शनिवार, 2 मई 2015

चौसठ कलाएँ


भारतीय साहित्य में 64 कलाओं का वर्णन है, जो इस प्रकार हैं -
1- गानविद्या
2- वाद्य : भांति-भांतिके बाजे बजाना
3- नृत्य
4- नाट्य
5- चित्रकारी
6- बेल-बूटे बनाना
7- चावल और पुष्पादिसे पूजा के उपहार की रचना करना
8- फूलों की सेज बनान
9- दांत, वस्त्र और अंगों को रंगना
10- मणियों की फर्श बनाना
11- शय्मा-रचना
12- जलको बांध देना
13- विचित्र सििद्धयां दिखलाना
14- हार-माला आदि बनाना
15- कान और चोटी के फूलों के गहने बनाना
16- कपड़े और गहने बनाना
17- फूलों के आभूषणों से श्रृंगार करना
18- कानों के पत्तों की रचना करना
19- सुगंध वस्तुएं-इत्र, तैल आदि बनाना
20- इंद्रजाल-जादूगरी
21- चाहे जैसा वेष धारण कर लेना
22- हाथ की फुतीकें काम
23- तरह-तरह खाने की वस्तुएं बनाना
24- तरह-तरह पीने के पदार्थ बनाना
25- सूई का काम
26- कठपुतली बनाना, नाचना
27- पहली
28- प्रतिमा आदि बनाना
29- कूटनीति
30- ग्रंथों के पढ़ाने की चातुरी
31- नाटक आख्यायिका आदि की रचना करना
32- समस्यापूर्ति करना
33- पट्टी, बेंत, बाण आदि बनाना
34- गलीचे, दरी आदि बनाना
35- बढ़ई की कारीगरी
36- गृह आदि बनाने की कारीगरी
37- सोने, चांदी आदि धातु तथा हीरे-पन्ने आदि रत्नों की परीक्षा
38- सोना-चांदी आदि बना लेना
39- मणियों के रंग को पहचानना
40- खानों की पहचान
41- वृक्षों की चिकित्सा
42- भेड़ा, मुर्गा, बटेर आदि को लड़ाने की रीति
43- तोता-मैना आदि की बोलियां बोलना
44- उच्चाटनकी विधि
45- केशों की सफाई का कौशल
46- मुट्ठी की चीज या मनकी बात बता देना
47- म्लेच्छ-काव्यों का समझ लेना
48- विभिन्न देशों की भाषा का ज्ञान
49- शकुन-अपशकुन जानना, प्रश्नों उत्तर में शुभाशुभ बतलाना
50- नाना प्रकार के मातृकायन्त्र बनाना
51- रत्नों को नाना प्रकार के आकारों में काटना
52- सांकेतिक भाषा बनाना
53- मनमें कटकरचना करना
54- नयी-नयी बातें निकालना
55- छल से काम निकालना
56- समस्त कोशों का ज्ञान
57- समस्त छन्दों का ज्ञान
58- वस्त्रों को छिपाने या बदलने की विद्या
59- द्यू्त क्रीड़ा
60- दूरके मनुष्य या वस्तुओं का आकर्षण
61- बालकों के खेल
62- मन्त्रविद्या
63- विजय प्राप्त कराने वाली विद्या
64- बेताल आदि को वश में रखने की विद्या

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

श्वेतार्क गणेश साधना , पूजन एवं महत्व



शास्त्रों में श्वेतार्क के बारे में कहा गया है - ‘‘ जहां कहीं भी यह पौधा अपने आप उग आता है, उसके आस-पास पुराना धन गड़ा होता है । जिस घर में श्वेतार्क की जड़ रहेगी, वहां से दरिद्रता स्वयं पलायन कर जाएगी । इस प्रकार मदार का यह पौधा मनुष्य के लिए देव कृपा, रक्षक एवं समृद्धिदाता है । सफेद मदार की जड़ में गणेशजी का वास होता है, कभी-कभी इसकी जड़ गणेशजी की आकृति ले लेती है । इसलिए सफेद मदार की जड़ कहीं से भी प्राप्त करें और उसकी श्रीगणेश की प्रतिमा बनवा लें । उस पर लाल सिंदूर का लेप करके उसे लाल वस्त्र पर स्.थापित करें । यदि जड़ गणेशाकार नहीं है, तो किसी कारीगर से आकृति बनवाई जा सकती है । शास्त्रों में मदार की स्तुति इस मंत्र से करने का विघान है ।

चतुर्भुज रक्ततनुंत्रिनेत्रं पाशाकुशौ मोदरक पात्र दन्तो ।
करैर्दधयानं सरसीरूहस्थं गणाधिनाभंराशि चू यडमीडे ।।

गणेशोपासना में साधक लाल वस्त्र, लाल आसन, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करें । नेवैद्य में गुड़ व मूंग के लडडू अर्पित करें । ‘‘ ऊँ वक्रतुण्डाय हुम् ’’ मंत्र का जप करें । श्रद्धा और भावना से की गई श्वेतार्क की पूजा का प्रभाव थोड़े बहुत समय बाद आप स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अनुभव करने लगेंगे । तंत्र शास्त्र में श्वेतार्क गणपति की पूजा का विधान है । यह आम लक्ष्मी व गणपति की प्रतिमाओं से भिन्न होती है । यह प्रतिमा किसी धातु अथवा पत्थर की नहीं बल्कि जंगल में पाये जाने वाले एक पौधे  का श्वेत आक के नाम से जाना जाता है । इसकी जड़ कम से कम 27 वर्ष से ज्यादा पुरानी हो उसमें स्वतः ही गणेशजी की प्रतिमा बन जाती है । यह प्रकृति का एक आश्चर्य ही है । श्वेतक आक की जड़ (मूल) यदि खोदकर निकल दी जाये तो नीचे की जड़ में गणपति जी की प्रतिमा प्राप्त होगी । इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से साधक को धन-धान्य की प्राप्ति होती है । यह प्रतिमा स्वतः सिद्ध होती है । तन्त्र शास्त्रों के अनुसार ऐसे घर में जहां यह प्रतिमा स्ािापित हो, वहां रिद्धी-सिद्ध तथा अन्नपूर्णा देवी वास् करती है ।
            श्वेतार्क की प्रतिमा रिद्धी-सिद्ध की मालिक होती है । जिस व्यक्ति के घर में यह गणपति की प्रतिमा स्ािापित होगी उस घर में लक्ष्मी जी का निवास होता है तथा जहां यह प्रतिमा होगी उस स्थान में कोई भी शत्रु हानि नहीं पहुंचा सकता । इस प्रतिमा के सामने नित्य बैठकर गणपति जी का मूल मंत्र जपने से गणपति जी के दर्शन होते हैं तथा उनकी कृपा प्राप्त होती है । श्वेतक आक की गणपति की  प्रतिमा अपने पूजा स्थान में पूर्व दिशा की तरफ ही शता\शता स्थापित   करें । ‘‘ ओम गं गणपतये नमः ’’ मंत्र का प्रतिदिन जप करने । जप के लिए लाल रंग का आसन प्रयोग करें तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह जप करें तो जप कल में ही साधक की हर मनोकामना गणपति जी पूरी करते हैं ।
स्वास्थ्य और धन के लिए श्वेत आर्क गणपति: श्वेतार्क वृक्ष से सभी परिचित हैं । इसे सफेद आक, मदार, श्वेत आक, राजार्क आदि नामों से जाना जाता है । सफेद फूलों वाले इस वृक्ष को गणपति का स्वरूप माना जाता है । इसलिए प्राचीन ग्रंथों के अनुसार जहां भी यह पौधा रहता है, वहां इसकी पूजा की जाती है । इससे वहां किसी भी प्रकार की बाधा नहीं आती । वैसे इसकी पूजा करने से साधक को काफी लाभ होता है । अगर रविवार या गुरूवार के दिन पुष्प नक्षत्र में विधिपूर्वक इसकी जड़ को खोदकर ले आएं और पूजा करें तो कोई भी विपत्ति जातकों को छू भी नहीं सकती । ऐसी मान्यता है कि इस जड़ के दर्शन मात्र से भूत-प्रेत जैसी बाधाएं पास नहीं फटकती । अगर इस पौधे की टहनी तोड़कर सुखा लें और उसकी कलम बनाकर उसे यंत्र का निर्माण करें , तो यह यंत्र तत्काल प्रभावशाली हो जाएगा । इसकी कलम में देवी सरस्वती का निवास माना जाता है । वैसे तो इसे जड़ के प्रभाव से सारी विपत्तियां समाप्त हो जाती हैं । इसकी जड़ में दस से बारह वर्ष की आयु में भगवान गणेश की आकृति का निर्माण होता है । यदि इतनी पुरानी जड़ न मिले तो वैदिक विधि पूर्वक इसकी जड़ निकाल कर इस जड़ की लकड़ी में गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर बनाएं । यह आपके अंगूठे से बड़ी नहीं होनी चाहिए । इसकी विधिवत पूजा करें । पूजन में लाल कनेर के पुष्प अवश्य इस्तेमाल में लांए । इस मंत्र ‘‘ ऊँ पंचाकतम् ऊँ अंतरिक्षाय स्वााहा ’’ से पूजन करें और इसके पश्चात इस मंतर
‘‘ ऊँ ह्रीं पूर्वदयां ऊँ ही्रं फट् स्वाहा ’’ से 108 आहुति दें । लाल कनेर के पुष्प शहद तथा शुद्ध गाय के घी से आहुति देने का विधान है । इसके बाद 11 माला जप नीचे लिखे मंत्र का करंे और प्रतिदिन कम से कम 1 माला करें । ‘‘ ऊँ गँ गणपतये नमः ’’ का जप करें । अब ’’ ऊँ ह्रीं श्रीं मानसे सिद्धि करि ह्रीं नमः ’’  मंत्र बोलते हुए लाल कनेर के पुष्पों को नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दें । धार्मिक दृष्टि से श्वेत आक को कल्प वृक्ष की तरह वरदायक वृक्ष माना गया है । श्रद्धा पूर्वक नतमस् तक होकर इस पौधे से कुछ माँगन पर यह अपनी जान देकर भी माँगने वाले की इच्छा पूरी करता है । यह भी कहा गया है कि इस प्रकार की  इच्छा शुद्ध होनी चाहिए । ऐसी आस्था भी है कि इसकी जड़ को पुष्प नक्षत्र में विशेष विधिविधान के साथ जिस घर में स्ािापित किया जाता है वहाँ स्थायी रूप से लक्ष्मी का वास बना रहता है और धन धान्य की कमी नहीं रहती । श्वेतार्क के ताँत्रिक, लक्ष्मी प्राप्ति, ऋण नाशक, जादू टोना नाशक, नजर सुरक्षा के इतने प्रयोग हैं कि पूरी किताब लिखी जा सकती है । थोड़ी सी मेहनत कर आप भी अपने घर के आसपास या किसी पार्क आदि में श्वेतार्क का पौधा प्राप्त कर सकते हैं । श्वेतार्क गणपति घर में स्ािापित करने से सिर्फ गणेश जी ही नहीं बल्कि माता लक्ष्मी और भगवान शिव की भी विशेष कृपा प्राप्त होती है । सिद्धी की  इच्छा रखने वालों को 3 मास तक इसकी साधन करने से सिद्धी प्राप्त होती है । जिनके पास धन न रूकता हो या कमाया हुआ पैसा उल्टे सीधे कामों में जाता हो उन्हें अपने घर में श्वेतार्क गणपति की स्.थापना करनी चाहिए । जो लोग कर्ज में डूबे हैं उनके लिए कर्ज मुक्ति का इससे सरल अन्य कोई उपाय नहीं है । जो लोग ऊपरी बाधाओं और रोग विशेष से ग्रसित हैं इसकी पूजा से वायव्य बाधाओं से तुरंत मुक्ति और स्वास्थ्य में अप्रत्याशित लाभ पा सकते हैं । जिनके बच्चों का पढ़ने में मन न लगता हो वे इसकी स्.थापना कर बच्चों की एकाग्रता और संयम बढ़ा सकते है । पुत्रकाँक्षी यानि पुत्र कामना करने वालों को गणपति पुत्रदा स्त्रोत का पाठ करना चाहिए ।
 श्वेतार्क गणेश साधना:  हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को अनेक रूप में पूजा जाता है इनमें से ही एक श्वेतार्क गणपति भी है । धार्मिक लोक मान्ताओं में धन, सुख-सौभाग्य समृद्धि ऐश्वर्य और प्रसन्नता के लिए श्वेतार्क के गणेश की मूर्ति शुभ फल देने वाली मानी जाती है । श्वेतार्क के गणेश आक के पौधे की जड़ में बनी प्राकृतिक बनावट रूप में प्राप्त होते हैं । इसे पौधे की एक दुर्लभ जाति सफेद श्वेतार्क होती है जिसमें सफेद पत्ते और फूल पाए जाते हैं इसी सफेद श्वेतार्क की जड़ की बाहरी परत को कुछ दिनों तक पानी में भिगोने के बाद निकाला जाता है तब इस जड़ में भगवान गणेश की मूरत दिखाई देती है । इसकी जड़ में सूंड जैसा आकार तो अक्सर देखा जा सकता है । भगवान श्री गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि के दाता माना जाता है । इसी प्रकार श्वेतार्क नामक जड़ श्री गणेश जी का रूप मानी जाती है श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है । श्वेतार्क की जड़ श्री गणेशजी का रूप मानी जाती है। श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है । श्वेतार्क की जड़ को तंत्र प्रयोग एवं सुख-समृद्धि हेतु बहुत उपयोगी मानी जाती है । गुरू पुष्प नक्षत्र में इस जड़ का उपयोग बहुत ही शुभ होता है । यह पौधा भगवान गणेश के स्वरूप होने के कारण धार्मिक आस्था को और गहरा करता है ।
श्वेतार्क गणेश पूजन: श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा को पूर्व दिशा की तरफ ही स्.थापित करना चाहिए तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह गणेश मंत्रों का जप करने से सर्वकामना सिद्ध होती है । श्वेतार्क गणेश पूजन में लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करनी चाहिए । नेवैद्य में लडडू अर्पित करने चाहिए ‘‘ ऊँ वक्रतुण्डाय हुम् ’’ मंत्र का जप करते हुए श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के प्रभावस्वरूप् प्रत्यक्ष रूप से इसके शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है । तन्त्र शास्त्र में भी श्वेतार्क गणपति की पूजा का विशेष बताया गया है । तंत्र शास्त्र अनुसार घर में इस प्रतिमा को स्ािापित करने से ऋद्धि-सिद्धि कि प्राप्ति होती है । इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से भक्त को धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा लक्ष्मी जी का निवास होता है । इसके पूजन द्वारा शत्रु भय समाप्त हो जाता है । श्वेतार्क प्रतिमा के सामने नित्य गणपति जी का मंत्र जाप करने से गणेशजी का आर्शिवाद प्राप्त होता है तथा उनकी कृपा बनी रहती है ।
श्वेतार्क गणेश महत्व: दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ ही श्वेतार्क गणेश जी का पूजन व अथर्वशिर्ष का पाठ करने से बंधन दूर होते हैं और कार्यों में आई रूकावटें स्वत: ही दूर हो जाती है । धन की प्राप्ति हेतु श्वेतार्क की प्रतिमा को दीपावली की रात्रि में षडोषोपचार पूजन करना चाहिए । श्वेतार्क गणेश साधना अनेकों प्रकार की जटिलतम साधनाओं में सर्वाधिक सरल एवं सुरक्षित साधना है । श्वेतार्क गणपति समस्त प्रकार के विघनों के नाश के लिए सर्वपूजनीय है । श्वेतार्क गणपति की विधिवत स्ािापन और पूजन से समस्त कार्य साधानाएं आदि शीघ्र निर्विघं संपन्न होते है। । श्वेतार्क गणेश के सम्मुख मंत्र का प्रतिदिन 10 माला जप करना चाहिए तथा ‘‘ ऊँ नमो हस्ति - मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट - महात्मने आं क्रों हीं क्लीं ह्रीं हूं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा ’’ साधना से सभी इष्ट कार्य सिद्ध होते हैं 

आंकड़े के चमत्कारी उपाय

यदि आप किसी रोग या अन्य शारीरिक समस्या पीडि़त हैं और दवाओं का असर भी ठीक से नहीं हो रहा है तो यह चिंता का विषय है। जब दवाओं का भी असर ना हो तो संभव है कि किसी नकारात्मक शक्ति का बुरा असर आप पर हो। ऐसे में उस नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए आंकड़े के चमत्कारी उपाय अपनाने चाहिए।
यहां दिए गए फोटो में जानिए एक प्राचीन चमत्कारी उपाय जिससे आपकी स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां दूर हो जाएंगी साथ ही धन की कमी से भी राहत मिलेगी...
पेड़-पौधों का सबसे बड़ा फायदा है कि उनसे हमें प्राणवायु ऑक्सीजन गैस प्राप्त होती है। पेड़-पौधों से ही प्राकृतिक संतुलन बना रहता है और सभी मौसम नियमित रहते हैं। हर परिस्थिति में हरियाली हमारे लिए फायदेमंद ही है। इन फायदों के साथ ही शास्त्रों के अनुसार पौधों के कई धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व भी बताए गए हैं। एक चमत्कारी पौधा है आंकड़े का पौधा। इस पौधे के कई प्रकार उपाय बताए गए हैं।
आंकड़े का पौधा ऐसा है जिससे हम कई चमत्कारिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। हमारे घर या घर के आसपास यह पौधा हो तो यह काफी फायदेमंद रहता है। इस पौधे को आंक, अकौआ नामों से जाना जाता है।
यह सामान्यत: जंगलों में आसानी से पनप जाता है, लेकिन शहरों में भी यह आसानी से दिखाई दे जाता है। यह पौधा जहां कहीं खाली बंजर जमीन होती है वहां पनप जाता है। यह एक विषैला पौधा है। आंकड़े के पौधे से सफेद दूध भी निकलता है।
यदि किसी व्यक्ति को अपने शरीर की रक्षा नकारात्मक शक्तियों से, बीमारियों से, बुढ़ापे की परेशानियों से करनी हो तो उसे आंकड़े के पौधे का यह उपाय अपनाना चाहिए। उपाय के अनुसार आंकड़े के पौधे की जड़ का एक छोटा सा टुकड़ा गले में ताबीज के साथ धारण करना चाहिए।
ध्यान रखें ताबीज के लिए काले धागे का प्रयोग करें। मार्केट में कई प्रकार के ताबीज आसानी से मिल जाते हैं। अत: उस ताबीज में आंकड़े की जड़ को डालकर धारण करें। इस उपाय से आपके शरीर की रक्षा होगी, क्योंकि यह ताबीज किसी कवच के समान काम करेगा।
 यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से परेशान है तो वह रवि पुष्य के दिन आंकड़े एवं अरण्ड की जड़ निमंत्रण देकर तोड़कर ले आएं। जड़ तोडऩे से पहले जड़ को निमंत्रण दें कि आप हमारे साथ चलिए। इसके बाद घर पर इन जड़ों को गंगाजल से धोएं, सिंदूर आदि पूजन सामग्री अर्पित कर पूजन करें। पूजन के दौरान श्रीगणेशाय नम: मंत्र का जप 108 बार करें।
शास्त्रों अनुसार आंकड़े के फूल शिवलिंग पर चढ़ाने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं और अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। आंकड़े पौधा मुख्यद्वार पर या घर के सामने हो तो बहुत शुभ माना जाता है। इसके फूल सामान्यत: सफेद रंग के होते हैं। विद्वानों के अनुसार कुछ पुराने आंकड़ों की जड़ में श्रीगणेश की प्रतिकृति निर्मित हो जाती है जो कि साधक को चमत्कारी लाभ प्रदान करती है।
ज्योतिष के अनुसार जिस घर के सामने या मुख्यद्वार के समीप आंकड़े का पौधा होता है उस घर पर कभी भी किसी नकारात्मक शक्ति का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके अलावा वहां रहने वाले लोगों को तांत्रिक बाधाएं कभी नहीं सताती। घर के आसपास सकारात्मक और पवित्र वातावरण बना रहता है जो कि हमें सुख-समृद्धि और धन प्रदान करता है। ऐसे लोगों पर महालक्ष्मी की विशेष कृपा रहती है और जहां-जहां से लोग कार्य करते हैं वहीं से इन्हें धन लाभ प्राप्त होता है

जिंदगी का दूसरा नाम परेशानी है

 दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं जो पूरी तरह से सुखी हो। सभी के जीवन में कुछ न कुछ परेशानी अवश्य होती है। इन परेशानियों को कुछ साधारण उपाय कर काफी हद तक समाप्त किया जा सकता है। समस्याओं का निदान करने वाले कुछ साधारण उपाय इस प्रकार हैं-
उपाय
1- घर के मुख्य द्वार पर सफेद आंकड़े का पौधा लगाने से उस घर के सदस्यों पर कोई तांत्रिक अथवा ऊपरी बाधा असर नहीं करती। साथ ही उस घर में धन का अभाव नहीं रहता।
2- घर के ईशान कोण अर्थात उत्तर-पूर्व में तुलसी, केला एवं निर्गुण्डी के पौधे रोपने से उस घर के अधिकांश वास्तुदोष स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं।
3- सुबह, दोपहर व शाम के समय गणेशजी के बाहर नामों का स्मरण करने से साधक के बिगड़ते कार्य बनने लगते हैं।
4- किसी भी प्रकार के दोषों के परिणामस्वरूप उत्पन्न ऋणात्मक ऊर्जा को खत्म करने के लिए घर के मंदिर में रोज लोबान, कपूर, गुग्गल, देशी घी एवं चंदन का चूरा मिलाकर गाय के कण्डे पर धूनी देना अत्यंत फायदेमंद होता है।
5- अपामार्ग (आकड़ा) की जड़ को पानी में घिसकर तथा उसमें थोड़ा सा गोरोचन मिलाकर तिलक करने से किसी भी व्यक्ति में विशिष्ट शक्ति आ जाती है, जिससे वह किसी को भी अपनी ओर आकर्षित कर सकता है।

गोरोचन


जांगम द्रव्यों में गोरोचन आज के जमाने में एक दुर्लभ वस्तु हो गया है।वैसे नकली गोरोचन पूजा-पाठ की दुकानों में भरे पड़े हैं।छोटी-छोटी प्लास्टिक की शीशियों में उपलब्ध होने वाले पीले से पदार्थ को गोरोचन से दूर का भी सम्बन्ध नहीं है।
गोरोचन मरी हुयी गाय के शरीर से प्राप्त होता है।कुछ विद्वान का मत है कि यह गाय के मस्तक में पाया जाता है,किन्तु वस्तुतः इसका नाम "गोपित्त" है,यानी कि गाय का पित्त। शरीर में सर्वव्यापी पित्त का मूल स्थान पित्ताशय(Gallbladar) होता है।पित्ताशय की पथरी आजकल की आम बीमारी जैसी है।मनुष्यों में इसे शल्यक्रिया द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है।गाय की इसी बीमारी से गोरोचन प्राप्त होता है।वैसे स्वस्थ गाय में भी किंचित मात्रा में पित्त तो होगा ही- उसके पित्ताशय में,जिसे आसानी से प्राप्त किया जा सकता है। मस्तक के एक खास भाग पर भी यह पदार्थ- गोल,चपटे,तिकोने,लम्बे,चौकोर- विभिन्न आकारों में एकत्र हो जाता है,जिसे चीर कर निकाला जा सकता है।हल्की लालिमायुक्त पीले रंग का यह एक अति सुगन्धित पदार्थ है,जो मोम की तरह जमा हुआ सा होता है।ताजी अवस्था में लस्सेदार,और सूख जाने पर कड़ा- कंकड़ जैसा हो जाता है।
गोपित्त,शिवा,मंगला,मेध्या,भूत-निवारिणी,वन्द्य आदि इसके अनेक नाम हैं,किन्तु सर्वाधिक प्रचलित नाम गोरोचन ही है।शेष नाम साहित्यिक रुप से गुणों पर आधारित हैं।गाय का पित्त- गोपित्त।शिवा- कल्याणकारी।मंगला- मंगलकारी।मेध्या- मेधाशक्ति बढ़ाने वाला।भूत-निवारिणी- भूत से त्राण दिलाने वाला।वन्द्य- पूजादि अति वन्द्य- आदरणीय।
आयुर्वेद और तन्त्र शास्त्र में इसका विशद प्रयोग-वर्णन है।अनेक औषधियों में इसका प्रयोग होता है। यन्त्र-लेखन,तन्त्र-साधना,तथा सामान्य पूजा में भी अष्टगन्ध-चन्दन-निर्माण में गोरोचन की अहम् भूमिका है। हालाकि विभिन्न देवताओं के लिए अलग-अलग प्रकार के अष्टगन्ध होते हैं,किन्तु गोरोचन का प्रयोग लगभग प्रत्येक अष्टगन्ध में विहित है।
गोरोचन को रविपुष्य योग में साधित करना चाहिए।सुविधानुसार कभी भी प्राप्त हो जाय,किन्तु साधना हेतु शुद्ध योग की अनिवार्यता है।साधना अति सरल है- विहित योग में सोने या चांदी,अभाव में तांबे के ताबीज में शुद्ध गोरोचन को भर कर यथोपलब्ध पंचोपचार/षोडशोपचार पूजन करें।तदुपरान्त अपने इष्टदेव का सहस्र जप करें,साथ ही शिव / शिवा के मंत्रो का भी एक-एक हजार जप अवश्य कर लें।इस प्रकार साधित गोरोचन युक्त ताबीज को धारण करने मात्र से ही सभी मनोरथ पूरे होते है- षटकर्म-दशकर्म आदि सहज ही सम्पन्न होते हैं।गोरोचन में अद्भुत कार्य क्षमता है।सामान्य मसी-लिखित यन्त्र की तुलना में असली गोरोचन द्वारा तैयार की गयी मसी से कोई भी यन्त्र-लेखन का आनन्द ही कुछ और है।ध्यातव्य है कि कर्म शुद्धि,भाव शुद्धि को साथ द्रव्य शुद्धि भी अनिवार्य है।
गोरोचन के कतिपय तान्त्रिक प्रयोग-
साधित गोरोचन युक्त ताबीज को घर के किसी पवित्र स्थान में रख दें,और नियमित रुप से,देव-प्रतिमा की तरह उसकी पूजा-अर्चना करते रहें।इससे समस्त वास्तु दोषों का निवारण होकर घर में सुख-शान्ति-समृद्धि आती है।
नवग्रहों की कृपा और प्रकोप से सभी अवगत हैं।इनक प्रसन्नता हेतु जप-होमादि उपचार किये जाते हैं। किन्तु गोरोचन के प्रयोग से भी इन्हें प्रसन्न किया जा सकता है।साधित गोरोचन को ताबीज रुप में धारण करने, और गोरोचन का नियमित तिलक लगाने से समस्त ग्रहदोष नष्ट होते हैं।
प्रेतवाधा युक्त व्यक्ति को गुरुपुष्य योग में साधित गोरोचन से भोजपत्र पर सप्तशती का "द्वितीय बीज" लिख कर ताबीज की तरह धारण करा देने से विकट से विकट प्रेतवाधा का भी निवारण हो जाता है।
मृगी,हिस्टीरिया आदि मानस व्याधियों में गोरोचन(रविपुष्य योग साधित) मिश्रित अष्टगन्ध से नवार्ण मंत्र लिख कर धारण कर देने से काफी लाभ होता है।
उक्त बीमारियों में गोरोचन को गुलाबजल में थोड़ा घिसकर तीन दिनों तक लागातार तीन-तीन बार पिलाने से अद्भुत लाभ होता है।यह कार्य किसी रवि या मंगलवार से ही प्रारम्भ करना चाहिए।
षटकर्म के सभी कर्मों में तत् तत् यंत्रों का लेखन गोरोचन मिश्रित मसी से करने से चमत्कारी लाभ होता है।
धनागम की कामना से गुरुपुष्य योग में विधिवत साधित गोरोचन का चांदी या सोने के कवच में आवेष्ठित कर नित्य पूजा-अर्चना करने से अक्षय लक्ष्मी का वास होता है।
विभिन्न सौदर्य प्रसाधनों में भी गोरोचन का प्रयोग अति लाभकारी है।हल्दी,मलयागिरी चन्दन,केसर, कपूर,मंजीठ और थोड़ी मात्रा में गोरोचन मिलाकर गुलाबजल में पीसकर तैयार किया गया लेप सौन्दर्य कान्ति में अद्भुत विकास लाता है।इस लेप को चेहरे पर लगाने के बाद घंटे भर अवश्य छोड़ दिया जाय ताकि शरीर की उष्मा से स्वतः सूखे।

रावण सहिंता के किस्मत चमकाने वाले दुर्लभ अति दुर्लभ तांत्रिक उपाय .....................


नागेश्वर तंत्रः
नागेश्वर को प्रचलित भाषा में ‘नागकेसर’ कहते हैं। काली मिर्च के समान गोल, गेरु के रंग का यह गोल फूल घुण्डीनुमा होता है। पंसारियों की दूकान से आसानी से प्राप्त हो जाने वाली नागकेसर शीतलचीनी (कबाबचीनी) के आकार से मिलता-जुलता फूल होता है। यही यहाँ पर प्रयोजनीय माना गया है।
१॰ किसी भी पूर्णिमा के दिन बुध की होरा में गोरोचन तथा नागकेसर खरीद कर ले आइए। बुध की होरा काल में ही कहीं से अशोक के वृक्ष का एक अखण्डित पत्ता तोड़कर लाइए। गोरोचन तथा नागकेसर को दही में घोलकर पत्ते पर एक स्वस्तिक चिह्न बनाएँ। जैसी भी श्रद्धाभाव से पत्ते पर बने स्वस्तिक की पूजा हो सके, करें। एक माह तक देवी-देवताओं को धूपबत्ती दिखलाने के साथ-साथ यह पत्ते को भी दिखाएँ। आगामी पूर्णिमा को बुध की होरा में यह प्रयोग पुनः दोहराएँ। अपने प्रयोग के लिये प्रत्येक पुर्णिमा को एक नया पत्ता तोड़कर लाना आवश्यक है। गोरोचन तथा नागकेसर एक बार ही बाजार से लेकर रख सकते हैं। पुराने पत्ते को प्रयोग के बाद कहीं भी घर से बाहर पवित्र स्थान में छोड़ दें।
२॰ किसी शुभ-मुहूर्त्त में नागकेसर लाकर घर में पवित्र स्थान पर रखलें। सोमवार के दिन शिवजी की पूजा करें और प्रतिमा पर चन्दन-पुष्प के साथ नागकेसर भी अर्पित करें। पूजनोपरान्त किसी मिठाई का नैवेद्य शिवजी को अर्पण करने के बाद यथासम्भव मन्त्र का भी जाप करें ‘ॐ नमः शिवाय’। उपवास भी करें। इस प्रकार २१ सोमवारों तक नियमित साधना करें। वैसे नागकेसर तो शिव-प्रतिमा पर नित्य ही अर्पित करें, किन्तु सोमवार को उपवास रखते हुए विशेष रुप से साधना करें। अन्तिम अर्थात् २१वें सोमवार को पूजा के पश्चात् किसी सुहागिनी-सपुत्रा-ब्राह्मणी को निमन्त्रण देकर बुलाऐं और उसे भोजन, वस्त्र, दान-दक्षिणा देकर आदर-पूर्वक विदा करें।
इक्कीस सोमवारों तक नागकेसर-तन्त्र द्वारा की गई यह शिवजी की पूजा साधक को दरिद्रता के पाश से मुक्त करके धन-सम्पन्न बना देती है।
३॰ पीत वस्त्र में नागकेसर, हल्दी, सुपारी, एक सिक्का, ताँबे का टुकड़ा, चावल पोटली बना लें। इस पोटली को शिवजी के सम्मुख रखकर, धूप-दीप से पूजन करके सिद्ध कर लें फिर आलमारी, तिजोरी, भण्डार में कहीं भी रख दें। यह धनदायक प्रयोग है। इसके अतिरिक्त “नागकेसर” को प्रत्येक प्रयोग में “ॐ नमः शिवाय” से अभिमन्त्रित करना चाहिए।

४॰ कभी-कभी उधार में बहुत-सा पैसा फंस जाता है। ऐसी स्थिति में यह प्रयोग करके देखें-
किसी भी शुक्ल पक्ष की अष्टमी को रुई धुनने वाले से थोड़ी साफ रुई खरीदकर ले आएँ। उसकी चार बत्तियाँ बना लें। बत्तियों को जावित्री, नागकेसर तथा काले तिल (तीनों अल्प मात्रा में) थोड़ा-सा गीला करके सान लें। यह चारों बत्तियाँ किसी चौमुखे दिए में रख लें। रात्रि को सुविधानुसार किसी भी समय दिए में तिल का तेल डालकर चौराहे पर चुपके से रखकर जला दें। अपनी मध्यमा अंगुली का साफ पिन से एक बूँद खून निकाल कर दिए पर टपका दें। मन में सम्बन्धित व्यक्ति या व्यक्तियों के नाम, जिनसे कार्य है, तीन बार पुकारें। मन में विश्वास जमाएं कि परिश्रम से अर्जित आपकी धनराशि आपको अवश्य ही मिलेगी। इसके बाद बिना पीछे मुड़े चुपचाप घर लौट आएँ। अगले दिन सर्वप्रथम एक रोटी पर गुड़ रखकर गाय को खिला दें। यदि गाय न मिल सके तो उसके नाम से निकालकर घर की छत पर रख दें।

५॰ जिस किसी पूर्णिमा को सोमवार हो उस दिन यह प्रयोग करें। कहीं से नागकेसर के फूल प्राप्त कर, किसी भी मन्दिर में शिवलिंग पर पाँच बिल्वपत्रों के साथ यह फूल भी चढ़ा दीजिए। इससे पूर्व शिवलिंग को कच्चे दूध, गंगाजल, शहद, दही से धोकर पवित्र कर सकते हो। तो यथाशक्ति करें। यह क्रिया अगली पूर्णिमा तक निरन्तर करते रहें। इस पूजा में एक दिन का भी नागा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर आपकी पूजा खण्डित हो जायेगी। आपको फिर किसी पूर्णिमा के दिन पड़नेवाले सोमवार को प्रारम्भ करने तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इस एक माह के लगभग जैसी भी श्रद्धाभाव से पूजा-अर्चना बन पड़े, करें। भगवान को चढ़ाए प्रसाद के ग्रहण करने के उपरान्त ही कुछ खाएँ। अन्तिम दिन चढ़ाए गये फूल तथा बिल्वपत्रों में से एक अपने साथ श्रद्धाभाव से घर ले आएँ। इन्हें घर, दुकान, फैक्ट्री कहीं भी पैसे रखने के स्थान में रख दें। धन-सम्पदा अर्जित कराने में नागकेसर के पुष्प चमत्कारी प्रभाव दिखलाते हैं।

मार्जारी तंत्र :
मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली सिंह परिवार का जीव है। केवल आकार का अंतर इसे सिंह से पृथक करता है, अन्यथा यह सर्वांग में, सिंह का लघु संस्करण ही है। मार्जारी अर्थात्‌ बिल्ली की दो श्रेणियाँ होती हैं- पालतू और जंगली। जंगली को वन बिलाव कहते हैं। यह आकार में बड़ा होता है, जबकि घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ छोटी होती हैं। वन बिलाव को पालतू नहीं बनाया जा सकता, किन्तु घरों में घूमने वाली बिल्लियाँ पालतू हो जाती हैं। अधिकाशतः यह काले रंग की होती हैं, किन्तु सफेद, चितकबरी और लाल (नारंगी) रंग की बिल्लियाँ भी देखी जाती हैं।
घरों में घूमने वाली बिल्ली (मादा) भी लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कराने में सहायक होती है, किन्तु यह तंत्र प्रयोग दुर्लभ और अज्ञात होने के कारण सर्वसाधारण के लिए लाभकारी नहीं हो पाता। वैसे यदि कोई व्यक्ति इस मार्जारी यंत्र का प्रयोग करे तो निश्चित रूप से वह लाभान्वित हो सकता है।
गाय, भैंस, बकरी की तरह लगभग सभी चौपाए मादा पशुओं के पेट से प्रसव के पश्चात्‌ एक झिल्ली जैसी वस्तु निकलती है। वस्तुतः इसी झिल्ली में गर्भस्थ बच्चा रहता है। बच्चे के जन्म के समय वह भी बच्चे के साथ बाहर आ जाती है। यह पॉलिथीन की थैली की तरह पारदर्शी लिजलिजी, रक्त और पानी के मिश्रण से तर होती है। सामान्यतः यह नाल या आँवल कहलाती हैं।
इस नाल को तांत्रिक साधना में बहुत महत्व प्राप्त है। स्त्री की नाल का उपयोग वन्ध्या अथवा मृतवत्सा स्त्रियों के लिए परम हितकर माना गया है। वैसे अन्य पशुओं की नाल के भी विविध उपयोग होते हैं। यहाँ केवल मार्जारी (बिल्ली) की नाल का ही तांत्रिक प्रयोग लिखा जा रहा है, जिसे सुलभ हो, इसका प्रयोग करके लक्ष्मी की कृपा प्राप्त कर सकता है।
जब पालतू बिल्ली का प्रसव काल निकट हो, उसके लिए रहने और खाने की ऐसी व्यवस्था करें कि वह आपके कमरे में ही रहे। यह कुछ कठिन कार्य नहीं है, प्रेमपूर्वक पाली गई बिल्लियाँ तो कुर्सी, बिस्तर और गोद तक में बराबर मालिक के पास बैठी रहती हैं। उस पर बराबर निगाह रखें। जिस समय वह बच्चों को जन्म दे रही हो, सावधानी से उसकी रखवाली करें। बच्चों के जन्म के तुरंत बाद ही उसके पेट से नाल (झिल्ली) निकलती है और स्वभावतः तुरंत ही बिल्ली उसे खा जाती है। बहुत कम लोग ही उसे प्राप्त कर पाते हैं।
अतः उपाय यह है कि जैसे ही बिल्ली के पेट से नाल बाहर आए , उस पर कपड़ा ढँक दें। ढँक जाने पर बिल्ली उसे तुरंत खा नहीं सकेगी। चूँकि प्रसव पीड़ा के कारण वह कुछ शिथिल भी रहती है, इसलिए तेजी से झपट नहीं सकती। जैसे भी हो, प्रसव के बाद उसकी नाल उठा लेनी चाहिए। फिर उसे धूप में सुखाकर प्रयोजनीय रूप दिया जाता है।
धूप में सुखाते समय भी उसकी रखवाली में सतर्कता आवश्यक है। अन्यथा कौआ, चील, कुत्ता आदि कोई भी उसे उठाकर ले जा सकता है। तेज धूप में दो-तीन दिनों तक रखने से वह चमड़े की तरह सूख जाएगी। सूख जाने पर उसके चौकोर टुकड़े (दो या तीन वर्ग इंच के या जैसे भी सुविधा हो) कर लें और उन पर हल्दी लगाकर रख दें। हल्दी का चूर्ण अथवा लेप कुछ भी लगाया जा सकता है। इस प्रकार हल्दी लगाया हुआ बिल्ली की नाल का टुकड़ा लक्ष्मी यंत्र का अचूक घटक होता है।
तंत्र साधना के लिए किसी शुभ मुहूर्त में स्नान-पूजा करके शुद्ध स्थान पर बैठ जाएँ और हल्दी लगा हुआ नाल का सीधा टुकड़ा बाएँ हाथ में लेकर मुट्ठी बंद कर लें और लक्ष्मी, रुपया, सोना, चाँदी अथवा किसी आभूषण का ध्यान करते हुए 54 बार यह मंत्र पढ़ें- ‘मर्जबान उल किस्ता’।
इसके पश्चात्‌ उसे माथे से लगाकर अपने संदूक, पिटारी, बैग या जहाँ भी रुपए-पैसे या जेवर हों, रख दें। कुछ ही समय बाद आश्चर्यजनक रूप से श्री-सम्पत्ति की वृद्धि होने लगती है। इस नाल यंत्र का प्रभाव विशेष रूप से धातु लाभ (सोना-चाँदी की प्राप्ति) कराता है।
दूर्वा तंत्र :
दूर्वा अर्थात्‌ दूब एक विशेष प्रकार की घास है। आयुर्वेद , तंत्र और अध्यात्म में इसकी बड़ी महिमा बताई गई है। देव पूजा में भी इसका प्रयोग अनिवार्य रूप से होता है। गणेशजी को यह बहुत प्रिय है। साधक किसी दिन शुभ मुहूर्त में गणेशजी की पूजा प्रारंभ करे और प्रतिदिन चंदन, पुष्प आदि के साथ प्रतिमा पर 108 दूर्वादल (दूब के टुकड़े) अर्पित करे। धूप-दीप के बाद गुड़ और गिरि का नैवेद्य चढ़ाना चाहिए। इस प्रकार प्रतिदिन दूर्वार्पण करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त हो सकती है। ऐसा साधक जब कभी द्रव्योपार्जन के कार्य से कहीं जा रहा हो तो उसे चाहिए कि गणेश प्रतिमा पर अर्पित दूर्वादलों में से 5-7 दल प्रसाद स्वरूप लेकर जेब में रख ले। यह दूर्वा तंत्र कार्यसिद्धि की अद्‍भुत कुंजी है।
अश्व (वाहन) नाल तंत्र :
नाखून और तलवे की रक्षा के लिए लोग प्रायः घोड़े के पैर में लोहे की नाल जड़वा देते हैं, क्योंकि उन्हें प्रतिदिन पक्की सड़कों पर दौड़ना पड़ता है। यह नाल भी बहुत प्रभावी होती है। दारिद्र्य निवारण के लिए इसका प्रयोग अनेक प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है।
घोड़े की नाल तभी प्रयोजनीय होती है, जब वह अपने आप घोड़े के पैर से उखड़कर गिरी हो और शनिवार के दिन किसी को प्राप्त हो। अन्य दिनों में मिली नाल प्रभावहीन मानी जाती है। शनिवार को अपने आप, राह चलते कहीं ऐसी नाल दिख जाए, भले ही वह घोड़े के पैर से कभी भी गिरी हो उसे प्रणाम करके ‘ॐ श्री शनिदेवाय नमः’ का उच्चारण करते हुए उठा लेना चाहिए।
शनिवार को इस प्रकार प्राप्त नाल लाकर घर में न रखें, उसे बाहर ही कहीं सुरक्षित छिपा दें। दूसरे दिन रविवार को उसे लाकर सुनार के पास जाएँ और उसमें से एक टुकड़ा कटवाकर उसमें थोड़ा सा तांबा मिलवा दें। ऐसी मिश्रित धातु (लौह-ताम्र) की अंगूठी बनवाएँ और उस पर नगीने के स्थान पर ‘शिवमस्तु’ अंकित करा लें। इसके पश्चात्‌ उसे घर लाकर देव प्रतिमा की भाँति पूजें और पूजा की अलमारी में आसन पर प्रतिष्ठित कर दें। आसन का वस्त्र नीला होना चाहिए।
एक सप्ताह बाद अगले शनिवार को शनिदेव का व्रत रखें। सन्ध्या समय पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करें और तेल का दीपक जलाकर, शनि मंत्र ‘ॐ शं शनैश्चराय नमः’ का जाप करें। एक माला जाप पश्चात्‌ पुनः अंगूठी को उठाएँ और 7 बार यही मंत्र पढ़ते हुए पीपल की जड़ से स्पर्श कराकर उसे पहन लें। यह अंगूठी बीच की या बगल की (मध्यमा अथवा अनामिका) उँगली में पहननी चाहिए। उस दिन केवल एक बार संध्या को पूजनोपरांत भोजन करें और संभव हो तो प्रति शनिवार को व्रत रखकर पीपल के वृक्ष के नीचे शनिदेव की पूजा करते रहें। कम से कम सात शनिवारों तक ऐसा कर लिया जाए तो विशेष लाभ होता है। ऐसे व्यक्ति को यथासंभव नीले रंग के वस्त्र पहनने चाहिए और कुछ न हो सके तो नीला रूमाल य अंगोछा ही पास में रखा जा सकता है।
इस अश्व नाल से बनी मुद्रिका को साक्षात्‌ शनिदेव की कृपा के रूप में समझना चाहिए। इसके धारक को बहुत थोड़े समय में ही धन-धान्य की सम्पन्नता प्राप्त हो जाती है। दरिद्रता का निवारण करके घर में वैभव-सम्पत्ति का संग्रह करने में यह अंगूठी चमत्कारिक प्रभाव दिखलाती है।

नियमानुसार ही निकालें तांत्रोक्त जड़ी

मित्रों, वनस्पति तंत्र में ऐसी अनेक जडी़ और बांदे हैं जो यदि बताए गए शुभ मुहूर्त में पूर्ण विधि-विधान से निकाल कर प्रयोग में लाए जाएं तो वे आशातीत लाभ प्रदान करते हैं। इन जडी़यों को निकालने की एक शास्त्रोक्त प्रक्रिया होती है उसे किए बिना प्राप्त की गई जड़ या बांदा लाभदायक नहीं होता। हम यहां जड़ और बांदे को निकालने के शास्त्रोक्त नियम व विधि आपको बता रहे हैं।
१. सर्वप्रथम कोई भी जड़ या बांदा किसी स्वच्छ स्थान पर लगे पेड से ही प्राप्त करें।
२. जड़ या बांदा बताए गए निश्चित मुहूर्त या नक्षत्र में ही प्राप्त करें।
३. जड़ या बांदा निकाले से ठीक एक दिन पूर्व उस पेड़ की जड़ में एक लोटा जल डालें तत्पश्चात पंचोपचार पूजन कर नैवेद्य व दक्षिणा अर्पण कर आरती करें।
४.आरती के पश्चात पीले चावल रखकर उस जड़ को अपने साथ चलने हेतु निमंत्रित करें।
५.बताए गए मुहूर्त या नक्षत्र में जाकर जड़ को प्रणाम करें तत्पश्चात दिग्बंध हेतु पीली सरसों को निम्न मंत्र से अभिमंत्रित कर अपने एवं पेड़ चारों फ़ेंकें।
मंत्र-““ॐ बेतालाश्य पिशाचाश्य राक्षसाश्च सरीसृपां।
अपसर्पन्तु ते सर्वे वृक्षादिस्माच्छिवाज्ञार्या॥”
६. दिग्बंध के उपरांत लकड़ी के नुकीले पटिये से जड़ को सावधानी से खोदकर निकालें। ध्यान रखें जड़ निकालने में लोहे का का प्रयोग ना हो। निकालते वक्त पूर्ण श्रद्धाभाव रखें।
७. जड़ का एक छोटा सा भाग ही निकालें। आवश्यकता से अधिक निकालना निषेध है।
८. जड निकालते समय गोपनीयता का ध्यान रखें। सुनिश्चित करें कि किसी व्यक्ति की नज़र या टोक आप पर नहीं पड़े।
९. जड़ निकालते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करते रहें।
खनन मंत्र-
“येन त्वां खनते ब्रह्म, येन त्वां खनते भृगु।
येन हीन्दो· वरूणो, येन त्वापचक्रमे।
तेनाहं खनिष्यामि मंत्रपूतेन पाणिना
मा पातेमानि पतित जोन्यथा माते भवेत।
अत्रैव तिष्ठ कल्याणि मम कार्यकरी भव।
मम कार्ये सिद्धे ततः स्वर्ग गमिष्यमि।”
१०. जड़ निकल जाने के उपरांत मिट्टी से गड़्ढा भर दें। मौन धारण किये अपने घर लौट आएं।
घर आकर जड को नर्मदाजल व दूध से स्नान कराएं एवं पंचोपचार पूजन कर प्रयोग करें।
॥शुभमस्तु॥