पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करें और तेल का दीपक जलाकर, शनि मंत्र ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ का जाप करें। एक माला जाप पश्चात्‌ पुनः अंगूठी को उठाएँ और 7 बार यही मंत्र पढ़ते हुए पीपल की जड़ से स्पर्श कराकर उसे पहन लें। यह अंगूठी बीच की या बगल की (मध्यमा अथवा अनामिका) उँगली में पहननी चाहिए। उस दिन केवल एक बार संध्या को पूजनोपरांत भोजन करें और संभव हो तो प्रति शनिवार को व्रत रखकर पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करते रहें। कम से कम सात शनिवारों तक ऐसा कर लिया जाए तो विशेष लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति को यथासंभव नीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए और कुछ न हो सके तो नीला रूमाल य अंगोछा ही पास में रखा जा सकता है।

इस अश्व नाल से बनी मुद्रिका को साक्षात्‌ शनिदेव की कृपा के रूप में समझना चाहिए। इसके धारक को बहुत थोड़े समय में ही धन-धान्य की सम्पन्नता प्राप्त हो जाती है। दरिद्रता का निवारण करके घर में वैभव-सम्पत्ति का संग्रह करने में यह अंगूठी चमत्कारिक प्रभाव दिखलाती है।

परम शक्तिशाली सिद्ध गोमती चक्र (दीपावली प्रयोग )



१॰ यदि इस  सिद्ध गोमती चक्र को लाल सिन्दूर की डिब्बी में घर में रखे, तो घर में सुख-शान्ति बनी रहती है ।
२॰ यदि घर में भूत-प्रेतों का उपद्रव हो, तो दो  सिद्ध गोमती चक्र लेकर घर के मुखिया के ऊपर से घुमाकर आग में डाल दे, तो घर से भूत-प्रेत का उपद्रव समाप्त हो जाता है ।

३॰ यदि घर में बिमारी हो या किसी का रोग शान्त नहीं हो रहा हो तो एक  सिद्ध गोमती चक्र लेकर उसे चाँदी में पिरोकर रोगी के पलंग के पाये पर बाँध दें, तो उसी दिन से रोगी का रोग समाप्त होने लगता है ।

४॰ व्यापार वृद्धि के लिए दो  सिद्ध गोमती चक्र लेकर उसे बाँधकर ऊपर चौखट पर लटका दें, और ग्राहक उसके नीचे से निकले, तो निश्चय ही व्यापार में वृद्धि होती है ।

५॰ प्रमोशन नहीं हो रहा हो, तो एक  सिद्ध गोमती चक्र लेकर शिव मन्दिर में शिवलिंग पर चढ़ा दें, और सच्चे मन से प्रार्थना करें । निश्चय ही प्रमोशन के रास्ते खुल जायेंगे ।
६॰ पति-पत्नी में मतभेद हो तो तीन  सिद्ध गोमती चक्र लेकर घर के दक्षिण में “हलूं बलजाद” कहकर फेंक दें, मतभेद समाप्त हो जायेगा ।
७॰ पुत्र प्राप्ति के लिए पाँच  सिद्ध गोमती चक्र लेकर किसी नदी या तालाब में “हिलि हिलि मिलि मिलि चिलि चिलि हुं ” पाँच बार बोलकर विसर्जित करें ।
८॰ यदि बार-बार गर्भ नष्ट हो रहा हो, तो दो  सिद्ध गोमती चक्र लाल कपड़े में बाँधकर कमर में बाँध दें ।
९॰ यदि शत्रु अधिक हो तथा परेशान कर रहे हो, तो तीन  सिद्ध गोमती चक्र लेकर उन पर शत्रु का नाम लिखकर जमीन में गाड़ दें ।
१०॰ कोर्ट-कचहरी में सफलता पाने के लिये, कचहरी जाते समय घर के बाहर  सिद्ध गोमती चक्र रखकर उस पर अपना दाहिना पैर रखकर जावें ।
११॰ भाग्योदय के लिए तीन  सिद्ध गोमती चक्र का चूर्ण बनाकर घर के बाहर छिड़क दें ।
१२॰ राज्य-सम्मान-प्राप्ति के लिये दो  सिद्ध गोमती चक्र किसी ब्राह्मण को दान में दें ।
१३॰ तांत्रिक प्रभाव की निवृत्ति के लिये बुधवार को चार  सिद्ध गोमती चक्र अपने सिर के ऊपर से उबार कर चारों दिशाओं में फेंक दें ।
१४॰ चाँदी में जड़वाकर बच्चे के गले में पहना देने से बच्चे को नजर नहीं लगती तथा बच्चा स्वस्थ बना रहता है ।
१५॰ दीपावली के दिन पाँच  सिद्ध गोमती चक्र पूजा-घर में स्थापित कर नित्य उनका पूजन करने से निरन्तर उन्नति होती रहती है ।
१६॰ रोग-शमन तथा स्वास्थ्य-प्राप्ति हेतु सात  सिद्ध गोमती चक्र अपने ऊपर से उतार कर किसी ब्राह्मण या फकीर को दें ।
१७॰ 11  सिद्ध गोमती चक्रों को लाल पोटली में बाँधकर तिजोरी में अथवा किसी सुरक्षित स्थान पर सख दें, तो व्यापार उन्नति करता जायेगा ।
(सिर्फ सिद्ध किये हुए गोमती चक्र ही प्रयोग में ले | बिना जाग्रत किये हुए गोमती चक्र अपना प्रभाव नहीं दिखाते | और दुस्परिनाम भी दे सकते है  | यदि आप को आवश्यकता है तो आप हमसे संपर्क कर सकते है | )

श्रेष्ठ और मनचाही संतान प्राप्ति के लिए गुरूवार ( वीरवार) को करें यह उपाय


1 दंपति को गुरुवार का व्रत रखना चाहिए।
2 गुरुवार के दिन पीले वस्त्र धारण करें,पीली वस्तुओं का दान करें यथासंभवपीला भोजन ही करें।
3 माता बनने की इच्छुक महिला को चाहिए गुरुवार के दिनगेंहू के आटे की 2 मोटी लोई बनाकर उसमेंभीगी चने की दाल औरथोड़ी सी हल्दी मिलाकरनियमपूर्वक गाय को खिलाएं।
4 शुक्ल पक्ष में बरगद के पत्ते को धोकर साफ करके उस परकुंकुम से स्वस्तिक बनाकर उस पर थोड़े से चावल और एकसुपारी रखकर सूर्यास्त से पहलेकिसी मंदिर में अर्पित कर दें और प्रभु से संतानका वरदान देने के लिए प्रार्थना करें निश्चय ही संतानकी प्राप्ति होगी ।
5 गुरुवार के दिन पीले धागे मेंपीली कौड़ी को कमर में बांधने सेसंतान प्राप्ति का प्रबल योग बनता है।
6 माता बनने की इच्छुक महिला को पारद शिवलिंगका रोजाना दूध से अभिषेक करें उत्तम संतान की प्राप्ति होगी ।
7 हर गुरुवार को भिखारियों को गुड़ का दान देने सेभी संतान सुख प्राप्त होता है ।
8 पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में आम की जड़ को लाकर उसे दूध में घिसकर स्त्री को पिलाएं यह सिद्ध एंवम परीक्षित प्रयोग है ।
9 रविवार को छोड़कर अन्य सभी दिन निसंतान स्त्री यदि पीपल पर दीपक जलाए और उसकी परिक्रमा करते हुए संतान की प्रार्थना करें उसकी इच्छा अति शीघ्र पूरी होगी ।
10 श्वेत लक्ष्मणा बूटी की 21 गोली बनाकर उसे नियमपूर्वक गाय के दूध के साथ लेने से संतान सुख की अवश्य
ही प्राप्ति होती है ।
11 उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र में नीम की जड़ लाकर सदैव अपने पास रखने से निसंतान दम्पति को संतान सुख अवश्य प्राप्त होता है ।
12 नींबू की जड़ को दूध में पीसकर उसमे शुद्ध देशी घी मिला कर सेवन करने से पुत्र प्राप्ति की संभावना बड़ जाती है ।
13 पहली बार ब्याही गाय के दूध के साथ नागकेसर के चूर्ण का लगातार 7 दिन सेवन करने से संतान पुत्र उत्पन्न होता है ।
14. सवि का भात और मुंग की दाल खाने से बांझ पन दूर होता है और पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है ।
15. गर्भ का जब तीसरा महीना चल रहा हो तो गर्भवती स्त्री को शनिवार को थोडा सा जायफल और गुड़ मिलाकर खिलाने से अवश्य ही पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी ।
16. पुराने चावल को धोकर भिगो दें बनाने से पहले उसके पानी को अलग करके उसमें नीबूं की जड़ को महीन पीसकर उस पानी को स्त्री पी कर अपने पति से सम्बन्ध बनाये वह स्त्री कन्या को जन्म देगी ।

दिवाली व धनतेरस पर समृद्धि प्राप्ति के उपाय


दीपावली और धनतेरस के त्योहार का विशेष महत्व है। इन दोनों त्योहारों पर धन की देवी मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस दिन समृद्धि प्राप्ति के लिए किया गया कोई भी उपाय ज्यादा फलदायी होता है। इस बार धनत्रयोदशी और दीपावली पर समृद्धि प्राप्ति के लिए इन उपायों को भी करके देखें.

 हथेलियों के दर्शन हैं शुभ :
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 प्रातःकाल उठकर सर्वप्रथम अपनी हथेलियों के दर्शन की आदत डालें। यह एक शुभ क्रिया है। इसे करने से आपको शुभ ऊर्जा प्राप्त होगी।

 चमगादड़ वाले पेड़ की टहनी रखना शुभ :
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 धनतेरस को ऐसे पेड़ की टहनी तोड़ कर लाएं, जिस पर चमगादड़ रहते हों। इसे अपने बैठने की जगह के पास रखें, लाभ होगा।

 गाय का भोजन जरूर निकालें :
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 धनतेरस और दीपावली के दिन रसोई में जो भी भोजन बना हो, सर्वप्रथम उसमें से गाय के लिए कुछ भाग अलग कर दें। यदि नित्य यह करें तो सर्वश्रेष्ठ है।

 मंदिर में लगाएं केले के पौधे :
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 दीपावली के दिन किसी भी मंदिर में केले के दो पौधे लगाएं। इन पौधों की समय-समय पर देखभाल करते रहें। इनके बगल में कोई सुगंधित फूल का पौधा लगाएं। केले का पौधा जैसे-जैसे बड़ा होगा, आपके आर्थिक लाभ की राह प्रशस्त होगी।

 दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी मंत्र का जाप :
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 दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के बाद दक्षिणावर्ती शंख में लक्ष्मी मंत्र का जाप करते हुए चावल के अक्षत दाने व लाल गुलाब की पंखुडियां डालें। ऐसा करने से समृद्धि का योग बनेगा।

 लक्ष्मी को अर्पित करें लौंग :
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 दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के बाद लक्ष्मी या किसी भी देवी को लौंग अर्पित करें। यह प्रक्रिया दीपावली के बाद भी चलने दें। आर्थिक लाभ होता रहेगा।

 श्वेत वस्तुओं का करें दान :
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 धनत्रयोदशी पर श्वेत पदार्थों जैसे चावल, कपड़े, आटा आदि का दान करने से आर्थिक लाभ का योग बनता है।

 सूर्यास्त के बाद न करें झाड़ू-पोंछा :
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 शाम को सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू-पोंछा न करें। यह समृद्धि के लिए शुभ नहीं है।

 गरीब की आर्थिक सहायता करें :
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 दीपावली पर किसी गरीब, दुखी, असहाय रोगी को आर्थिक सहायता दें। ऐसा करने से आपकी उन्नती होगी।

 किन्नर को धन करें दान :
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 दिवाली के दिन किसी हिजड़े को धन दान करें और उससे उसमें से कुछ पैसे वापस अनुरोध करके प्राप्त कर लें। उन पैसे को श्वेत वस्त्र में लपेट कर कैश बॉक्स में रख लें, लाभ होगा।

दुर्गा के कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र माँ दुर्गा के लोक कल्याणकारी सिद्ध मन्त्र



१॰ बाधामुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये
“सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥” (अ॰१२,श्लो॰१३)

अर्थ :- मनुष्य मेरे प्रसाद से सब बाधाओं से मुक्त तथा धन, धान्य एवं पुत्र से सम्पन्न होगा- इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।

२॰ बन्दी को जेल से छुड़ाने हेतु
“राज्ञा क्रुद्धेन चाज्ञप्तो वध्यो बन्धगतोऽपि वा।
आघूर्णितो वा वातेन स्थितः पोते महार्णवे।।” (अ॰१२, श्लो॰२७)

३॰ सब प्रकार के कल्याण के लिये
“सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१०)

अर्थ :- नारायणी! तुम सब प्रकार का मङ्गल प्रदान करनेवाली मङ्गलमयी हो। कल्याणदायिनी शिवा हो। सब पुरुषार्थो को सिद्ध करनेवाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली एवं गौरी हो। तुम्हें नमस्कार है।

४॰ दारिद्र्य-दु:खादिनाश के लिये
“दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽ‌र्द्रचित्ता॥” (अ॰४,श्लो॰१७)

अर्थ :- माँ दुर्गे! आप स्मरण करने पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ पुरषों द्वारा चिन्तन करने पर उन्हें परम कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दु:ख, दरिद्रता और भय हरनेवाली देवि! आपके सिवा दूसरी कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिये सदा ही दया‌र्द्र रहता हो।

४॰ वित्त, समृद्धि, वैभव एवं दर्शन हेतु
“यदि चापि वरो देयस्त्वयास्माकं महेश्वरि।।
संस्मृता संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः।
यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने।।
तस्य वित्तर्द्धिविभवैर्धनदारादिसम्पदाम्।
वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके।। (अ॰४, श्लो॰३५,३६,३७)

५॰ समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये
“विद्या: समस्तास्तव देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति :॥” (अ॰११, श्लो॰६)

अर्थ :- देवि! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-भिन्न स्वरूप हैं। जगत् में जितनी स्त्रियाँ हैं, वे सब तुम्हारी ही मूर्तियाँ हैं। जगदम्ब! एकमात्र तुमने ही इस विश्व को व्याप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति क्या हो सकती है? तुम तो स्तवन करने योग्य पदार्थो से परे एवं परा वाणी हो।

६॰ शास्त्रार्थ विजय हेतु
“विद्यासु शास्त्रेषु विवेकदीपेष्वाद्येषु च का त्वदन्या।
ममत्वगर्तेऽति महान्धकारे, विभ्रामयत्येतदतीव विश्वम्।।” (अ॰११, श्लो॰ ३१)

७॰ संतान प्राप्ति हेतु
“नन्दगोपगृहे जाता यशोदागर्भ सम्भवा।
ततस्तौ नाशयिष्यामि विन्ध्याचलनिवासिनी” (अ॰११, श्लो॰४२)

८॰ अचानक आये हुए संकट को दूर करने हेतु
“ॐ इत्थं यदा यदा बाधा दानवोत्था भविष्यति।
तदा तदावतीर्याहं करिष्याम्यरिसंक्षयम्ॐ।।” (अ॰११, श्लो॰५५)

९॰ रक्षा पाने के लिये
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि चापज्यानि:स्वनेन च॥

अर्थ :- देवि! आप शूल से हमारी रक्षा करें। अम्बिके! आप खड्ग से भी हमारी रक्षा करें तथा घण्टा की ध्वनि और धनुष की टंकार से भी हमलोगों की रक्षा करें।

१०॰ शक्ति प्राप्ति के लिये
सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- तुम सृष्टि, पालन और संहार की शक्ति भूता, सनातनी देवी, गुणों का आधार तथा सर्वगुणमयी हो। नारायणि! तुम्हें नमस्कार है।

११॰ प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये लोकानां वरदा भव॥

अर्थ :- विश्व की पीडा दूर करनेवाली देवि! हम तुम्हारे चरणों पर पडे हुए हैं, हमपर प्रसन्न होओ। त्रिलोकनिवासियों की पूजनीया परमेश्वरि! सब लोगों को वरदान दो।

१२॰ विविध उपद्रवों से बचने के लिये
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥

अर्थ :- जहाँ राक्षस, जहाँ भयंकर विषवाले सर्प, जहाँ शत्रु, जहाँ लुटेरों की सेना और जहाँ दावानल हो, वहाँ तथा समुद्र के बीच में भी साथ रहकर तुम विश्व की रक्षा करती हो।

१३॰ बाधा शान्ति के लिये
“सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥” (अ॰११, श्लो॰३८)

अर्थ :- सर्वेश्वरि! तुम इसी प्रकार तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शान्त करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।

१४॰ सर्वविध अभ्युदय के लिये
ते सम्मता जनपदेषु धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्ग:।
धन्यास्त एव निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥

अर्थ :- सदा अभ्युदय प्रदान करनेवाली आप जिन पर प्रसन्न रहती हैं, वे ही देश में सम्मानित हैं, उन्हीं को धन और यश की प्राप्ति होती है, उन्हीं का धर्म कभी शिथिल नहीं होता तथा वे ही अपने हृष्ट-पुष्ट स्त्री, पुत्र और भृत्यों के साथ धन्य माने जाते हैं।

१५॰ सुलक्षणा पत्‍‌नी की प्राप्ति के लिये
पत्‍‌नीं मनोरमां देहि मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥

अर्थ :- मन की इच्छा के अनुसार चलनेवाली मनोहर पत्‍‌नी प्रदान करो, जो दुर्गम संसारसागर से तारनेवाली तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई हो।

१६॰ आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

अर्थ :- मुझे सौभाग्य और आरोग्य दो। परम सुख दो, रूप दो, जय दो, यश दो और काम-क्रोध आदि शत्रुओं का नाश करो।

१७॰ महामारी नाश के लिये
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥

अर्थ :- जयन्ती, मङ्गला, काली, भद्रकाली, कपालिनी, दुर्गा, क्षमा, शिवा, धात्री, स्वाहा और स्वधा- इन नामों से प्रसिद्ध जगदम्बिके! तुम्हें मेरा नमस्कार हो।

१८॰ रोग नाश के लिये
“रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥” (अ॰११, श्लो॰ २९)

अर्थ :- देवि! तुम प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवाञ्छित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग तुम्हारी शरण में जा चुके हैं, उन पर विपत्ति तो आती ही नहीं। तुम्हारी शरण में गये हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।

१९॰ विपत्ति नाश के लिये
“शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते॥” (अ॰११, श्लो॰१२)

अर्थ :- शरण में आये हुए दीनों एवं पीडितों की रक्षा में संलग्न रहनेवाली तथा सबकी पीडा दूर करनेवाली नारायणी देवी! तुम्हें नमस्कार है।

२०॰ पाप नाश के लिये
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽन: सुतानिव॥

अर्थ :- देवि! जो अपनी ध्वनि से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त करके दैत्यों के तेज नष्ट किये देता है, वह तुम्हारा घण्टा हमलोगों की पापों से उसी प्रकार रक्षा करे, जैसे माता अपने पुत्रों की बुरे कर्मो से रक्षा करती है।

१७॰ भय नाश के लिये
“सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु न: सर्वभीतिभ्य: कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ ” (अ॰११, श्लो॰ २४,२५,२६)

अर्थ :- सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्ति यों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है। कात्यायनी! यह तीन लोचनों से विभूषित तुम्हारा सौम्य मुख सब प्रकार के भयों से हमारी रक्षा करे। तुम्हें नमस्कार है। भद्रकाली! ज्वालाओं के कारण विकराल प्रतीत होनेवाला, अत्यन्त भयंकर और समस्त असुरों का संहार करनेवाला तुम्हारा त्रिशूल भय से हमें बचाये। तुम्हें नमस्कार है।

२१॰ विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये
करोतु सा न: शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापद:।

अर्थ :- वह कल्याण की साधनभूता ईश्वरी हमारा कल्याण और मङ्गल करे तथा सारी आपत्तियों का नाश कर डाले।

२२॰ विश्व की रक्षा के लिये
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म परिपालय देवि विश्वम्॥

अर्थ :- जो पुण्यात्माओं के घरों में स्वयं ही लक्ष्मीरूप से, पापियों के यहाँ दरिद्रतारूप से, शुद्ध अन्त:करणवाले पुरुषों के हृदय में बुद्धिरूप से, सत्पुरुषों में श्रद्धारूप से तथा कुलीन मनुष्य में लज्जारूप से निवास करती हैं, उन आप भगवती दुर्गा को हम नमस्कार करते हैं। देवि! आप सम्पूर्ण विश्व का पालन कीजिये।

२३॰ विश्व के अभ्युदय के लिये
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति
विश्वाश्रया ये त्वयि भक्ति नम्रा:॥

अर्थ :- विश्वेश्वरि! तुम विश्व का पालन करती हो। विश्वरूपा हो, इसलिये सम्पूर्ण विश्व को धारण करती हो। तुम भगवान् विश्वनाथ की भी वन्दनीया हो। जो लोग भक्तिपूर्वक तुम्हारे सामने मस्तक झुकाते हैं, वे सम्पूर्ण विश्व को आश्रय देनेवाले होते हैं।

२४॰ विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद
प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य॥

अर्थ :- शरणागत की पीडा दूर करनेवाली देवि! हमपर प्रसन्न होओ। सम्पूर्ण जगत् की माता! प्रसन्न होओ। विश्वेश्वरि! विश्व की रक्षा करो। देवि! तुम्हीं चराचर जगत् की अधीश्वरी हो।

२५॰ विश्व के पाप-ताप निवारण के लिये
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥

अर्थ :- देवि! प्रसन्न होओ। जैसे इस समय असुरों का वध करके तुमने शीघ्र ही हमारी रक्षा की है, उसी प्रकार सदा हमें शत्रुओं के भय से बचाओ। सम्पूर्ण जगत् का पाप नष्ट कर दो और उत्पात एवं पापों के फलस्वरूप प्राप्त होनेवाले महामारी आदि बडे-बडे उपद्रवों को शीघ्र दूर करो।

२६॰ विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये
यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो
ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तु मलं बलं च।
सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय
नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु॥

अर्थ :- जिनके अनुपम प्रभाव और बल का वर्णन करने में भगवान् शेषनाग, ब्रह्माजी तथा महादेवजी भी समर्थ नहीं हैं, वे भगवती चण्डिका सम्पूर्ण जगत् का पालन एवं अशुभ भय का नाश करने का विचार करें।

२७॰ सामूहिक कल्याण के लिये
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्ति समूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न:॥

अर्थ :- सम्पूर्ण देवताओं की शक्ति का समुदाय ही जिनका स्वरूप है तथा जिन देवी ने अपनी शक्ति से सम्पूर्ण जगत् को व्याप्त कर रखा है, समस्त देवताओं और महर्षियों की पूजनीया उन जगदम्बा को हम भक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं। वे हमलोगों का कल्याण करें।

२८॰ भुक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

२९॰ पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये
नतेभ्यः सर्वदा भक्तया चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि॥

३०॰ स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये
सर्वभूता यदा देवि स्वर्गमुक्तिप्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः॥

३१॰ स्वर्ग और मुक्ति के लिये
“सर्वस्य बुद्धिरुपेण जनस्य ह्रदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोस्तुऽते॥” (अ॰११, श्लो८)

३२॰ मोक्ष की प्राप्ति के लिये
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत्
त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः॥

३३॰ स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके।
मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय॥

३४॰ प्रबल आकर्षण हेतु
“ॐ महामायां हरेश्चैषा तया संमोह्यते जगत्,
ज्ञानिनामपि चेतांसि देवि भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति।।” (अ॰१, श्लो॰५५)

उपरोक्त मंत्रों को संपुट मंत्रों के उपयोग में लिया जा सकता है अथवा कार्य सिद्धि के लिये स्वतंत्र रुप से भी इनका पुरश्चरण किया जा सकता है। कुछ अन्य मंत्रों की चर्चा व उपरोक्त मंत्रों के विधान भी अगली पोस्टों में देने की कोशिश करुंगी।

http://shabarmantra.wordpress.com/2008/08/13/vashikaran-mantra/


सिद्ध वशीकरण मन्त्र सिद्ध वशीकरण मन्त्र

१॰ “बारा राखौ, बरैनी, मूँह म राखौं कालिका। चण्डी म राखौं मोहिनी, भुजा म राखौं जोहनी। आगू म राखौं सिलेमान, पाछे म राखौं जमादार। जाँघे म राखौं लोहा के झार, पिण्डरी म राखौं सोखन वीर। उल्टन काया, पुल्टन वीर, हाँक देत हनुमन्ता छुटे। राजा राम के परे दोहाई, हनुमान के पीड़ा चौकी। कीर करे बीट बिरा करे, मोहिनी-जोहिनी सातों बहिनी। मोह देबे जोह देबे, चलत म परिहारिन मोहों। मोहों बन के हाथी, बत्तीस मन्दिर के दरबार मोहों। हाँक परे भिरहा मोहिनी के जाय, चेत सम्हार के। सत गुरु साहेब।”
विधि- उक्त मन्त्र स्वयं सिद्ध है तथा एक सज्जन के द्वारा अनुभूत बतलाया गया है। फिर भी शुभ समय में १०८ बार जपने से विशेष फलदायी होता है। नारियल, नींबू, अगर-बत्ती, सिन्दूर और गुड़ का भोग लगाकर १०८ बार मन्त्र जपे।
मन्त्र का प्रयोग कोर्ट-कचहरी, मुकदमा-विवाद, आपसी कलह, शत्रु-वशीकरण, नौकरी-इण्टरव्यू, उच्च अधीकारियों से सम्पर्क करते समय करे। उक्त मन्त्र को पढ़ते हुए इस प्रकार जाँए कि मन्त्र की समाप्ति ठीक इच्छित व्यक्ति के सामने हो।

२॰ शूकर-दन्त वशीकरण मन्त्र
“ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं वाराह-दन्ताय भैरवाय नमः।”
विधि- ‘शूकर-दन्त’ को अपने सामने रखकर उक्त मन्त्र का होली, दीपावली, दशहरा आदि में १०८ बार जप करे। फिर इसका ताबीज बनाकर गले में पहन लें। ताबीज धारण करने वाले पर जादू-टोना, भूत-प्रेत का प्रभाव नहीं होगा। लोगों का वशीकरण होगा। मुकदमें में विजय प्राप्ति होगी। रोगी ठीक होने लगेगा। चिन्ताएँ दूर होंगी और शत्रु परास्त होंगे। व्यापार में वृद्धि होगी।

३॰ कामिया सिन्दूर-मोहन मन्त्र-
“हथेली में हनुमन्त बसै, भैरु बसे कपार।
नरसिंह की मोहिनी, मोहे सब संसार।
मोहन रे मोहन्ता वीर, सब वीरन में तेरा सीर।
सबकी नजर बाँध दे, तेल सिन्दूर चढ़ाऊँ तुझे।
तेल सिन्दूर कहाँ से आया ? कैलास-पर्वत से आया।
कौन लाया, अञ्जनी का हनुमन्त, गौरी का गनेश लाया।
काला, गोरा, तोतला-तीनों बसे कपार।
बिन्दा तेल सिन्दूर का, दुश्मन गया पाताल।
दुहाई कमिया सिन्दूर की, हमें देख शीतल हो जाए।
सत्य नाम, आदेश गुरु की। सत् गुरु, सत् कबीर।
विधि- आसाम के ‘काम-रुप कामाख्या, क्षेत्र में ‘कामीया-सिन्दूर’ पाया जाता है। इसे प्राप्त कर लगातार सात रविवार तक उक्त मन्त्र का १०८ बार जप करें। इससे मन्त्र सिद्ध हो जाएगा। प्रयोग के समय ‘कामिया सिन्दूर’ पर ७ बार उक्त मन्त्र पढ़कर अपने माथे पर टीका लगाए। ‘टीका’ लगाकर जहाँ जाएँगे, सभी वशीभूत होंगे।

आकर्षण एवं वशीकरण के प्रबल सूर्य मन्त्र
१॰ “ॐ नमो भगवते श्रीसूर्याय ह्रीं सहस्त्र-किरणाय ऐं अतुल-बल-पराक्रमाय नव-ग्रह-दश-दिक्-पाल-लक्ष्मी-देव-वाय, धर्म-कर्म-सहितायै ‘अमुक’ नाथय नाथय, मोहय मोहय, आकर्षय आकर्षय, दासानुदासं कुरु-कुरु, वश कुरु-कुरु स्वाहा।”
विधि- सुर्यदेव का ध्यान करते हुए उक्त मन्त्र का १०८ बार जप प्रतिदिन ९ दिन तक करने से ‘आकर्षण’ का कार्य सफल होता है।
२॰ “ऐं पिन्स्थां कलीं काम-पिशाचिनी शिघ्रं ‘अमुक’ ग्राह्य ग्राह्य, कामेन मम रुपेण वश्वैः विदारय विदारय, द्रावय द्रावय, प्रेम-पाशे बन्धय बन्धय, ॐ श्रीं फट्।”
विधि- उक्त मन्त्र को पहले पर्व, शुभ समय में २०००० जप कर सिद्ध कर लें। प्रयोग के समय ‘साध्य’ के नाम का स्मरण करते हुए प्रतिदिन १०८ बार मन्त्र जपने से ‘वशीकरण’ हो जाता है।

बजरङग वशीकरण मन्त्र
“ॐ पीर बजरङ्गी, राम लक्ष्मण के सङ्गी। जहां-जहां जाए, फतह के डङ्के बजाय। ‘अमुक’ को मोह के, मेरे पास न लाए, तो अञ्जनी का पूत न कहाय। दुहाई राम-जानकी की।”
विधि- ११ दिनों तक ११ माला उक्त मन्त्र का जप कर इसे सिद्ध कर ले। ‘राम-नवमी’ या ‘हनुमान-जयन्ती’ शुभ दिन है। प्रयोग के समय दूध या दूध निर्मित पदार्थ पर ११ बार मन्त्र पढ़कर खिला या पिला देने से, वशीकरण होगा।

आकर्षण हेतु हनुमद्-मन्त्र-तन्त्र
“ॐ अमुक-नाम्ना ॐ नमो वायु-सूनवे झटिति आकर्षय-आकर्षय स्वाहा।”
विधि- केसर, कस्तुरी, गोरोचन, रक्त-चन्दन, श्वेत-चन्दन, अम्बर, कर्पूर और तुलसी की जड़ को घिस या पीसकर स्याही बनाए। उससे द्वादश-दल-कलम जैसा ‘यन्त्र’ लिखकर उसके मध्य में, जहाँ पराग रहता है, उक्त मन्त्र को लिखे। ‘अमुक’ के स्थान पर ‘साध्य’ का नाम लिखे। बारह दलों में क्रमशः निम्न मन्त्र लिखे- १॰ हनुमते नमः, २॰ अञ्जनी-सूनवे नमः, ३॰ वायु-पुत्राय नमः, ४॰ महा-बलाय नमः, ५॰ श्रीरामेष्टाय नमः, ६॰ फाल्गुन-सखाय नमः, ७॰ पिङ्गाक्षाय नमः, ८॰ अमित-विक्रमाय नमः, ९॰ उदधि-क्रमणाय नमः, १०॰ सीता-शोक-विनाशकाय नमः, ११॰ लक्ष्मण-प्राण-दाय नमः और १२॰ दश-मुख-दर्प-हराय नमः।
यन्त्र की प्राण-प्रतिष्ठा करके षोडशोपचार पूजन करते हुए उक्त मन्त्र का ११००० जप करें। ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए लाल चन्दन या तुलसी की माला से जप करें। आकर्षण हेतु अति प्रभावकारी है।

वशीकरण हेतु कामदेव मन्त्र
“ॐ नमः काम-देवाय। सहकल सहद्रश सहमसह लिए वन्हे धुनन जनममदर्शनं उत्कण्ठितं कुरु कुरु, दक्ष दक्षु-धर कुसुम-वाणेन हन हन स्वाहा।”
विधि- कामदेव के उक्त मन्त्र को तीनों काल, एक-एक माला, एक मास तक जपे, तो सिद्ध हो जायेगा। प्रयोग करते समय जिसे देखकर जप करेंगे, वही वश में होगा।

धनतेरस पर कैसे मनायें कुबेर को


प्रयोग-1 कुबेर साधना

 अ ऊँ नमो कुबेराय वैश्रवणाय अक्षय।

 समृद्धि देहि कनक धारायै नम:।।

 प्रयोग विधि- दीपावली की रात्रि से पूर्व त्रयोदशी तिथि से सात हजार रोज मंत्र जाप दीपावली तक (21 हजार जाप स्वर्ण मिश्रित रुद्राक्ष माला से धूप दीप अगरबत्ती जला कर श्रद्धा भाव से करें।

 सिद्ध कुबेर यंत्र को थाली में चावल के ऊपर प्रतिष्ठित कर रखें। रोली, केसर, फल-फूल से पूजा करें। चावल सफेद पोटली में बांधकर तिजोरी में रखें यंत्र भी तिजोरी में रखें।

 लाभ- गोल्ड रत्न ज्वैलरी के काम करने वालों के लिये यह साधना वरदान है। गया धन वापिस आता है। भूमि विवाद दूर होते है। अखण्ड धन लक्ष्मी, राज्य कृपा प्रमोशन की प्राप्ति होती है।

(यदि आप जप करने में सक्षम नहीं है तो हमसे संपर्क करे  | हम आपके नाम से सिद्ध किया हुआ प्राण प्रतिष्ठित कुबेर यन्त्र आपको उपलब्ध करा सकते है )
 प्रयोग-2    कुबेर पूजन नवनिधि दाता कुबेर

 ऊँ श्रीं ऊँ ह्रीं श्रीं ह्रीं

 क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:।।

 मनुष्यों, यक्षों गंधर्वों तथा राक्षसों के लिये तथा देवों के लिये भी कुबेर पूजनीय है। कुबेर के पिता विश्रवा तथा माता इडविडा हैं। इनकी सौतेली माता का नाम कैकसी था।

 कुबेर की पत्नी का नाम श्रद्धा तथा दोनों पुत्रों के नाम ‘नल कुबेर’ व ‘नील ग्रीव’ है। कैलाश पर्वत पर स्थित अलकापुरी इनकी राजधानी है। परंतु सर्वप्रथम इनका मूल निवास त्रिकूट पर्वत स्थित विश्वकर्मा द्वारा निर्मित स्वर्ण नगरी लंका थी।

 जैसे देवताओं के राजा इंद्र हैं।– गुरु बृहस्पति है। इसी प्रकार निखिल ब्राह्मांडों के धनाधिपति धनाध्यक्ष कुबेर है। महाभारत में कहा गया है कि महाराज कुबेर के साथ भार्गव-शुक्र तथा धनिष्ठा नक्षत्र भी दिखाई पड़ते हैं। इन तीनों की कृपा के बिना धन-वैभव की प्राप्ति नहीं होती है।
 प्रयोग-3,      ब्राह्मांडों के धनाध्यक्ष अपार धन प्रदाता श्रीकुबेर मंत्र साधना

 यदि कोई व्यक्ति पिछली सात पीढ़ियों से धनाभाव दरिद्रता व अपयश से पीड़ित है तो निम्न मंत्र प्रयोग से जन्मों की दरिद्रता दूर होती है। घर में अपार धन, ऐश्वर्य, संपदा, भवन, आभूषण, रत्न, वाहन, भूखंड व प्रतिष्ठा की प्राप्ति निश्चित होती है।

 भगवान शंकर की पूजा करने के बाद रावण को शूल पाणि शिव ने इस मंत्र का ज्ञान कराया था। इस मंत्र की 11 माला जाप 11 दिन तक नियम से करें। जाप के बाद हवन, तर्पण, मार्जन तथा ब्राह्मण भोजन आवश्यक होता है।

 धूप-दीप जलाकर, फल-फूल व मिष्ठान से भोग लगाकर, श्री कुबेर यंत्र पर चंदन (लाल) कुंकुम का तिलक लगाकर निम्न मंत्र जाप रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए। एक माला ऊँ गं गमपत्यै नम: का जाप करें।

 कुबेर मंत्र

 विनियोग

 ऊँ अस्य श्री कुबेर मंत्रस्य विश्रवा ऋषि:, बृहती

 छन्द: शिवसखा धनाध्यक्ष देवता, अखंड धन

 लाभ प्राप्यर्थे जपे विनियोग:

 ध्यान

 मनुजवाह्म विमानवर स्थितं

 गरुडरत्न निभं निधिनायकम्।

 शिवसखं मुकुटादि विभूषितं

 वरगदे दधतं भज तुन्दिलनम्।।

 प्रार्थना मंत्र

 देवि प्रियश्च नाथस्य कोषाध्यक्ष महामते।

 ध्यायेSहं प्रभुं श्रेष्ठं कुबेर धनदायकम्।।

 क्षमस्व मम दौरात्म्यं कृपासिंधो सुर:प्रिय:।

 धनदोSसि धनंदेहि अपराधांश्च नाशय।।

 महाराज कुबेर त्वं भूयो भूयो नमाम्यहम्।

 दीनोपि चदया यस्त जायतुं वै महाधन:।।

 मंत्र

 ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय

 धनधान्य अधिपतये धनधान्य

 समृद्धिं में देहि दापय स्वाहा।।

 विषेश-

 यह मंत्र शिवजी के मंदिर में या बेलपत्र के पेड़ के नीचे बैठकर जपने से सिद्धि शीघ्र मिलती है। एक लाख जप करने से इसका पुरश्चरण होता है। दशांश हवन तिल व देसी घी से होता है।

दीपावली के सिद्ध टोटके

" दीपावली " के दिन " अपामार्ग " की जड़ लाये . . और पूजन के पश्चात अपनी दाहिनी भुजा में बाँध ले . . देखिये . . आपकी समस्याए . . .कैसे हल होने लगती है . . . .

 = " दीपावली " के दिन संध्याकाल में पीपल के पेड़ के नीचे साबुत उड़द के दाने और उस पर थोड़ा दही और सिंदूर डालकर चढ़ावे . . . तेल का दीपक जलावे . . .देखिये . . .आपको काफी धन लाभ होगा . . . .

= " दीपावली " के दिन " पांच अभिमंत्रित कोडियों पर हल्दी का तिलक लगाकर " अपने ऊपर से आठ बार उसारकर किसी भिखारी को कुछ पैसो के साथ दान कर दे . . .आपको नौकरी मिलने की समस्या का अंत तुरंत हो जाएगा . . .

= " दीपावली " के दिन प्रातः काल पीपल पेड़ में गुड मिश्रित जल चढ़ावे . . .और दीपक जलावे . . .दीपक में दो लौंग डालना मत भूलियेगा . . . देखिये . . आपकी आर्थिक समस्याओं का अंत . . तुरंत कैसे होता है . . . . .

 = " दीपावली " के दिन जलकुम्भी लाकर पीले कपडे में बांधकर रसोई घर में रख दे . . देखिये . . आपके घर में खाने - पिने की चीजों में कभी कमी नहीं होंगी . . .

= " दीपावली " के दिन अपनी तिजोरी में थोड़े काली गुंजा के दाने ज़रूर डाले . . देखिये . . आपकी तिजोरी में कैसे धन बढ़ता है . . . .

 = " दीपावली " के दिन से प्रतिदिन " श्री सूक्त " का पाठ नियमित करना शुरू करे . . " माँ लक्ष्मी " आपके घर में स्थायी रहना शुरू कर देंगी . . .

दीपावली की रात कहाँ - कहाँ दीपक लगाने से होगी महालक्ष्मी प्रसन्न

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि दीपावली रात देवी महालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं। अत: इस रात को देवी को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न उपाय बताए गए हैं।
 यदि संभव हो तो रात के समय किसी श्मशान में दीपक जरूर लगाएं। पैसा प्राप्त करने के लिए यह एक चमत्कारी टोटका है।

धन प्राप्ति की कामना करने वाले व्यक्ति को दीपावली की रात मुख्य दरवाजे की चौखट के दोनों ओर दीपक अवश्य लगाना चाहिए।

घर के आंगन में भी दीपक लगाना चाहिए। ध्यान रखें यह दीपक बुझना नहीं चाहिए। कभी भी घरमें क्लेश और रोग नहीं होंगे |

हमारे घर के आसपास वाले चौराहे पर रात के समय दीपक लगाना चाहिए। ऐसा करने पर पैसों से जुड़ी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं।

घर के पूजन स्थल में दीपक लगाएं, जो पूरी रात बुझना नहीं चाहिए। ऐसा करने पर महालक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।

किसी बिल्व पत्र के पेड़ के नीचे दीपावली की शाम दीपक लगाएं। बिल्व पत्र भगवान शिव का प्रिय वृक्ष है। अत: यहां दीपक लगाने पर उनकी कृपा प्राप्त होती है।

पीपल के पेड़ के नीचे दीपावली की रात एक दीपक अवश्य लगाकर आएं। ऐसा करने पर आपकी धन से जुड़ी समस्याएं दूर हो जाएंगी।

छोटी बड़ी वाहन दुर्घटनाओं को टालने के प्रभावशाली उपाय

यह एक ऎसा सरल उपाय है जिसकेप्रयोग आप सुनिश्चित लाभ की अपेक्षा कर सकते हैं। इस प्रयोग के अन्तर्गत गुरूपुष्य नक्षत्र में शुभ मुहूर्त में निकाली गई अपामार्ग नामक पौधे की जड ले लें। इस पौधे को लटजीरा,आंधाझाडा इत्यादि नामों से भी पुकारा जाता है। इस जड को एक फिटकरी के टुकडे एवं एक कोयले के टुकडे के साथ एक काले वस्त्र में बांधकर उससे वाहन के चारों ओर दाहिने घूमते हुये 7 चक्कर लगायें। यह एक प्रकार का उसारा करने के समान है। इसके पश्चात इस पोटली को वाहन मे कहीं रख दें। ऎसा करने से वाहन दुरात्माओं से रक्षित रहता है तथा उसकी दुर्घटनाओं से भी रक्षा होती है।

जड़ी बूटी के चमत्कारिक प्रयोग



 तंत्र-विद्या में ऐसे कितने ही प्रयोगों का वर्णन है जो प्रबल सम्मोहन शक्ति से संपन्न माने जाते हैं। ध्यान रहे कि दुर्भावना अथवा मात्र कौतूहल के लिए कोई साधना नहीं की जानी चाहिये। तंत्र-मंत्र के प्रयोगों में निजहित की अपेक्षा लोकहित को वरीयता देना श्रेयस्कर होता है। सम्मोहन के प्रभाव: सम्मोहन के प्रभाव में मरीज को क्याहोता है? सबसे पहले उसका सचेतन मन काम करने से हट जाता है और उसके अचेतन मन की दुनिया साकार हो उठती है। डॉक्टर  के पूछने पर मरीज अपने अचेतन मन में छिपी बातों को बताने लगता है। इस प्रकार डाॅक्टर मरीज की बीमारी के उन मनोवैज्ञानिक कारणों को जान पाता है जो उसके अचेतन मन में छिपे हुए होते हैं। मनोवैज्ञानिक  डॉक्टर बीमारियों के इलाज में सम्मोहन का प्रयोग करते हैं। आपरेशन से पहले मरीज के भयभीत होने पर सम्मोहन द्वारा उसके मन को शांति दी जाती है। प्रसूति के समय होने वाली पीड़ा को भी सम्मोहन द्वारा कम किया जा सकता है। बिना किसी शारीरिक नुक्स के हकलाना, लगातार हिचकी आना, उल्टी होना, घबराहट के कारण भूख न लगना आदि ऐसी बीमारियां हैं, जिन्हें दूर करने में सम्मोहन ने बहुत सहायता की है। मानसिक तनाव कम करने में भी यह सहायक सिद्ध हुआ है। अतः डाॅक्टर जितने अरसे के लिए चाहे, मरीज में सम्मोहन पैदा कर सकता है फिर जगाने का सुझाव देकर निद्रा तोड़ भी सकता है। एक या दो घंटे के बाद सम्मोहन का असर जाता रहता है और मरीज खुद ही जाग जाता है। मानवीय विद्युत का यही प्रवाह या प्रभाव परस्पर के आकर्षण में अपना सहयोग देता है। उभरती हुई अवस्था में यही प्रवाह व प्रभाव शरीर के आकर्षण की भूमिका बनकर सामने आता है। उस समय उसका सदुपयोग होने से मनुष्य में ओजस्विता, तेजस्विता, वर्चस्वता आदि गुणों का समुचित विकास होने लगता है। यदि वह विकास नियमित रूप से बढ़ता रहे तो मनुष्य अनेक महत्वपूर्ण कार्य कर सकता है। परंतु उस विकास की अनियमितता उसके गुणों में वृद्धि या हानि का कारण भी बन सकती है। यदि वृद्धि होती है तो कोई न कोई असामान्यता परिलक्षित होने लगती है। भीम, अर्जुन, भीष्म, हनुमान, मां काली आदि के महाबली होने का रहस्य विद्युत ऊर्जा की वृद्धि समझनी चाहिये। इसके विपरीत इस ऊर्जा अथवा प्रवाह की हानि मनुष्य को निर्बल और हीन बनाने का कारण बनती है। इस कारण ही मनुष्य अपने अंदर हीन भावना अनुभव करने लगता है जिससे साहस और उत्साह में कमी हो जाती है। इस प्रकार विद्युत शक्ति की न्यूनाधिकता मनुष्य को हीन और श्रेष्ठ बनाने में कारण होती है। शरीर के अंग-प्रत्यंग में विद्युत ऊर्जा की उत्पत्ति में सहायक अनेक उपकरणों के साथ ही रासायनिक पदार्थों की भी कमी नहीं है। रक्त संचार की वह क्रिया इन सभी को संचरणशील रखती है और बिजली उत्पादन का कार्य भी अनवरत चलता रहता है। तांत्रिक प्रयोग सम्मोहन का तांत्रिक प्रयोग हर किसी को करने की अनुमति नहीं है। सम्मोहन के प्रयोग कोई चमत्कार नहीं है। कोई भी व्यक्ति इसे सीख- समझ सकता है परंतु उसी को सीखने की अनुमति मिलनी चाहिए जो द्विज-देव-गुरु भक्त हो और जन कल्याण कार्य करने की भावनाओं से युक्त हो।  सम्मोहन गुटिका: तुलसी की पत्तियां छाया में सुखाकर उन्हें भांग के बीज और असगंध मिलाकर गाय के दूध में पीस लें। भली-भांति पिस जाने पर मिट्टी की गोलियां बना लें। गोली बहुत छोटी-एक -एक रत्ती की होनी चाहिये। गोलियों पर उपरोक्त मंत्र की एकमाला फेरकर उन्हें सिद्ध कर लें और सेवन करें। नियमित रूप से प्रातःकाल एक गोली खाई जा सकती है। इस गोली के प्रयोग से सम्मोहन का प्रभाव उत्पन्न होता है। सम्मोहन कारक टीका सिंदूर, सफेद दूब, नागरबेल का पत्ता मिलाकर पीसें। इस लेप को मंत्र द्वारा शुद्ध करके टीके की भांति लगाने से सम्मोहन प्रभाव उत्पन्न होता है। हरताल और असगंध को केले के रस में पीस कर लेप बनाएं और मंत्र द्वारा शुद्ध कर लें। इस लेप का तिलक लगाने से सम्मोहन का चमत्कार प्रत्यक्ष अनुभव होता है। घी, कुआ व मेढासिंगी और जलभांगरा पीसकर मंत्र द्वारा सिद्ध कर लें। यह सम्मोहन के लिए श्रेष्ठ तिलक है। मदार की जड़ सिंदूर और केले का रस एक साथ पीसकर लेप बनाया जाये, उपरोक्त मंत्र द्वारा प्रभावित करने के बाद इसका प्रयोग सम्मोहन का अद्भुत चमत्कार दिखाता है। सम्मोहन शक्ति का अंजन - मक्खन, अजारस, श्वेतार्क मूल एक साथ पीस लें तथा मंत्र द्वारा शुद्ध-सिद्ध कर लें। यह मंत्र सिद्ध लेप अंजन की भांति आंखों में लगाने से सम्मोहक दृष्टि उत्पन्न करता है। सम्मोहन शक्ति के अन्य प्रयोग: लाल अपामार्ग की टहनी से 6 मास तक दातून करने पर वाणी में सम्मोहन और वचन सिद्धि का प्रभाव उत्पन्न होता है। इसी पौधे की जड़ ले आयें, उसकी भस्म बनाकर दूध के साथ पीने से संतानोत्पत्ति की स्थिति बनती है। स्त्री पुरुष दोनों को पीना चाहिये। इसके बीजों का चावल निकाले। उन चावलों की खीर खाने से भूख मर जाती है। सफेद लटजीरे की जड़ किसी शुभ-मुहूर्त में लाकर पास रखें। यह कल्याणकारी होती है। इसकी जड़ किसी शुभ-मुहूर्त में लाकर पीसें और तिलक करें इस तिलक में वशीकरण की शक्ति होती है। बहेड़ा और अपामार्ग (श्वेत) की जड़ंे लेकर शत्रु के घर में डालने से उसका परिवार उच्चाटन ग्रस्त हो जाता है। विच्छू के डंक मारने पर इसकी पत्ती पीसकर लगा दें विष उत्तर जायेगा। इसकी लकड़ी भी बिच्छू का विष दूर कर देती है। इसकी जड़ का लेप शस्त्र प्रहार से रक्षा करता है। सोंठ की माला पहनने से ज्वर उतर जाता है। श्वेत कनेर की जड़ को दायें हाथ में बांधने से ज्वर शांत हो जाता है। सफेद मदार की जड़ धारण करने से नजर और प्रेत बाधा दूर हो जाती है। सहदेवी पौधे की जड़ के सात टुकड़े करके कमर में बांधने से अतिसार रोग मिट जाता है। सफेद धुंधची की जड़ घिसकर सूंघने और उसे कान पर बांधने से आधा शीशी का दर्द मिट जाता है। सेहुंड की जड़ दांतों तले दबाने से दंतकीट नष्ट हो जाते हैं। लोबान की जड़ गले में बांधने से खांसी दूर हो जाती है। सफेद धुंधुची की जड़ सिर के नीचे रखने से अनिद्रा रोग मिट जाता है। तिल्ली का रोग दूर करने के लिए गले में प्याज की माला पहनना लाभदायक है। कमल के बीज और चावल बकरी के दूध में पीसकर खीर बनायें। यह खीर खाने वालों को चार दिन तक भूख नहीं लगती। सत्यानाशी की जड़ पान में खिलाने से बिच्छू का जहर उतर जाता है। शिरीष वृक्ष के फूलों की माला पहनकर भोजन करने से खुराक बढ़ जाती है

हिमालय के सबसे बड़े रहस्य भैरवी

भैरवी एक ऐसा रहस्य जिसने स्त्री की परिभाषा ही बदल कर रख दी है....आखिर ये भैरवी कौन है....कहाँ से आई है.....लोगों में भैरवी का इतना खौफ क्यूँ.....क्या किसी ने भैरवी को देखा है......भैरवी के अस्तित्व पर है कई सवाल....लेकिन जबाब कोई नहीं था....तो जाहिर है ऐसे में दुनिया की निगाहें उत्तर ढूँढने के लिए हिमालय की सबसे बड़ी रहस्य पीठ कौलान्तक पीठ की ओर नजरें उठा कर सवाल के जबाब की प्रतीक्षा करने लगी.....क्योंकि कभी एक ऐसा समय भी रहा है जब कौलान्तक पीठ के महासाधकों को कुलाचार के लिए विश्व भर में बदनाम कर दिया गया था....ये षड़यंत्र था उन धर्म के कथित ठेकेदारों का जिनकी रोटी और चापलूसी को समाज ने वास्तविकता जानने के बाद बंद कर दिया था.......जो औरत के साधना,पूजा,गायत्री,योग,तंत्र,दीक्षा को नकारने के लिए धर्म ग्रंथों को मनमाने तरीके से तोड़ मरोड़ रहे थे......या तो औरत उनके कहे को मानती या फिर धर्म से ही दूर हो जाने को विवश थी.....ऐसे में कौलान्तक पीठ हिमालय ने जो स्वतंत्रता स्त्री को दी वो इन कथित स्त्री विरोधी धर्माचार्यों को सहन नहीं हुई.....उनहोंने कौलाचारियों के बारे में कुछ ऐसी बातें फैला दी जिससे आम जन मानस उनसे कट जाए....हालाँकि बातें निराधार नहीं थी.....लेकिन सत्य भी नहीं.....कौलान्तक पीठ की तंत्र सधानायों में दीक्षा लेने वाली हर स्त्री को भैरवी कहा जाता है.......जिसका अर्थ होता है.....माँ शक्ति.....शिव की संगिनी माँ पारवती को तंत्र ग्रंथों में भैरवी कह कर ही शिव भी पुकारते हैं.....कोई भी तंत्र मार्गी स्त्री भैरवी और पुरुष भैरव के संबोधन से ही पुकारा जाता है......यहाँ एक बहुत बड़ी कमी थी...वो ये की सनातन मान्यता के अनुसार गुरु शिष्य के बीच विवाह नहीं हो सकता.....और एक ही गुरु से दीक्षित स्त्री पुरुष परस्पर विवाह नहीं कर सकते क्योंकि वे गुरु भाई और गुरु बहन होते हैं......लेकिन कौलान्तक पीठ का तर्क विपरीत था....की स्त्री पुरुष के धर्म गुरु अलग अलग होने के कारण गृहस्थी में तनाव रह सकता है.....इस लिए सबसे पहले उनहोंने दो विपरीत नियमों को स्वीकार किया....महारिशी अगत्स्य जिनको आधा हिमालय कहा जाता है.......के पास समस्या ले जाई गयी और उनहोंने दिया अनूठा समाधान.....की गुरु जो जोगी होता है......भी विवाह करने की पूरी स्वतंत्रता रखता है.....साथ ही जोगने....भैरावियाँ....साधिकाएँ भी गुरु गोत्र में विवाह कर सकती हैं.....लेकिन कुल गोत्र में नहीं......जिसका कारण रक्त का एक होना माना जाता है.......इस प्रकार जब ये सुविधा समाज को मिल गयी तो जाहिर है की कौलान्तक पीठ में साधकों की भीड़ इक्कट्ठा होने लगी......जिस कारण बहुतों से यह सहन न हो सका......प्रचलित कथा के अनुसार कौलाचारियों में एक दिव्य साधिका पैदा हुई जिसका नाम था अपरा भैरवी......जिसने दस महाविद्याओं को सिद्ध कर कौतुक विद्या में महारत हासिल कर ली....और सबसे ऊपर जा बैठी......क्योंकि कौतुक विद्या....जिसे आज कल जादूगरी कहा जाता है........जिसका मूल ट्रिक या चातुर्य होता है...को तत्कालीन लोग भली प्रकार नहीं समझ पाते थे.....इस लिए जब अपरा भैरवी कौतुक दिखाती तो लोग दांतों तले अंगुलियाँ दवा देते.....लोगों के मध्य प्रसिद्धि के शिखर पर पहुँच चुकी ये जादूगरनी भैरवी किस्से कहानियों में भयंकर रूप धारण करने लगी.....इसके जीवन के एक एक भाग को कहानी में जोड़ा गया......बस यहीं से शुरुआत होती है......भैरवी की.......
ऋग्वेद में सांकेतिक रूप से पञ्च चक्रों का विवरण है.......इन्ही पञ्च चक्रों में से एक है भैरवी चक्र.....ये चक्र दो प्रकार के हैं.....एक चीनाचारा चक्र पूजा और शैवमतीय चक्र पूजा.....हिमालयों में चीनाचारा पूजा लागु हुई.....यहाँ गौर करने वाली बात ये है की चीन,महाचीन हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला के दो गांवों का ही प्राचीन नाम है......न की वर्तमान चीन से उसका कोई लेना देना है......इस पद्धिति में पंचमकारों को जोड़ा गया.......बस यहीं पञ्च मकार वो तत्व हैं जिनके कारण सात्विक पंथियों को शोर मचाने का अवसर मिल गया.....लेकिन ये उनकी सबसे बड़ी मूर्खता थी.....क्योंकि उनहोंने भी वास्तविकता से मुह मोड़ लिया......वास्तविकता तो ये थी की हिमाचल......उत्तराँचल......जम्मू कश्मीर.....नेपाल....तिब्बत के बड़े हिस्सों में भयंकर हिमपात होता था.....वहां छः से सात महीनो तक बर्फ गिरी रहती थी.....जिसकारण हरियाली का एक भी पत्ता तक नहीं होता था.....ऐसे में इन क्षेत्रों के लोगो ने एक आसान सा उपाय खोज निकाला और वो था की भेड़ बकरियों को मार कर उनके मांस पर जीवित रहना....और कड़ी ठण्ड और सख्त हवाओं से बचने के लिए आयुर्वेद के कथनानुसार हलकी मदिरा को औषधि के रूप में लेना....जो तब से ले कर आज तक इन क्षेत्रों में प्रचलित है.....यहाँ के बच्चे...महिलाएं....युवा.....वृद्ध....सभी सामान रूप से माँसाहारी हैं और मदिरा का सेवन भी करते हैं.....और तो और पवित्री करण तथा पूजा के लिए भी मदिरा का ही प्रयोग होता है....क्योंकि भैरवी साधिका अपरा भैरवी इन्हीं क्षेत्रों की रहने वाली थी इस लिए लोगों ने कहानियों में जोड़ दिया की भैरवी मांस खाती है.....भैरवी मदिरा पीती है......भैरवी मुर्दे पर बैठ कर करती है साधना.....ये बात बिलकुल ही गलत है......की भैरवी मुर्दे पर बैठ कर साधना करती है......वास्तव में मरे हुए बकरे की खाल......याक नाम के हिमालयन प्राणी की खाल पर बैठ कर भैरव-भैरवी साधना करते थे......याक की सफेद खाल को तंत्र में शव कहा जाता है....जिससे बनी शव साधना.......भैरव-भैरवी पूजा में हस्त मुद्राओं और योग मुद्राओं को जोड़ते है.....इसीलिए मुद्रा शब्द भी जुड़ गया......प्राकृतिक तौर पर भैरवी का चेहरा मंगोलियन था....जैसा की चीन या जापान अथवा तिब्बत की कोई सुंदरी हो.....और इन स्थानों में स्त्री को बहु पति रखने की स्वतंत्रता थी.....सन 2000तक हिमाचल के लाहुल स्पीती जिला चंबा और किन्नौर के कुछ भागों में ऐसे परिवार थे....जिनमे की एक ही औरत के चार पति थे......इन भागों में लिंगानुपात इतना गिर गया था की ऐसी नौबत आन पड़ी थी......इस कारण भैरवी पर सभोग करने का कलंक लगा दिया गया.....यहाँ ये स्पष्ट है कि हर पत्नी अपने पति से सम्बन्ध बनाती है.....तब तो कोई गलत नहीं कहता....भैरवी केवल अपने भैरव से ही सम्बन्ध बनती थी क्योंकि दोनों पति पत्नी ही थे......बस बताने की कला है.....किसी ने कहानी को ऐसे पेश किया की भैरवी आतंक्वादिनी ही लगने लगी......भैरवी को लोक कथाओं ने शीर्ष पर बिठा दिया क्योंकि वे उसके कथित चमत्कारों से डरे हुए थे....लेकिन भैरवी तो एक आम साधिका ही थी....लोगों ने कहा की भैरवी के पास देवी-देवताओं से भी ज्यादा शक्तियां हैं.....धीरे धीरे रहस्य बढ़ता गया....समय के साथ साथ जब भोजन की.....बस्त्रों की उपलब्धता हो गयी तो भैरवी ने ये सब छोड़ दिया....और सात्विक भैरवी प्रकाश में आई.....लोगों ने यहाँ तक कहा कि भैरवी को देखने वाला जीवित नहीं रहता....रात के घुप्प अन्धकार में बाल फिलाये कोई स्त्री जंगल में अकेली दिख जाये तो कमजोर दिल वाला मरेगा ही......इसमें भैरवी का क्या लेना देना......हिमालयों के क्षेत्रों में आज भी कई सात्विक भैरवियाँ हैं.........जिनमे से एक हेमाद्री नाम कि भैरवी का मिलन कौलान्तक पीठाधीश्वर महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी महाराज से सन 1999के अंत में कुल्लू के निकट मणिकरण के पर्वतों पर हुआ....और क्योंकि महायोगी कौलान्तक पीठ के पीठाधीश्वर है.....इस कारण उनको धर्मानुसार विवाह करने कि पूर्ण स्वतंतत्रता हासिल है......हेमाद्री ये बात जानती थी....और ये भी कि महायोगी युग पुरुष बनने के लक्षणों से भरे हैं......इसलिए वो उनके आप पास रहने लगी....लेकिन महायोगी जी का उद्देश्य साधना था न कि विवाह....उनहोंने हेमाद्री को आश्रम जो कि तब शक्ति समुदाय के नाम से हिमाचल के मण्डी जिला में स्थित था आने का निमंत्रण दिया.....बालीचौकी हेमाद्री का कई बार आना हुआ कई लोगो ने उसे देखा है.....वो कोई हवा में उड़ने वाली भैरवी नहीं बल्कि साधारण साधिका थी......अब क्योंकि थी तो भैरवी ही....इस लिए लोगों को डरने के लिए इतना ही काफी था....2005के अंत में हेमाद्री कुल्लू कौलान्तक पीठ आई और महायोगी जी के साथ कई दिनों तक रही...महायोगी जी के हेमाद्री के साथ कई फोटो उपलब्ध हैं.......वो महायोगी जी को बहुत स्नेह करती थी.....और विवाह का प्रस्ताव भी रखा लेकिन महायोगी जी ने किसी कारणवश ये प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया....हेमाद्री भैरवी पिन पार्वती नाम के दर्रे के निकट साधना करने की बहुत इच्छुक थी.....और महायोगी जी उस क्षेत्र के नायक है.....इसलिए महायोगी जी हेमाद्री को ले कर पिन पारवती कि और चले गए जहाँ कई लोगो ने मणिकरण क्षेत्र से आगे उनको देख भी लिया.....महायोगी और हेमाद्री के कई महीनो साथ रहने के कारण लोगों ने फिजूल की कई बाते बनाना शुरू कर दिया....जो कि हमारे देश को बिरासत में मिला है.....किसी के साथ बहन भी जा रही हो तो नजरें लोगों की गलत ही समझती हैं........क्योंकि मनोवैज्ञानिक रूप से वे ही काम कुंठाओं से ग्रसित हैं.......इस कारण महायोगी जी ने उनको मजबूरन आश्रम से चले जाने को कहा.......जिससे हेमाद्री को बहुत दुःख हुआ......बो रोती हुई आश्रम से चली तो गयी लेकिन महायोगी जी को कहा कि हिमालयपुत्र भैरवी होने के कारण मेरा कहीं भी सम्मान नहीं है...लोग जानते ही नहीं कि भैरवी क्या है......तो आप वचन दीजिये कि भैरवी के गुप्त विषय को लोगों तक ले कर आयेंगे.....महायोगी जी ने आश्वासन दिया......हेमाद्री भैरवी के जाने से महायोगी जी भी कुछ दुखी हुए....जिसका कारण भारतीय मानसिकता का इतना बुरा रूप देखना था....फिर भैरवी के विषय पर महायोगी जी ने अपना शोध शुरू किया......और सामने आई सात्विक भैरवी........जो सब बुराइयों से दूर पवित्र साधिका थी......लेकिन समाज और मीडिया के मन से छवि को हटाना जरूरी था.......महायोगी जी ने भैरवी को समझाने के लिए भैरवी साधना के नाट्य रूपांतरण का सहारा लिया.....बस इसी दौरान प्रिंट मीडिया में पहली खबर लगी......लेकिन बहुत ही सुन्दर एवं सटीक......पत्रकारों ने महायोगी जी के शोध को जनता के सामने लाने कि कोशिश की.....लेकिन यही खबर जब इन्टरनेट मीडिया के द्वारा इलेक्ट्रोनिक मीडिया तक पहुंची तो एक बार फिर भैरवी का रूप बदल गया......सात्विक भैरवी फिर से काल भैरवी हो गयी.....शोध कि धज्जियाँ उड़ा दी गयी.....देश के एक प्रतिष्ठित टीवी चैनल ने तो महायोगी जी को और उनके शोद्ध को ही गलत करार दे दिया.......कुल्लू में कार्यरत एक तथाकथित पत्रकार ने पत्रकारिता का गला घोट कर टीवी चैनल के नाट्य रूपांतरण को सच समझ कर समाचार पत्र में विचित्र अंदाज में छाप दिया....कम दिमाग के इस पत्रकार ने जो पत्रकारिता का बलात्कार किया है.....वो सदियों के लिए अमर हो गया....इसके बाद देश के सभी टीवी चैनल भैरवी को बार बार दोहराते रहे.....क्योंकि भैरवी एक औरत है......उनको शायद सत्य से कुछ लेना देना नहीं........ऊपर से वो कथित समझदार लोग जिन्होंने हिमालयन कल्चर देखा ही नहीं......लेकिन भैरवी पर कुर्सियों में बैठ कर टिका टिप्पणी करने लग गए......दिमागी खुजली को मिटाने का अच्छा तरीका मिला गया......इधर महायोगी जी पर हुए झूठे षड़यंत्र के कारण रोष में आ कर आश्रम के कुछ शिष्यों ने महायोगी जी के 3000पन्नो के शोध पत्र को कि जला दिया और इस घटना से दूर रहने का आग्रह करने लगे......लेकिन महायोगी भी महायोगी ही हैं.....उनहोंने कहा देखते है कि झूठ जीतता है या सच.....अभी सात्विक भैरवी पर एक बार फिर महायोगी जी का शोध शुरू हो गया है.....उनका उद्घोष है कि मनहूस और अश्लीलता के आबरण से निकाल कर मैं जगत में सबसे पवित्र भैरवी स्थापित कर दूंगा.....हिमालय के माथे पर लगा कलंक मिट जाएगा....स्त्री को धर्म कि स्वतंत्रता मिलेगी....भैरवी साधिकाएँ गौरवमय जीवन जी सकेंगी.....मीडिया में भी कुछ लोग सच्ची पत्रकारिता करते हैं वो भैरवी का वास्तविक रूप एक न एक दिन जरूर लोगों तक ले कर आयेंगे.....और महायोगी का हेमाद्री को दिया बचन भी पूरा होगा और हिन्दू धर्म के कुत्सित समझे जाने वाले स्वरुप भैरवी को लोग पवित्रता और सम्मान से देवी कि तरह देखेंगे.....स्त्रियों का विरोद्ध धर्म में बंद होगा....स्त्री पुरुष सामान रूप से महासाधानाएं कर सकेंगे...कौलान्तक पीठ ने तो सदियों से नारी को सामान भाव से देखा है....जिसका परामान है कौलान्तक पीठ कि कई परम्पराएँ....जिनमें स्त्रियों को देवी के रूप में पूजा जाता है...एक उदहारण है जिन्दा लक्ष्मी......
देश और सम्प्रदाय में खुशहाली रहे इसके लिए कौलान्तक पीठ.......हिमालय के जंगलों में करता है महालक्ष्मी को जीवित एवं जागृत.....जिसे महालक्ष्मी का महाआवाहन भी कहा जाता है.....जिसमे स्वेच्छा से कौलान्तक संप्रदाय की साधिकाएँ अपने को नामजद करती है कि उनके माध्यम से महालक्ष्मी को बुलाया जाए....चार महीनो तक कड़ी साधना के बाद वो कन्या जिसमें महालक्ष्मी का आवाहन होना है जिसे देवकन्या कहा जाता है....तैयार हो पाती है कि साधना पूरी हो....पूरण सात्विक निति नियमों का पालन सरल नहीं...फिर सारे काम काज के बाद भी एक साल तक बनो में रहना साधना करना आदि आसान नहीं....पर ये प्राचीन मान्यताएं हैं.....जिनका पालन पीठाधीश्वर होने के नाते न चाहते हुए भी महायोगी सत्येन्द्र नाथ जी को करना ही पड़ेगा....लेकिन कथित बुद्धिबादी ये सब कहाँ देख सकते हैं....जबकि महायोगी नहीं चाहते कि कोई लड़की या स्त्री भैरवी या देवकन्या या लक्ष्मी का रूप धारण करे.....लेकिन सनातन को नकार देना भी उनके बसमें नहीं.....वो केवल तामसिक तत्वों के विरोधी हैं.....बलि प्रथा के सबसे बड़े बिरोधी होने का खामियाजा वो बचपन में ही भुगत चुके हैं.....नशा विरोधी कार्यों के कारण उनको लोग समाजसेवी भी मानते हैं.....लेकिन भैरवी की हकीकत समझाने के लिए....समाज शास्त्र.....खगोल शास्त्र....साहित्य...इतिहास....लोक कथाओं का व परम्पराओं का ज्ञान चाहिए...जो कथित कुर्सी ओर ऐसी धारियों के पास नहीं.....वो तो कुछ किताबों लेखकों या इंटरनेट पर निर्भर हैं.....उनकी हालत देख कर तो उनपर दया आती है पर ज्ञानी होने का अहंकार कहाँ जाता है....इन सबसे सिद्ध होता है कि भैरवी को समझना जहाँ बहुत जटिल हैं....वहाँ महायोगी जी के कार्य काबिले तारीफ है कि वो भैरवी के सबसे शुद्ध रूप को सामने लाने में काफी सफल हुए.....मेरे जीवन का ये सौभाग्य है कि मैं हिमालय के सबसे प्रखर योगी जिनको महाक्रोधी मुद्रानायक भी कहा जाता है...जिसका अर्थ होता है की कृत्रिम क्रोध की मुद्राएँ दिखने वाला......महायोगी चक्र राज सत्येन्द्र नाथ जी महाराज ..जिनकी थाह पाना किसी के बस में नहीं.....जो अपनी प्रशंसा चाहते ही नहीं...बाल्यकाल से तपस्या को प्रमुखता देते हैं....इस सतयुगी योगी के निकट रह कर भी उनको नहीं जाना जा सकता....साधना ही उपाय है.....फिलहाल भैरवी तो परदे से बाहर आ ही गयी....आलोचनाएँ तो महापुरुषों की प्रियातामायें होती हैं....वे ही उनको महान बनती हैं.....भैरवी कुछ सामने तो आई..... लेकिन अभी भी रहस्य तो बना ही है.....